शिवपुरी। म.प्र. शासन स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा जारी पत्र क्रमांक एफ 44-01/2019/20-2 दिनांक 15 जनवरी 2019 को जारी पत्र में कहा गया है कि सभी शासकीय शालाओं में शिक्षक अभिभावक बैठकों को नियमित आयोजन किया जाएगा इस अनुकरण में प्रदेश की समस्त सभी शासकीय शालाओं में 20.2.19 को प्रात: 10 बजे से 4:30 बजे तक शिक्षक अभिभावकों को आमंत्रित किया जाएगा। जिसकी सूचना छात्रों के माध्यम से अभिभावकों तक पहुंचाई जाएगी।
बैठक का उद्देश्य प्रत्येक अभिभावक से चर्चा की जाएगी जिसमें विद्यार्थियों की अर्धवार्षिक परीक्षा की कॉपियों अभिभावकों को दिखाई जाएगी। किन-किन विषयों में छात्र को अधिक मेहनत की आवश्यकता हैं। इसकी जानकारी भी दी जाएगी। साथ ही विद्यार्थी की उपस्थिति से भी अवगत कराया जाएगा तथा गैर शैक्षणिक गतिविधियों से भी मैं भी रूचि जैसे प्रश्न भी पूछे जायेंगे।
शिक्षा विभाग द्वारा उक्त आदेश दिए जाने का आशय यह माना जा सकता हैं कि विद्यालय में छात्रों के पालकों के साथ बैठक करने से छात्रों की खामियों को पालकों को बताया जाए तथा उन खामियों को किस प्रकार से दूर किया जाए, लेकिन क्या शासन की मंशा के अनुरूप प्रदेश भर के शासकीय विद्यालयों में शिक्षक और पालकों की होने वाली बैठकों से शासन की मंशा पूर्ण हो सकेगी?
अधिकारी नहीं लेते विद्यालयों की मासिक रिपोर्ट
यदि वरिष्ठ अधिकारी जिले में संचालित हजारों स्कूलों की बारीकी से परीक्षण करें तो न तो विद्यालयों के रजिस्ट्ररों में बच्चों की संख्या तो बेसुमार दर्ज हैं वहीं वार्षिक परीक्षा फल पत्रकों को देखें तो समझ में आ जाएगा कि आधे से कम बच्चे ही परीक्षा में शामिल हुए हैं और शेष सैकड़ों की संख्या में छात्रों की संख्या अनुपस्थित दर्शाये गए हैं।
जबकि मजे की बात तो देखिए की आने वाले सत्र में अनुपस्थित छात्रों का नाम विद्यालय के उपस्थिति रजिस्टर से गायब कर दिया जाता हैं। जबकि शाला प्रभारी का दायित्व हैं कि उन अनुपस्थि छात्रों की उपस्थिति सुनिश्चित करायें। लेकिन अधिकांश विद्यालयों में पदस्थ शिक्षकों द्वारा शासकीय आदेशों को कूड़ेदान के हवाले कर दिया जाता हैं। तब फिर शासन द्वारा दिए ऐसे आदेशों का क्या मतलब रह जाता हैं?
शासन को पहुंचा रहे हैं आर्थिक क्षति
ब्लॉक तथा जिला स्तर पर पदस्थ अधिकारियों द्वारा चंद रूपयों की खातिर अपने कर्तव्य से मुंह मोड़ लिया जाता हैं। जबकि विद्यालयों में यह देखने में आया है कि रजिस्ट्ररों में छात्र संख्या सैकड़ों दर्ज होती हैं जबकि उपस्थिति महज दर्जनों तक सिमट कर रह जाती हैं। शासन द्वारा गरीब तबके के बच्चों को यूनिफार्म, मध्यान भोजन, छात्रवृत्ति एवं अनेक मदों में दी जाने वाली आर्थिक सहायता रजिस्टर में दर्ज बच्चों के आधार पर ले ली जाती हैं लेकिन जब विद्यालय में छात्रों की संख्या में सीमित होने के बावजूद शेष बचे छात्रों का मध्यान्ह भोजन यूनिफार्म का पैसा तथा छात्र वृत्ति में बढ़े स्तर पर घालमेल विगत कई वर्षों से किया जा रहा हैं।
गौर तलब हैं कि शिवपुरी में हुआ ड्रेस घोटाला अखबारों की सुर्खियों में रहा हैं। लेकिन जिले में पदस्थ जिला शिक्षा केन्द्र एवं शिक्षा विभाग के कर्तधर्ताओं को न तो शासन की योजनाओं को क्रियान्वयन कराने में कोई रूचि हैं और न ही शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने में?
पालक शिक्षक संघ बैठक का क्या औचित्य
मध्यप्रदेश शासन शिक्षा विभाग द्वारा जारी आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि पालक शिक्षकों की बैठक नियमित रूप से प्रत्येक माह किया जाना चाहिए। लेकिन विगत कई वर्षों से पालक शिक्षक संघ की बैठकें ही आयोजित नहीं की गई। एक बार फिर शिक्षा विभाग ने अपना आदेश जारी कर बैठकें करने को आदेशित किया हैं। जब शिक्षा विभाग के अधिकारियों द्वारा विद्यालयों का समय-समय पर निरीक्षण तो किया जाता है लेकिन निरीक्षण में पाई गई खामियों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है।
परिणाम स्वरूप शासकीय विद्यालयों में लगातार घटती छात्रों की संख्या इसका स्पष्ट उदाहरण माना जा सकता हैं। जिले में कई ऐसे विद्यालय हैं जहां छात्रों की संख्या ही नाम मात्र की हैं। तब ऐसी परिस्थिति में अभिभावक किस तरह बैठकों का हिस्सा बन सकेंगे इसमें संदेह हैं। शासन द्वारा छात्रों के हितों में कई प्रकार के कार्यक्रम संचालित करने के निर्देश तो जारी किए जाते हैं लेकिन यह जानने की कोशिश नहीं की जाती कि उनके आदेशों पर कितना अमल हो पा रहा हैं। उक्त आदेश पर कितना अमल होगा?
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