सद्दी खां का कटा सर हाथ ले लेकर राजदरबार में खाडेराव पहुंचे तो जयकारो से गूंज उठा शिवपुरी नगर | Shivpuri News

कंचन सोनी/शिवुपरी। इस युद्ध् में पठान सेना के सैकडो सैनिक उसके मारे गए। खाडेराव का सिर्फ एक अंगरक्षक माधौसिंह घायल हुआ था। खाडेराव ने अपने अंगरक्षक को ओदश दिया कि सद्दी खां ने भरे दरबार में महाराज का अपमान किया इसका सर काट कर ले चलो महाराज को भेट करेंगें। अगरक्षक अपनी तलवार को लेकर मृत पडे सद्दी खां की ओर चल दिया। 

खाडेराव के साठ सवारो ने इस युद्ध् को जीत लिया। इस युद्ध् में सद्दी खांन सहित 3 सौ सैनिक मारे गए। इससे भी ज्यादा संख्या में घायल हो गए। अपने सरदार के मरते ही पूरी सैना भाग खडी हुई। खाडेराव के सैनिक ऐसे लडे जैसे शेर लडते हैं। शेर के सामने कितना ही बलशाली जानवर हो उसे वह अपनी रणनीति से मार देता है ओर शेर के शरीर पर एक खरौच तक नही आती। 

ऐसा ही इस युद्ध् में हुआ था। पठान सेना रण छोड चुकी थी,खाडेाराव सेना की सिर्फ एक योद्धा घायल हुआ था। खाडेराव की सेना कटे हुए सद्दी खां के सिर के साथ शिवपुरी की ओर चल दी। खाडेराव की सेना के पहुचंने से ही पूर्व इस युद्ध् के समाचार शिवपुरी पहुंच चुका था। 

खाडेराव के स्वागत के लिए शिवपुरी नगर तैयार था। जगह—जगह तोरण द्धवार साजए गए। खाडेराव की सेना पर पुष्प वर्षा की गई। जब खाडेराव महल के दरवाजे पर पहुुंचे तो राजा अनूपसिंह की पत्नि जिन्है खाडेराव काकी मां कहते थे उन्होने वीरवर खाडेराव की सेना की आरती की। 

खाडेराव अब सद्दी खां का कटा सर लेकर दरबार में पहुंचे। इस दृश्य को देखकर सभी दरबारी खाडेराव की वीरता का गुणगान करने लगें,महाराज अनूपसिंह भी अपने उस निर्णय को याद करने लगे जिसे सालो पूर्व भटनावर में बालक खाडेराव को उनके पिता से मागते हुए किया था। आज वे फूले नही समा रहे थे। उन्है लग रहा था कि नरवर का दुर्ग अब दूर नही है। 

महाराज अनूपसिंह ने खाडेराव को अपनी राज्य का सेनापति घोषित करते हुए कूर्मवंश की हीरे से जडित खड्ग,एक रत्न जडित कलंगी,शिरोपाव,दो हाथी,दस काबूली घोडे और एक सहस्त्र स्वर्ण मुद्राए भेट किए। आज खाडेराव का लालन पालन राजमहल मे रानी अपने बेटे से भी ज्यादा कर रही थी। 

उन्है गर्भ हो रहा था कि वे वीरवर जैसे योद्ध की काकी मां है। खाडेराव ने कुछ दिन ओर शिवुपरी में गुजारे,उन्होने महाराज और मंत्रियो के साथ आगे राज्य की योजनाओ को लेकर चर्चा की। खाडेराव गंताक से आगे रहेगी। खाडेराव का अगला लक्ष्य नरवर दुर्ग था।