हजरत हुसैन की याद में निकले मोहर्रम पर ताजिए

शिवपुरी. -इस्लाम के नवासे हजरत हुसैन की शहादत को मनाए जाने वाला मोहर्रम त्यौहार पर आज शहर में निकाले जाऐंगे ताजिए। इस्लामी कैलेण्डर के पहले माह में मनाए जाने वाले शहादत के इस पर्व पर मुस्लिम समुदाय के लोगों में हजरत हुसैन साहब की शहादत को आज भी जुनून के साथ याद किया जाएगा। शिवपुरी शहर के प्रमुख इलाकों से निकाले जाने वाले ताजियों में कमलीगरान मोहल्ले से निकलने वाले कदीनि ताजिये पर आज भी मांगी जाने वाली मुराद पूरी होती है। मुस्लिम समुदाय के अलावा यहां अन्य धर्मावलंबियों के लोग भी फाता पढऩे जाते है।

हजरत हुसैन पैगम्बर इस्लाम के सबसे चहेते नवाशे या यूं कहे कि उनके जिगर के टुकड़े हजरत मोहम्मद साहब का एक इरशाद है कि मैं हुसैन से हूँ और हुसैन मुझसे है जो हुसैन से मोहब्बत करेगा अल्लाताला उससे मोहब्बत करेगा। इराक के शहर करबला में खलीफयाजिद बिन मुआबिया के आदमीयों ने बड़ी बेदर्दी से  हजरत हुसैन साहब का कत्ल किया था जिनकी याद में मुस्लिम समुदाय के लोग  सारी दुनिया में मोहर्रम का त्यौहार मनाते है। 
हजरत हुसैन साहब ने अपने शहादत के पहले यह संदेश दिया कि इंसान को हक व सच्चाई के रास्ते पर चलना चाहिए किसी जालिम शासक से सिर्फ इस वजह से टक्कर न लेना कि उसके एक बड़ी फौज और हुकुम की ताकतवर मशीनरी है इस्लामी तालिमात के खिलाफ है और उन्होंने इराक के क्रूर शासक के खिलाफ जिहाद शुरू की थी और उस जिहाद में हुसैन साहब शहीद हुए थे तब से उन्हें मुस्लिम समुदाय में शहीद ऐ आजम के नाम से जाना जाता है आज उनकी याद में विभिन्न क्षेत्रों से ताजिए निकाले गए। जिसमें इमामबाड़ा, पुरानी शिवपुरी, सिपाईयांन मोहल्ला, मोमिनपुरा पुरानी शिवपुरी, हीरे खां का तकिया और फकीरों के चौक, दाता खड़क ताजिया निचला बाजार से ताजियों को बनाकर शामिल है जिन्हें करबला में विसर्जित किया गया। 
सिपाइंयाना मोहल्ले में बनाए जाने वाले ताजिये को लेकर हमेशा से पूर्व पार्षद सफदरबेग मिर्जा, अब्दुल रफीक खान अप्पल व साजिद विद्यार्थी की भूमिका रही है। वहीं तकिये के ताजिये को मुख्त्यार खैंरा बनाते है। शिवपुरी में मनाए जाने वाले मोहर्रम के इस मातमी पर्व पर मुस्लिम समुदाय के अलावा हिन्दू समुदाय के लोगों की बढ़-चढ़कर भागीदारी दिखाई देती है। ताजिए की गश्त के दौरान विभिन्न धर्मावलंबियों के द्वारा ताजिया विसर्जन करने जा रहे मुस्लिम भाईयों को शरबत व पानी की व्यवस्था की गई।
सांप्रदायिक मिसाल पेश करता कदीनि ताजिया 
पुरानी शिवपुरी के कमलीगरान मोहल्ले में बनाए जाने वाले कदीनि ताजिया से सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल आज भी दिखाई देती है। लगभग 400 वर्षों से बनाए जाने वाले इस ताजिये के बारे में मुस्लिम बुजुर्गवानों का कहना है कि यह ताजिया इमाम हुसैन के नाम पर बनाया जाता है बताया जाता है कि वर्षों पूर्व इमाम साहब की सवारी किसी मुस्लिम परिवार के सदस्य को आई थी और उन्होनें इस कदीनि ताजिया बनाने का हुकुम दिया था। साथ में यह भी कहा था कि इस ताजिए पर जो भी अपनी मुराद रखेगा अल्लाताला उसकी वह मुराद पूरी करेगा। सैंकड़ों वर्षों की परंपरा आज भी जारी है जहां लोगों की मुरादें पूरी होती है। जिसमें मुस्लिम समुदाय के अलावा बड़ी संख्या में हिन्दू धर्मावलंबि भी अपनी मुरादें लेकर कदीनि जाजिए पर जाते है। कदीनि ताजिए की विशेषता यह है कि गश्त के दौरान यह ताजिया आज भी उन्ही मार्गों से निकलकर करबला में विसर्जित किया जाता है जिन मार्गों से वर्षों पहले परंपरा चालू हुई थी। यह ताजिया जौहर की नवाज के बाद बड़ा बाजार, जामा मस्जिद होते हुए बजरिया मोहल्ला से नीलगर चौराहे से हुसैन टेकरी ले जाया जाता है जहां से करबला पहुंचाकर इसे विसॢजत किया जाता है। कदीनि ताजिया बनाने की इस परंपरा को आज भी शमशुद्दीन खान बड़ी बखूबी से निभा रहे है और बिना चंदो किए हुए भी यह ताजिया वह अपने निजी स्त्रोतो से बनाकर तैयार करते है। कदीनि ताजिए पर हिन्दू धर्मावलंबी हृदेश कुदेशिया की मन्नत भी पूरी हुई है। हृदेश नि:संतान थे और अल्लाहताला ने उन्हें एक बेटा और एक बेटी अदा की है जो आज भी अरमान और इच्छा के नाम से उनके जीवन में खुशियां बिखेर रहे है।
खूब बंटी तवर्रूफ  
इमाम हुसैन की शहादत पर मनाए जाने वाले मोहर्रम के इस पर्व पर शिवपुरी शहर के विभिन्न इलाकों में हुसैन साहब की शहादत के नाम पर जगह-जगह खिचड़ा बांटने की पंरपरा है जिसे आज भी मुस्लिम समुदाय के लोग निभा रहे है। खिचड़े के अलावा काबुली, पुलाव और शरबत भी आज बांटा गया। जिसे ताजिया गश्त के दौरान शिवपुरी शहर के विभिन्न मार्गों से मुस्लिम सुमदाय के लोगों के द्वारा वितरित किया गया। फकीर और जरूरतमंद लोग जिन्हें दो वक्त की रोटी बमुश्किल से मोहताज होती है वह आज तवररूफ के रूप में हुसैन साहब की शहादत को याद करते हुए पाया।

