कंचन सोनी/शिवपुरी। बालक इतना कह कर अपने मित्रो के साथ के साथ भोजन कर खेलने लगेंं। अश्वरोही भी अंगोछे पर लेट गया और पीपल पर सर रखकर सो गया। एक प्रहर बीता होगा कि तभी घोडा हिनहिनया उससे अशवारोही की नींद खुल गई। उसने देखा कि सभी बालक सो रहे है,अचानक उसकी नजर इस गौरवर्ण वाले सोते हुए बालक पर पडी,उसने देखा कि बालक के मुख पर धुप आ रही है और उस धूप से बचाने के लिए साक्षात कालस्वरूप अपने पूरे फन फैलाए एक नाग खडा था,नाग ऐसे फन फैलाए खडा था कि उसके मुख पर धूप न पडे। इस विचित्र चित्र को देख् कर अश्वारोही की आंखे विस्मित होने लगी,और सोचने लगा कि की ये बालक जाग न जाए।
अश्वारोही ने अपने तरकश से तीर निकाला और नागराज की ओर निशाना साधा दिया। अश्वारोही ने सोचा कि अगर तलवार या बंदूक का प्रयेाग करेंगेें तो यह सर्प बालक को नुकसान पहुंचा सकता हैं। इसलिए बाण के प्रयोग से सर्प का फन काटा जा सकता हैं,यही अश्वारोही को एक मात्र इस बालक की रक्षा करने का उपया सूझा।
अश्वारोही के मन में यह उथल पुथल चल ही रहे और निशाना साधाने के लिए अपने मन को एकाग्र किया तो उसने देखा पीपल के पत्ते हवा से हिल रहे थे और जिस ओर से बालक के मुख पर धुप आती थी सर्प अपने फन उस ओर ही कर लेता था,ऐसा लग रहा था कि फन फैलाए सर्प आक्रमण नही बल्कि धूप को रोकने के का प्रयास कर रहा हैं।
अश्वारोही के मन में अब जिज्ञासा प्रबल होने लगी ऐसा उसने कभी नही देखा,कि कोई सर्प कभी इतनी देर तक अपने फन फेलाए अपने शिकार पर रखता हों,क्या यह सर्प इस बालक को धूप से बचाने के लिए फन फैलाए खडा है या इस बालक पर हमला करने के लिए। अश्वारोही के मन को इस जिज्ञासा के उत्तर मिलते तो उसने देखा की सर्प अपने फन को समेटते हुए वही पास की विलुप्त हो गया।
अब अश्वारोही के मन को शांति मिली चलो खतरा टल गया। पर अश्वारोही के मन में प्रश्नो की झडी लग गई कि इतना सौम्य मुख मंडल,संस्कार और शरीर की बनाबट उच्चकोटि के है यह एक समान्य बालक नही हो सकता। उसे लगा की यह बालक अवश्य ही कोई अवतारी पुरूष हैंं। उसने उसके माता—पिता से मिलने का निश्चय किया।
एक प्रहर और बीतने पर सूर्य का ताप कुछ कम हो गया। अश्वारोही उठा और अपने अश्व की पीठ पर हाथ फैरने लगा। अश्व का पसीना सूख चूका था। उक्त राजपुरूष ने बालको को उठाने के लिए आवाज लगाई कि उठो बालकों संध्या होने को आई हैं।
इस आवाज को सुनकर सबसे पहले ब्राहम्ण बालक उठा ओर पश्चिम दिशा की ओर देखने लगा और बोला ओह आज तो हम अधिक सो गए। श्रीमान आप हमे क्षमा करे आपको कष्ट हुआ। यह सुन अश्वारोही बोला नही बेटा आज का दिन बडा ही भाग्यवान हैं कि तुमसे भेट हुई। अच्छा चलो अपने साथियो को जगाओ फिर तुम्हारे गांव चलेंगें,अच्छा श्रीमान कह कर बालक ने पुकारा अरे उमराव,लच्क्षण,माधौ उठो भाई देर हो गई हैं।
गाये आने वाली होंगी,बछडे भूखे हैं। सभी बालक जाग गयें। अश्वारोहरी ने गौर वर्ण वाले बालक से फिर पूछा बेटा तुम्हारा नाम क्या हैं,तुमने अपना नाम तो बताया ही नही हम किस नाम से तुम्है पुकारे। श्रीमान आपने पूछा ही नही इस कारणा मैने बताया ही नही। मेरा नाम खाडेराय है।
अश्वारोही को बालक को नाम से जानकर प्रसन्नता हुई।ओर यह सोचने लगा कि यह बालक कोई दिव्य पुरूष है,तभी सोते समय नाग देवता इसकी रक्षा करते हैं। इस प्रकार का रंग रूप और स्वभाव है वैसा ही वीरता पूर्ण इसका नाम हैं। अश्वारोही ने अपने काबूली अश्व की लगाम हाथ पकडी ओर इन बालको के साथ साथ इनके साथ चलने लगा।
खाडेराव इस राजपुरूष के साथ चलने लगा कि आज बाबा इस अतिथि से मिकलकर बहुत प्रसन्न होगें,लेकिन खाडेराव यह नही जनता था कि उसके साथ नरवर के राजा अनुपसिंह उसके साथ चल रहे थे। राजा अनूप सिह नरवर के कछवाहा वंश के राजा थे कछवाहा वंश के शोर्य की गाथाओ से भारत का इतिहास भरा हुआ है इस वंश के राजाओ ने आधे भारत में राज्य किया था ओर अनेको भव्य ईमारतो का निर्माण इस वंश के राजाओ ने कराया था। इसमे कनकमण का रथमंदिर प्रमुख निर्माण हैं,लेकिन इस समय नरवर के राजा अनुप सिंह मुगल बादशाह औरंगजेब की अधीनता में राजकाज चलाते थे,लेकिन नरवर के दुर्ग पर उनका अधिपत्य नही था।
मुगलो का एक फौजदार नरवर के विशाल दुर्ग पर काबिज था। ग्रंथ खाडेराव रासो आगे क्रंमश: रोचक घटनाए आगें प्रकाशित होगी। कि कैसे राजा अनुपसिंह ने अपना परिचय छुपाते हुए खाडेराव के घर में एक रात अथिति के रूप में रूके और बालक खाडेराव के द्धारा गए गाय को अपने एक हाथ से सींग पकडकर रास्ते से ऐसे हटा देना जैसे किसी लकडी के टूकडे को फैक देना। इस फुर्ती ओर वीरता से अभिभूत होकर राजा अनुपसिंह के मन में अपने राज्य के लिए खाडेराव को गोद लेने का विचार उनके मन में आया।
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