
दोनों पक्षों को आमने-सामने किया और यह राजीनामा हुआ कि हर महीने वर्षों से अपनी बेटी को छोड़ चुका पिता अब उसे एक निश्चित राशि उसके खाते में हरमहीने जमा करेगा। पिता पेशे से सरकारी शिक्षक है। यूं तो इस राजीनाम के बाद आदिवासी बिटिया काफी हद तक दूर हो गई थीं, लेकिन महिला डेस्क प्रभारी ने सरकारी दायित्व से इतर इस संवेदनशील मामले में होनहार आदिवासी बिटिया के प्रोत्साहन के लिए पेशकश की कि वे अपनी तनख्वाह में से हर महीने कोचिंग की फीस का खर्चा उठाएंगी।
इस फैसले के बाद डबडबाई आँखों से होनहार आदिवासी बिटिया ने धन्यवाद किया। इस मामले ने बता दिया कि यदि सरकारी दायित्व से इतर ऐसे बच्चों के लिए सार्थक प्रयास हों तो कोई भी चुनौती प्रतिभाओं को आगे आने से नहीं रोक सकती। संघर्ष के साथ जारी रखी पढ़ाई महज 6 माह की उम्र में माँ ने जिस आदिवासी बेटी का साथ छोड़ दिया उसकी अब तक की कहानी कठिनाईयों से भरी हुई है।
युवती के अनुसार जब वह छोटी थी तो उसके पिता ने दूसरी शादी कर ली जिससे भी उसके यहां पर अन्य संतानों ने जन्म लिया। इसके बाद सभी साथ में रहने लगे, लेकिन होनहार आदिवासी बिटिया को अपने माता-पिता का वह प्यार नहीं मिला जिसकी वह हकदार थी। परिवार के दुव्र्यवहार से त्रस्त होकर वह अपनी दादी के साथ रहने लगी और दादी की पेंशन से उसका खर्चा चलता रहा।
ऐसी विकट परिस्थितियों में भी होनहार बिटिया ने अपना हौंसला बनाए रखा और उसने हायर सेकेण्डरी तक की पढ़ाई पूरी कर ली। अब वह प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में जुटी हुई है और उसका सपना है कि वह प्रतियोगी परीक्षा में चयन होकर सब इंस्पेक्टर बने, लेकिन इसके लिए अब उसकी दादी की पेंशन पर्याप्त नहीं रही क्योंकि इससे उसकी पढ़ाई का खर्चा का भार उठाना संभव नहीं है। ऐसे में अब महिला डेस्क प्रभारी कोमल परिहार की पहल से आदिवासी बिटिया अपने सपने को साकार कर सकेगी।