
मुनिश्री ने आगे कहा कि संसार में तीन प्रकार की दृष्टि होती हैं। शास्त्र दृष्टि, गुरु दृष्टि और अनुभव दृष्टि। शास्त्र दृष्टि हमें हेय-उपादेय की तरफ ले जाती है। हमारे शास्त्र ऋषि-मुनि और संत-संयमी द्वारा लिखे जाते हैं, जो हमें अच्छे-बुरे का ज्ञान कराते हैं, और निरंतर सद्मार्गों में आगे बढऩे की प्रेरणा देते हैं। गुरु हमेंशा दु:ख के मार्ग से बचाकर सुख का मार्ग बताते हैं।
इसी प्रकार एक दृष्टि अनुभव की होती है, जो बुजुर्गों के पास होती है। बुजुर्गों की सलाह से किया गया कार्य सदैव निर्विध्न संपन्न होता है। जब बुजुर्गों का होश और युवाओं का जोश दोनों मिल जाते हैं, तो बड़े से बड़ा कार्य भी निर्विरोध-निर्विध्न संपन्न होते हैं। आज लोग दूसरों का अनुकरण तो करना चाहते हैं, परंतु ज्यादा जोश में अपना होश खो बैठते हैं। जो ज्यादा खतरनाक होता है। याद रखना नकल में भी अक्ल की जरूरत होती है।
ऐलक श्री विवेकानंदसागर जी ने कहा कि बहुत सारे चोर हैं, जिनमें कामचोर भी होते है। जो पुरूर्षाथ से जी चुराता है, वह अस्वस्थ और दुर्गति के पात्र हैं। हमें कभी भी बिना मेहनत की कोई वस्तु प्राप्त करने की कोशिश नहीं करना चाहिए। कामचोर व्यक्ति को संसार में कोई भी पसंद नहीं करता है। संसार में परिग्रह ही दु:ख का कारण कहा गया है। परिग्रही कभी सुखी नहीं रहते, पर निस्पृही सदा सुखी ही रहते हैं। अत: परिग्रह त्याग से ही सुख का रास्ता जाता है।