शिवपुरी। प्रदेश की मिडिया में यह खबर बडी तेजी से आ रही है कि शिवपुरी-गुना लोकसभा सीट से अजेय सिंधिया को घेरने के लिए रणनीति बना रही है कि सांसद सिंधिया को रण में घेरने के लिए मप्र के पूर्व सीएम शिवराज सिंह को मैदान में उतारा जाए। जिससे सांसद सिंधिया अपनी ही लोक सभा सीट को बचाने के लिए संघर्ष करना पडे।
लेकिन राजनीतिक पंडितो को कहना है कि यह भी हो सकता है कि यह रणनीति शिवराज को घेरने के लिए भी भाजपा का एक धडा बना सकता हैं। यह बात सिद्ध् है कि सिंधिया यहां से अजेय हैं,उनसे जो भी लडेगा वह हारेगा।
भाजपा का एक धडा मप्र को शिवराज से मुक्त करना चाहता हैं,इसी रणनीति के तहत ही शिवराज सिंह को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया है कि कैसे भी शिवराज सिंह से प्रदेश मुक्त हो,लेकिन ऐसा हो नही रहा हैं। अगर सांसद सिंधिया के खिलाफ भाजपा अगर शिवराज सिंह को रण में भेजती है तो यह बात सत्य है कि सांसद सिंधिया की रास्ते आसान नही होंगें और और शिवराज सिंह अगर ज्यादा वोटो से चुनाव हारते है तो कही न कही उनका ग्राफ नीचे अवश्य आऐगा।
सिंधिया राजवंश का प्रभाव है इस संसदीय सीट पर
गुना लोकसभा सीट पर सिंधिया परिवार का प्रभाव है। सिंधिया परिवार के सदस्य चाहे किसी भी दल से अथवा निर्दलीय रूप से यहां से चुनाव लड़े हों वह हमेशा विजयी रहे हैं। यही नहीं सिंधिया परिवार ने जिसे भी चुनाव लड़वाया है जीत उसकी हुई है। इस सीट से राजमाता विजयाराजे सिंधिया और स्व. माधवराव सिंधिया अनेक बार जीत चुके हैं। दोनों ही अलग-अलग दल से विजयी रहे हैं।
स्व. माधवराव सिंधिया 1971 में जहां जनसंघ के टिकट पर चुनाव लडक़र विजयी हुए थे वहीं 1977 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उन्होंने जीत हासिल की। इसके बाद वह कांग्रेस से इस सीट पर कई बार सांसद रहे। गुना सीट पर राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने उन आचार्य कृपलानी को चुनाव जिताया था जिन्हें जीतने के बाद भी अपने निर्वाचन क्षेत्र का नाम याद नहीं रहा था। इस सीट से 1984 में स्व. माधव राव सिंधिया ने महेंद्र सिंह कालूखेड़ा को चुनाव लड़ाकर जिताया था।
2002 से इस सीट से लगातार ज्योतिरादित्य सिंधिया सांसद हैं और उनकी चार बार की जीत में भाजपा के स्थानीय प्रत्याशियों से लेकर बाहरी मजबूत प्रत्याशी तक शामिल रहे हैं। 2002 में उपचुनाव में उन्होंने जहां देशराज सिंह यादव को साढ़े चार लाख मतों से पराजित किया। वहीं 2004 में वह पूर्व विधायक हरिवल्लभ शुक्ला से 87 हजार मतों से जीते।
2009 में उन्होंने उस समय के कैबिनेट मंत्री नरोत्तम मिश्रा को ढाई लाख मतों से और 2014 की मोदी लहर में कट्टर महल विरोधी जयभान सिंह पवैया को 1 लाख 20 हजार से अधिक मतों से पराजित किया। आंकड़े इस बात के गवाह है कि अभी तक इस लोकसभा क्षेत्र से कभी भी सिंधिया परिवार को मजबूत चुनौती नहीं मिल सकी है।
यहीं कारण है कि भाजपा ने जहां 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश में 29 में से 29 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा था वहीं भाजपा ने लक्ष्य घटाकर 27 सीटों का कर दिया है। माना जा रहा है कि इन दो सीटों में से एक मुख्यमंत्री कमलनाथ की छिंदवाड़ा और दूसरी सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की गुना सीट है। विधानसभा चुनाव में ग्वालियर चंबल संभाग में कांग्रेस का प्रदर्शन आशातीत रहा है। विधानसभा चुनाव के आंकड़े यदि देखें तो भाजपा को गुना, ग्वालियर, भिंड और मुरैना सीटों पर पराजय मिल रही है।
ग्वालियर लोकसभा सीट पर जहां से केेंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर सांसद हैं, कांग्रेस को डेढ़ लाख से अधिक मतों से विजय हासिल हुई। सिर्फ गुना सीट ही ऐसी रही जहां भाजपा ने कांग्रेस की तुलना में 16 हजार मतों की बढ़त हासिल की, लेकिन इसके बाद भी यह माना जा रहा है कि गुना सीट पर सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए कोई संकट नहीं है। इसी कारण भाजपा गुना सीट पर सिंधिया की घेराबंदी के लिए मजबूत उम्मीदवार उतारने के लिए गंभीरता से विचार कर रही है। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है।
Social Plugin