अठ्ठम तप तो क्या मैंने कभी उपवास भी नहीं किया: मुनिश्री चिदानंद

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शिवपुरी 22 नवम्बर का.  मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मैं कभी अठ्ठम तप कर पाऊंगा, ये तो पाश्र्वनाथ दादा की कृपा है जिन्होंने मुझे शक्ति प्रदान की, उक्त बात आज उपासरे में तपस्याओं की अनुमोदना में एकासने से अठ्ठम तक का सफर तय करने वाले पंन्यासप्रवर चिदानंद विजय जी म.सा. ने कही। उन्होंने कहा कि यह मेरो पहला तप है और शायद यही अंतिम होगा उनकी इस तपस्या के उपलक्ष्य में श्रीसंघ की ओर से शासनमाता के गीत रखे गये और सुबह पारणे की व्यवस्था भी श्रीसंघ द्वारा की गई है।
मुनिश्री ने कहा कि जब सभी तपस्वियों की अनुमोदना के लिए वरघोड़ा निकल रहा था उससे पूर्व ही उन्होंने मंदिर जाकर भगवान पाश्र्वनाथ के सामने इस बात का प्रण ले लिया था कि वे सभी तपस्वियों की अनुमोदना के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करेंगे। कार्यक्रम सवा चार बजे तक चला जिसके कारण मेरे पास दो ही विकल्प बचे थे या तो मैं पानी लूं अथवा चौबिहार उपवास करूं। साध्वी जी ने मेरी इस भावना में अपनी प्रेरणा की शक्ति प्रदान करी और मेरा जीवन का पहला उपवास हो गया। तपस्वियों की अनुमोदना के लिए किये गये इस उपवास के साथ ही मन में अठ्ठम की भावना थी और उसमें पुन: प्रेरणादायक बनीं साध्वी पूर्णप्रज्ञाश्रीजी। 
आज मेरे जीवन का यह पहला अठ्ठम है जो शायद अंतिम भी होगा। शिवपुरी मेरी जन्मभूमि है यह तो मुझे याद रहा ही है अब मुझे यह भी याद रहेगा कि मैंने अपना पहला अठ्ठम अपनी जन्मभूमि पर किया। एकासना और व्यासने तक सीमित रहने वाले पंन्यासप्रवर चिदानंद विजय जी म.सा. के इस अठ्ठम की अनुमोदना हेतु श्रीसंघ के महिला एवं पुरूषों द्वारा शासनमाता के गीत एवं भक्ति का आयोजन किया गया। आज प्रात: श्रीसंघ की ओर से पारणे का आयोजन भी किया गया है।
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