यहां बेटी के जन्म पर मनती है खुशी, पर मां ही लगाती है अपनी बेटी के कोमार्य की रेट

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सतेन्द्र उपाध्याय, शिवपुरी। एक बेटी कि लिए मां पहली पाठशाला होती है। मां की बेटी को संस्कार, शिक्षा और संस्कृति से पहचान कराती है,मां के आचंल में बेटी अपने को सबसे ज्यादा सुरक्षित महसूस करती है। लेकिन इस विभिन्न संस्कृति वाले देश में एक जाति में मां अपनी बेटी को किसी दूसरी तरह का शिक्षा देती है, ओर हजारो वर्षो से चली आ रही एक कुरीति को अपना रिवाज मान कर अपनी ही बेटी के कोमार्य की रेट तय करती है। 

जैसा कि विदित है कि शिवपुरी मुख्यालय के बैराड़ क्षेत्र के डाबरपुरा और करतारपुरा ऐसे 2 गांव है, जहां बेडिय़ा जाति के लोग निवास करते है। यह गांव अपने जिस्म बेचने के धंधे लिए प्रसिद्ध है। इस जाति के लोग कई पीढियों से जिस्म बेचने का धंधा करते आए है।

बेडिय़ा समाज में बेटी होने पर उत्सव मनाया जाता है। इस गांव की कई सैकडा लडकियां देश नही विदेशों में सेक्स वर्कर के रूप में काम कर रही है। बताया जा रहा है कि इन दो छोटे से गांव की लडकियां देश के कई नामी डांसवारो में  काम कर रही है। 

शहर के पुरानी शिवपुरी स्थित रेडलाईट ऐरिया में वर्षों से जिस्म फरोसी का मोहल्ला वर्षो से बसा हुआ हैै। यह अपनी मर्जी से जिस्मो का सौदा होता है। पुलिस प्रशासन भी यहां अक्सर छापामार कार्यवाही को अंजाम देता है। परन्तु अपनी देह को बेचने की परंपरा को इस समाज की महिलाएं नही छोडती है। 

इस समाज में बेटी होना एक उत्सव है। इस समाज के लोग अपनी बहुओ से धंधा नही कराते है। बताया गया है कि इस समाज में एक अनोखी परंपरा है यह भी है कोई भी बेडिया परिवार में बेटी को ही इस धंधे में रखा जाता है। इस समाज में बहुओं को खरीदकर लाया जाता है परंतु इन बहुओं को इस धंधे से दूर रखा जाता है। उसके बाद इन बहुओं से जो बेटीयां पैदा होती है उन्हें इस धंधे में उतारा जाता हैै। 

भारत की अन्य समाजो और जातियों में मां बेटी की सबसे बडी रक्षक होती है, लेकिन बेडिया समाज की कुरितियो के चलते यहां खुशी-खुशी और उत्सव के रूप में मां अपनी बेटी के कोमार्य की रेट तय करती है। और जब बेटी की उम्र 16 साल से ज्यादा नही होती है। 
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