राजनीतिक संभावना: शिवुपरी के दो विधायक लोकसभा टिकिट की लाईन में | Shivpuri News

शिवपुरी। शिवपुरी जिले के दोनों भाजपा विधायक यशोधरा राजे सिंधिया और वीरेंद्र रघुवंशी को इस बार पार्टी लोकसभा चुनाव के लिए मैदान में उतार सकती है। ग्वालियर के भाजपा सांसद और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर इस सीट से चुनाव लडऩे के अनिच्छुक बताए जाते हैं ओर पार्टी दो बार इस सीट से सांसद रहीं शिवपुरी विधायक यशोधरा राजे सिंधिया को उनके स्थान पर चुनाव लड़ा सकती है। 

वहीं कोलारस विधायक वीरेंद्र रघुवंशी भी गुना शिवपुरी लोकसभा क्षेत्र से टिकट के दावेदार हैं और सूत्र बताते हैं कि प्रदेश चुनाव समिति ने उनका नाम पैनल में भी भेजा है। श्री रघुवंशी स्वंय चुनाव लडऩे के इच्छुक बताए जाते हैं। उन्होंने कहा कि पार्टी यदि मुझे टिकट देगी तो मैं चुनाव लडऩे के लिए तैयार हूं। 

यूं तो बताया जाता है कि भाजपा ने पहले यह तय किया था कि वह अपने किसी विधायक को टिकट नहीं देगी, लेकिन ग्वालियर और गुना दोनों लोकसभा सीटों पर भाजपा के समक्ष योग्य उम्मीदवारों का संकट है। पिछले विधानसभा चुनाव में ग्वालियर संसदीय क्षेत्र की 8 विधानसभा सीटों में से भाजपा महज एक सीट ग्वालियर ग्रामीण ही जीत पाई और 7 सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा किया। जबकि ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र के सांसद केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर हैं। 

विधानसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन के कारण एक ओर जहां कांग्रेस का आत्मविश्वास बढ़ा हुआ है वहीं भाजपा खेमे में हताशा और निराशा का वातावरण है। सूत्र बताते हैं कि यहां को सांसद नरेंद्र सिंह तोमर स्वंय ग्वालियर से चुनाव लडऩे के इच्छुक नहीं है और वह ग्वालियर के स्थान पर किसी अन्य सुरक्षित सीट की तलाश में हैं। पहले उनका नाम भोपाल लोकसभा सीट से उछला था, लेकिन अब बताया जाता है कि वह ग्वालियर के स्थान पर मुरैना सीट को अधिक प्राथमिकता दे रहे हैं जहां से वह 2009 में लोकसभा चुनाव जीते थे। मुरैना लोकसभा क्षेत्र में राजपूतों का वर्चस्व बताया जाता है। 

ग्वालियर लोकसभा सीट पर कांग्रेस पिछले तीन चुनाव बेहद कम अन्तर से हार रही है और तीनों बार कांग्रेस प्रत्याशी अशोक सिंह पराजित हुए हैं। दो बार उन्हें यशोधरा राजे सिंधिया ने और 2014 की मोदी लहर में वह 29 हजार मतों से नरेंद्र सिंह तोमर से पराजित हुए हैं, लेकिन इसके बावजूद भी उन्हें आज भी एक मजबूत प्रत्याशी माना जा रहा है। कांग्रेस कार्यसमिति ने पिछले दिनों यह नीति बनाई थी कि दो या तीन बार से हार रहे प्रत्याशियों को टिक ट नहीं दिया जाएगा। 

इस पॉलिसी के तहत अशोक सिंह का टिकट डेंजर जोन में बताया जाता है और उनके स्थान पर सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया या प्रियदर्शनी राजे सिधिया का नाम उछल रहा है। सिंधिया परिवार का इस सीट पर अच्छा प्रभाव है और इसे अपने पक्ष में मोडऩे हेतु ही भाजपा की ओर से यशोधरा राजे का नाम उछल रहा है। 

