शिवपुरी। प्रदेश में आचार संहिता प्रभावी हो चुकी हैं। भाजपा और कांग्रेस टिकिट में टिकिट के चाहने वाले नेताओ में घामासान शुरू हो गया हैं। जिले में 5 विधानसभा सीट हैं। अभी कांग्रेस 3 पर और भाजपा 2 पर विराजमान हैं। भाजपा इस बार अपना आकंडा बढाने की चाह अवश्य होगी। शाह के दौरे के बाद टिकिट बटांकन के बादलो के धुध छट गई हैं। जिले की पांच विधानसभा सीटों में से तीन विधानसभा सीटों शिवपुरी, करैरा और पिछोर में संभावित प्रत्याशियों को पार्टी ने संकेत दे दिया है जबकि दो विधानसभा सीटों पर भाजपा कांग्रेस प्रत्याशियों को देखकर टिकट देगी। पोहरी और कोलारस में भी अब दावेदारों की संख्या सीमित होकर दो से तीन रह गई है।
शिवुपरी से यशोधरा राजे का टिकिट पक्का, हुई गुप्त मिटिंग
भाजपा सूत्रों ने बताया कि अमित शाह के दौरे के एक दिन पूर्व पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह और प्रदेश संगठन महामंत्री सुहास भगत हैलीकॉप्टर से तैयारियों का जायजा लेने के लिए शिवपुरी आए थे। इस अवसर पर केबिनेट मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया भी शिवपुरी में थीं। भाजपा सूत्र बताते हैं कि प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह, संगठन महामंत्री सुहास भगत और केबिनेट मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया की गुप्त बैठक परिणय वाटिका में हुई।
इस बैठक में बताया जाता है कि प्रदेश पदाधिकारियों ने जिले के भाजपा प्रत्याशियों के नाम पर विचार विमर्श किया। यशोधरा राजे को बताया गया कि शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र से उनका नाम फायनल है, लेकिन यदि वह चाहें तो अपनी इच्छा से अन्य विधानसभा क्षेत्रों का भी चयन कर सकती हैं। सूत्र बताते हैं कि यशोधरा राजे ने शिवपुरी से चुनाव लडऩे की इच्छा व्यक्त की।
पार्टी पदाधिकारियों ने बताया कि इस बैठक में जिले की पांच विधानसभा सीटों के प्रत्याशियों के विषय में निर्णय लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को इससे अवगत करा दिया जाएगा। करैरा से भाजपा ने सर्वे रिपोर्ट के आधार पर रमेश खटीक के नाम का चयन किया है।
करैरा में रमेश खटीक सबसे उपर, ओमप्रकाश का पत्ता साफ
रमेश खटीक 2008 में करैरा विधानसभा सीट से 12 हजार से अधिक मतों से विजयी हुए थे, लेकिन 2013 में भाजपा ने उनका टिकट काटकर कोलारस के पूर्व विधायक ओमप्रकाश खटीक को टिकट दिया था और ओमप्रकाश उस चुनाव में इतने ही मतों से पराजित हुए थे। 2018 के चुनाव में भी करैरा से रमेश खटीक और ओमप्रकाश खटीक दावेदार थे, लेकिन सूत्र बताते हैं कि पार्टी ने सर्वे रिपोर्ट को आधार मानकर तथा जिले से फीडबैक लेकर रमेश खटीक को टिकट देने का निर्णय लिया और उन्हें उनकी उम्मीद्वारी के विषय में पार्टी ने संकेत भी दे दिया।
पिछोर में प्रीतम लोधी पर लगाऐगी भाजपा दांव
पिछोर विधानसभा क्षेत्र से पिछले चुनाव में प्रीतम लोधी कांग्रेस प्रत्याशी केपी सिंह से 6500 मतों से उस स्थिति में पराजित हुए थे जब पार्टी ने उनकी उम्मीद्वारी को गंभीरता से नहीं लिया था और भाजपा ने इस सीट को हारी हुई मानकर चुनाव लड़ा था। पिछोर में भाजपा का कोई भी बड़ा नेता प्रचार करने नहीं आया था इसके बाद भी प्रीतम लोधी ने चार बार से जीत रहे विधायक केपी सिंह के दांत खट्टे कर दिए थे।
हर चुनाव में औसत रूप से 18 से 20 हजार मतों से जीतने वाले केपी सिंह 2013 में बड़ी मुश्किल से 6500 मतों से जीते थे। भाजपा की गुटीय राजनीति में प्रीतम लोधी पूर्व मुख्यमंत्री उमाभारती के समर्थक हैं। इस विधानसभा क्षेत्र में उनकी लोधी जाति के 50 हजार से अधिक मतदाता हैं। सूत्र बताते हैं कि पिछोर से भी प्रीतम लोधी का टिकट तय माना जा रहा है। हालांकि इस विधानसभा क्षेत्र से उनके अलावा राघवेन्द्र शर्मा, भैयासाहब लोधी आदि भी टिकट की मांग कर रहे हैं।
पोहरी: प्रहलाद पर ही भरोसा, लेकिन बिरथरे की उम्मीद भी
पोहरी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा सूत्र बताते हैं कि यदि कांग्रेस ने पहले धाकड़ उम्मीद्वार की घोषणा कर दी तो पार्टी दो बार के विधायक प्रहलाद भारती का टिकट काटकर नरेन्द्र बिरथरे को टिकट देगी। अन्यथा प्रहलाद भारती को टिकट मिलने के अधिक आसार हैं। श्री भारती मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केबिनेट मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया के अत्यंत निकट माने जाते हैं। वैसे भाजपा में सलोनी धाकड़ का दावा भी मजबूत है।
कोलारस में घमासान, वीरेन्द्र नं 1 पर, सुरेन्द्र की सुर्खिया खीच रही है ध्यान
कोलारस में भाजपा दो विधानसभा चुनावों से पराजित हो रही है। 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा 25 हजार मतों से पराजित हुई थी, लेकिन छह माह पहले हुए उपचुनाव में भाजपा की हार का अंतर घटकर 8 हजार मतों पर सिमट गया था। इस कारण भाजपा कोलारस सीट जीतने के प्रति आश्वस्त नजर आ रही है।
इस विधानसभा क्षेत्र से जहां तक भाजपा उम्मीद्वारी का सवाल है तो पूर्व विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी और पूर्व विधायक देवेन्द्र जैन अथवा उनके अनुज जितेन्द्र जैन गोटू, और सुरेन्द्र मडवासा को टिकट मिल सकता है। इस पूरे गणित में सबसे ज्यादा अहम बात यह है कि सुरेन्द्र शर्मा ने अल्प समय में इस क्षेत्र में खासी पकड बनाई हैं, किसी न किसी तरह वह लगातार सुर्खिया में बने रहने के कारण पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का भी ध्यान अपनी और खीचा हैं।
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