सद्दी खान के 7 हजार सैनिक और खांडेराव के सिर्फ 60 सैनिक, कवि ने इस युद्ध वर्णन में लिखा परशुराम सो प्रगटियो श्री खण्डुन बलबान

कंचन सोनी शिवुपरी। उधर शिवपुरी की सीमाओ पर संकट शुरू हो गया था। गद्दी पठान सीधे-सीधे राजा अनूपसिंह को धमकी देकर गया है कि मेरी मांगे पूरी नही की तो शिवपुरी राज्य की ईट से ईट बजा दूंगा। तत्काल खांडेराव को भटनावर संदेश भेजा गया कि महाराज अनूपसिंह ने तत्काल शिवपुरी से आने की आज्ञा दी है।

खाडेराव रासो ने कवि ने लिखा है कि राजा अनूपसिंह वृद्ध् हो चुके थे। महाराज अनूपसिंह का पुत्र गजसिंह राजकाज में इतना निपुण नही था,लेकिन महाराज को खाडेराव के  कंधो पर पूर्ण विश्वास था। इसलिए राजा अनूपसिंह ने वीरवर खाडेराव को भटनावर रहने का आदेश दिया और 60 गांवो का जमींदार घोषित कर दिया था। सप्ताह में एक बार शिवपुरी आकर राजकाज में हाथ बटाते और सुरक्षा व्यवस्था चर्चा करते थे।

ऐसे ही समय बीत रहा था कि एक दिन सद्दी खांन अपनी सीमा सहित शिवुपरी आ धमका और राजा से दरबार में मिलने की ईच्छा व्यक्त की। राजा अनूपसिंह ने पठान को राजदरबार में हाजिर होने का आदेश दिया। सद्दी खांन ने अपने अंगरक्षको के साथ दरबार में प्रवेश किया और राजा को प्रणाम करते हुए कहा कि महाराज में अपनी सेना सहित मालवा से आया हूं।

मेरे पास 2 हजार घुडसवार ओर 5 हजार पैदल सैनिको की सेना है,मेरे लडाके किसी भी जंग में फतहे करने की हुनर रखते हैं। मैं अपनी सेना सहित आपकी खिदमत में रहना चाहता हूं। अगर आप हमे अपने साथ रखेंगें तो हम आपकी जीजान से सेवा करेंगें। 

महाराज अनूपसिंह ने खाडेराव की ओर देखा खाडेराव सबसे पहले तुम्ही अपनी राय दो। खाडेराव ने कहा कि पठान का प्रस्ताव राज्य की सुरक्षा व्यवस्था के लिहाज से अच्छा हैं,लेकिन पठान सरदार को राज्य की उत्तरी सीमा का रक्षक बनाया जाए। 

महराज सहित दरबार के मंत्रीयो को खाडेराव की सुझाव पंसद आया। निश्चित सेवा शर्ते तय करने के बाद सेना की व्यवस्था करने के आदेश राजा अनूपसिंह ने अपने दिवान को दिए और पठान सरदार को अपनी सेना सहित राज्य के उत्तरी सीमा की कमान संभालने के आदेश दिए। आज्ञा पाकर खांन सरदार अपनी सेना सहित राज्य की उत्तरी सीमा की ओर कूच कर गया। 

खाडेराव को इस घटना के पूर्व ही गुप्तचरो ने बता दिया था कि सद्दी खांन मालवा से लूटपाट करता हुआ इसी ओर बढ रहा हैं हो सकता है कि वह शिवपुरी राज्य की सीमा में प्रवेश कर सकता हैं,लेकिन ऐसा हुआ नही। फिर भी खाडेराव को लगा कि हो सकता है कि यह राज्य की सुरक्षा व्यवस्था और सैनिक ताकत को पता करने के लिए यह स्वांग रचा हो। इसी कारण खाडेराव ने सद्दी खांन को राज्य की सबसे दूर उत्तरी सीमा पर भेज दिया था। 

दिन और माह बीतते गए। खाडेराव भटनावर में थे और एक दिन सद्दी खान अपने अंगरक्षको के साथ दरबार में हाजिर हुआ। राजा के सामने हठपूर्वक अपनी मांगे रख दी कि मेरी सेवा का वेतन दुगना किया जाए,नही तो इस राज्य की खैर नही। महाराज अनूपसिंह ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया वह सभागार में महाराज की शान में अभद्रता करते हुए अपने पैर पटकता हुआ बहार निकल गया। 