यह तय है कि यशोधरा राजे की उम्मीदवारी भाजपा ने तय की तो कांग्रेस की ओर से ज्योतिरादित्य सिंधिया और प्रियदर्शनी राजे की उम्मीदवारी पर विराम लग जाएगा। ऐसे में कांगे्रस या तो अशोक सिंह अथवा अन्य किसी उम्मीदवार को टिकट देगी और भाजपा इस सीट पर कांग्रेस को तगड़ी चुनौती पेश कर सकेगी। जहां तक गुना सीट का सवाल है तो इस सीट पर भी भाजपा के पास कोई मजबूत स्थानीय प्रत्याशी नहीं है। 

गुना संसदीय क्षेत्र में सिंधिया परिवार का मजबूत जनाधार है और इस सीट पर अभी तक सिंधिया परिवार का उम्मीदवार ही चुनाव जीतता आया है। चाहे सिंधिया परिवार के सदस्य ने जनसंघ से चाहे निर्दलीय अथवा कांग्रेस या भाजपा से चुनाव लड़ा हो। सिंधिया परिवार के प्रभाव के कारण ही कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों में कोई मजबूत लोकसभा का प्रत्याशी अभी तक सामने निकलकर नहीं आया।

 एक बार अवश्य 2014 के चुनाव में पूर्व विधायक हरिवल्लभ शुक्ला ने चुनौती पेश की थी और उन्होंने सांसद ज्योतिरादित्य ङ्क्षसंधिया की जीत का अंतर घटाकर 85 हजार मतों पर सीमित कर दिया था, लेकिन इसके बाद वह भी महल शरणम गच्छामि हो गए। भाजपा ने बाहरी प्रत्याशियों को भी चुनाव लड़ाया। 2009 में सिंधिया के खिलाफ प्रदेश सरकार के मंत्री नरोत्तम मिश्रा को चुनाव मैदान में उतारा गया और वह ढाई लाख मतों से चुनाव हार गए तथा इसके बाद उन्होंने क्षेत्र की ओर मुडक़र दोबारा नहीं देखा। 

2014 में कट्टर महल विरोधी और पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया चुनाव लड़े और वह भी एक लाख 20 हजार मतों से हारकर विदा हो गए। इसके बाद से वह गुना संसदीय क्षेत्र में नहीं लौटे हैं। इस चुनाव में भी भाजपा के समक्ष समस्या है कि वह किसे टिकट दे? ऐसी स्थिति में भाजपा का एक बड़ा वर्ग चाहता है कि स्थानीय उम्मीदवार के रूप में कट्टर महल विरोधी कोलारस विधायक वीरेंद्र रघुवंशी को चुनाव मैदान में उतारा जाए। 

श्री रघुवंशी ने पिछले विधानसभा चुनाव में कोलारस से विजयश्री हासिल की थी वह भी उस स्थिति में जब कोलारस विधानसभा का चुनाव सांसद सिंधिया ने स्वंय को प्रत्याशी मानकर लड़ा था और उस चुनाव में उनकी स्वंय की प्रतिष्ठा दाव पर थी। इस हार के बाद सिंधिया की कसक कई बार निकलकर सामने आई है।

विधायक रघुवंशी भी लोकसभा चुनाव के बहाने सिंधिया से दो दो हाथ करने के इच्छुक हैं। बताया जाता है कि भाजपा प्रदेश चुनाव समिति ने उनका नाम पैनल में केंद्रीय चुनाव समिति को भी भेजा है। लेकिन यदि भाजपा आलकमान विधायकों को लोकसभा टिकट न देने की नीति पर कायम रहा तो स्थानीय उम्मीदवार के रूप में पूर्व विधायक नरेंद्र बिरथरे, राजू बाथम, धैयवर्धन शर्मा और व्यवसायी भरत अग्रवाल भी चुनाव मैदान में उतरने को तैयार हैं, लेकिन सवाल यह है कि भाजपा आलाकमान इन स्थानीय प्रत्याशियों की उम्मीदवारी को कितना गंभीर मानता है।