शिक्षको की योग्यता वाली खबर में स्वयं उलझ गए डीपीसी शिरोमणि दुबे

एक्सरे ललित मुदगल, शिवपुरी। छापस रोग से ग्रसित डीपीसी शिरोमणि दुबे ने आज फिर अपने विभाग के खिलाफ एक न्यूज प्लांट करा दी। यह न्यूज एक स्कुल के निरिक्षण की है। इस स्कुल के निरिक्षण में डीपीसी शिरोमणि दुबे ने पाया कि इस स्कुल के शिक्षको और बच्चो का शैक्षाणिक स्तर कमजोर है। अपने विभाग को बदनाम करने वाली इस खबर में डीपीसी शिरोमणि दुबे स्वयं भी उलझ गए। डीपीसी शिरोमणि दुबे पिछले 8 वर्ष से डीपीसी यहां जमे हुए है, उन्होने अपने मूल काम को छोड आरएसएस के कार्यक्रमो के मंचो की शोभा बढ़ाई है। 

यह खबर छपी है आज एक समाचार पत्र में 
जिले के भौती कस्बे के प्राथमिक विद्यालय टपरिया में शेरगढ में डीपीसी शिरोमणि दुबे के औचक निरिक्षण कर शिक्षको की योग्यता का आंकलन किया। इस टेस्टिंग ने ग्रामीण स्कूलों में शिक्षा की जमीनी हकीकत को उजागर कर दिया। हालात यह थे कि एक शिक्षक एक समान्य सा भाग नही कर पाया और शिक्षक गणित के अंको को शब्दो में नही लिख पाया। 

शेरगढ के इस स्कुल का डीपीसी ने जब बच्चो का शैक्षाणिक स्तर चेक किया तो बहुत नीचे पाया। फिर डीपीसी ने शिक्षक का पढाने का स्तर चैक किया तो शिक्षक बालक दास एक सामन्य सा भाग नही दे सका,फिर डीपीसी ने इसी स्कूल के एक अन्य शिक्षक संजय सिंह परमार को गणित के अंको को शब्दो में लिखने को कहा तो वह अंको को हिन्दी के शब्दो में नही लिख सका। डीपीसी के इस मामले में अयोग्य शिक्षकों को विभाग में रहने से छात्रों का नुकसान होता है इसलिए कमजोर शैक्षाणिक स्तर वाले शिक्षको के विरूद्व सेवा समाप्ति के प्रस्ताव भेज जाऐगें। 

ज्ञात हो कि शासन ने सर्व शिक्षा अभियान की शुरूवात इस कारण शुरू की थी,कि शिक्षको और बच्चो का शैक्षाणिक स्तर उच्च हो। इस कारण इस मिशन की शुरूवात की। शासन ने जिला स्तर पर ऐकेडमीक पद डीपीसी प्रकट किया। जिन शिक्षको का शैक्षाणिक स्तर कमजोर है ऐसे शिक्षको चयनित डाईट के माध्यम से प्रशिक्षण करना सर्व शिक्षा अभियान के डीपीसी का काम है। 

डीपीसी शिरोमणि दुबे सन 2011 से शिवपुरी में डटे हुए है। सारे विवादित काम करने  के बाद भी वे अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब हो जाते है। डीपीसी के निरिक्षण की खबर को ग्वालियर से प्रकाशित एक समाचार पत्र ने अपनी लीड खबर बनाया है। यह खबर ग्वालियर के केवल 1 ही समाचार पत्र में प्रकाशित हुइ है। सवाल यह है कि डीपीसी शिरोमणि दुबे ने अपने ही विभाग के खिलाफ यह खबर क्यो प्लांट कराई। 

अगर इस निरिक्षण का प्रेस नोट डीपीसी कार्यालय से जारी हुआ है तो सभी समाचार पत्रो में प्रकाशन क्यो नही हुआ है। छपास रोग से ग्रसित डीपीसी शिरोमणि दुबे अपने विभाग को बदनाम करने के लिए निरिक्षण करते समय एक पर्सनल पीआरओ लेकर चलते है। अपने ही विभाग को बदनाम करने वाली खबर से या इस खबर के प्रकाशन से शिक्षा विभाग को क्या फायदा हुआ,जो गांव खेडे के पालक अपने बच्चो को सरकारी स्कुल में एडमिशन कराने का प्लान बना रहे थे वे इस तरह की खबरो को पढ-कर अपने गांव या पास के गांव के प्राईवेट स्कुल में भर्ती करा सकता है।

दूसरा सवाल यह खडा होता है कि श्रीमान डीपीसी महोदय आप पिछले 8 वर्षो से शिवपुरी में डीपीसी की पोस्ट पर है। इस खबर से या ऐसे कमजोर शिक्षको को अपने विभाग में होना भी आपकी कार्यप्रणाली पर सवाल खडे करता है कि आप शिक्षको को कैसे प्रशिक्षण कराते है या प्रशिक्षण के नाम पर सिर्फ कागजी घोडे दौडते है। 

अपने राम का तो इस मामले में कहना है,कि आचार संहिता में भाजपा के पक्ष में प्रचार करने के आरोप में धिरे डीपीसी शिरोमणि दुबे आरएसएस की एक शाखा के प्रदेश स्तरीय नेता है और अधिकारी कम है,साहब को मिडिया ओर छापस रोग ऐसे पंसद है जैसे किसी मंत्री को....मंत्रीयो का भी हर दौरा प्रकाशित होता है तो साहब का भी हर निरिक्षण प्रकाशित होना चाहिए....अपने मूल काम को छोड डीपीसी साहब सुर्खिया में रहने के लिए प्रयासरत करते है। 

इस कारण लगातार अपने ही विभाग के खिलाफ की बदनाम करने वाली खबरे प्रकाशित कराते रहते है। लेकिन वह इस खबर में अपने ही जाल में उलझ गए शिक्षको की योग्यता पर डीपीसी की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खडे हो रहे हे अब देखनी वाली बात है कि नई नवेली कलेक्टर श्रीमति शिल्पा गुप्ता डीपीसी की इस कार्यप्रणाली पीर कैसे अकुंश लगाती है ओर उन्हे अपने मूल काम पर वापस भेज पाती है या ऐसे ही आरएसएस की राजनीति के लिए खुल्ला छोड़ देती है.....सवाल यह भी बडा है।