क्या कहते है धर्मावलंबी- 
हृदेश कुदेशिया
यह सही बात है कि कदीनि ताजिया से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है आज मेरे परिवार में जो खुशियां है वह कदीनि ताजिये की बदौलत है जहां एक बार मुझे जानकारी मिलने पर मैं आया और अपनी मुराद रखकर उसकी इच्छा पूरी होने की कामना की जिसे स्वत: ही अल्ला ने मंजूर किया और मेरा हरा-भरा परिवार आज मेरे साथ है हम प्रतिवर्ष मोहर्रम पर कदीनि ताजिये के दर्शन और मन्नतें मांगने अपने परिवार के साथ आते है।
हृदेश कुदेशिया
निवासी शिवपुरी


मेरी तो बचपन से ही हर धर्म में भाग लेने की इच्छा रहती है चाहे दिवाली हो, होली हो, रमजान हो या मोहर्रम हो जब से मेरी शादी हुई तब से मेरा आना कदीनि ताजिये के दरबार में हुआ जहां आने से स्वत: ही मेरी समस्याओं का निराकरण हुआ और आज जो भी हम है वह सभी अल्लाह की मेहरबानी है आज मेरे अरमान और इच्छा नाम से पुत्र-पुत्री है जिसके साथ हम खुश है।
श्रीमती रश्मि कुदेशिया
निवासी शिवपुरी

महेश राठौर
मैं तो प्रसाद चढ़ाने के लिए कदीनि ताजिये के दरबार में आया था और एक छोटी सी बाली मन्नतें मांगने के लिए चढ़ाई थी जहां जब तवर्रूफ का वितरण किया गया तो अल्लाह ने अपने आप ही मेरे हाथ में वह बाली दे दी जो मैंने चढ़ाई थी इस तरह के चमत्कार आए दिन होते रहते है प्रतिवर्ष सच्चे मन से कदीनि ताजिये के दरबार में मत्था टेका जाए तो हर मन्नत पूरी होती है।
महेश राठौर
खदान व्यवसायी
अब्दुल रफीक खान अप्पल
शहर में हर धर्मावलंबी कदीनि ताजिये के दरबार में आता है और जब इसे गश्त पर निकाला जाता है तो लोगों के सिर सजदे झुक जाते है और अपनी हर मन्नत पूरी करने के लिए कदीनि ताजिए पर जो बनता है वह चढ़कर मन्नतें बोलते है जब इच्छा पूर्ण हो जाती है तो मोहर्रम के अवसर पर भेंट स्वरूप जो अच्छा लगे वह यहां चढ़ाया जात है यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है इसके कई उदाहरण देखने को मिल जाऐंगे।
अब्दुल रफीक खान अप्पल
कांग्रेस नेता शिवपुरी