दूसरे दिन से महाराज के पास खबरे आने लगी कि सद्दी खांन ने शिवपुरी के तीन गांव नोहरी बछोरा और सिंहनिवास को लूट लिया। भयंकर मारकट मचा दी। राज्य के नागरिक शिवपुरी महाराज के पास अपनी सुरक्षा के लिए गुहार लगाने लगे। यह समाचार शिवुपरी के आसपास फैल गया। राज्य के नागरिक भयग्रस्त हो गए। 

तत्काल राजा ने खाडेराव को अपनी विशेष टूकडी सहित शिवपुरी आने का संदेश भेजा। टूकडी सहित आने के ओदश से खाडेराव समझ गए कोई विशेष सकंट आ गया हैं। खाडेराव अपनी टूकडी सहित बिजली की गति से शिवुपरी पहुचे और राजा से भेट की। महाराज ने सद्दी खांन की पूरी बात बताई।

खाडेराव ने कहा कि महाराज में अभी सद्दी खांन को रोकता हू। महाराज ने कहा कि तुम सद्दी खांन के अभियान पर निकलना आज सेना को तैयार करने का ओदश देता हू। खाडेराव ने कहा कि अब समय नही है कल तक पता नही वह कितने गांवो को लूट लेगा,निहत्थो की हत्या कर देगा। 

अनूपसिंह ने कहा कि उसकी सेना में 7 हजार सिपाही है और अभी तुम्हारे पास 60 लडाको की टूकडी हैं,कैसे संभव है। खाडेराव ने कहा लगता है कि महाराज को अपने पुत्र की तलवार पर भरोसा नही हैं। मेरी तलवार को अब सिर्फ खान की गर्दन दिख रही है।खाडेराव के जोश को देख कर महाराज ने उसे सद्दी खांन अभियान पर जाने का आदेश देते हुए कहा कि आज ही चलो जाओ कल में गजसिंह सहित सेना को भेज दूंगा। 

सूचना लगातार मिल रही थी कि सद्दी खांन किस ओर है। खाडेराव रासो में कवि ने लिखा कि सद्दी खांन की बूढा डोंगर गांव की ओर बड रहा था। वीरवर खाडेराव अपनी  60 वीर सैनिको की घोडे की टूकडी को लेकर बूढा डोंगर गांव की ओर बिजली की गति से बड गए। कवि ने लिखा कि खाडेराव ने ऐसे युद्ध् के लिए अपनी टूकडी के को विशेष प्रशिक्षण दिया था,कि संख्या दुश्मन की अधिक हो तो कैसे युद्ध् करना है। लक्ष्य सेना का सेना नायक रहना चाहिए न की सैनिक

कैसे भी कर खाडेराव की चारो ओर सुरक्षा घेरा बनाकर खाडेराव को सेनानायक तक पहंचने मे मदद करनी है,आगे का काम स्वयं वीरवर खाडेराव की तलवार करेंगी। खाडेराव ने सद्दी खांन की सेना को बूढा डोंगर गांव पहुचने से पूर्व ही रोक लिया। और उसे और उसकी सेना को आत्मसमर्पण करने को ललकारा। सद्दी खांन राक्षसो जैसा हसा कि मुठठी भर सैनिको को साथ लाए हो खाडेराव और मुझे आत्म समर्पण करने का कहा कर रहे हो।

युद् का शंखनाद को गया। खाडेराव रासो में कवि ने लिखा हैं कि यह युद्ध् कार्तिक सुदी 6 मंगलवार सम्बत 1762 के दिन हुआ। कवि ने लिखा की सद्दी खांन की सेना मे 7 हजार संख्या का सैनिक बल था और सामने से वीरवर खाडेराव के पास 60 घुडसवार सैनिक थे। किसी भी प्रकार से जीत संभव नही दिख रही थी। लेकिन इस युद्ध् के बाद कवि ने लिखा कि

परशुराम सो प्रगटियो श्री खण्डुन बलबान,ओर इक्ललौ होई सम्हौ भवव सह अर्जुन मद ठाहि दिया। ईकई सबेर छत्रीनि पै जामदग्नि सो देख लिय। खाडेराव रासो आगे क्रमंश जारी रहेगी अगले अंक में इस युद्ध् का वर्णन खाडेराव रासो मे कवि ने किया है कि खाडेराव के वीर सैनिको तलवार की गति इतनी थी कि दुश्मन सेना सांस भी नही ले पा रही थी। और वीरवर खाडेराव की तलवार दुशमन सैनिको के सर ऐसे काट रही थी जैसे स्वंय भगवान परशुराम सहस्त्रबाहू की सेना से अकेले भिड गए हों