
मामला शिवपुरी शहर के दक्षिण में स्थित एक शहर का है। यहां सर साहब का जलवा हुआ करता था। उनके अधिकार क्षेत्र में एक सरकारी घोंसला भी आता था जहां निर्धन लड़कियां रहतीं हैं। कुछ दिनों पहले एक शिकायत चर्चाओं में आई। बताया गया कि सर साहब पर लड़कियों के यौन शोषण का आरोप लगा है। शिकायत सामने आते ही एक साथ दो अधिकारी सक्रिय हुए। एक तो वर्दी वाले भाईसाहब और दूसरे विभाग के सरदार। सर साहब ने सबसे पहले वर्दी वाले भाई साहब से संपर्क किया। कहा जाता है कि पीड़िताओं से भी संपर्क किया गया। उनसे माफी मांगी गई। कुछ मुआवजा भी दिया गया। फिर वर्दी वाले भैया को भी भेंट चढ़ा दी गई।
इधर विभाग के सरदार तेजी से सक्रिय हुए। इन दिनों बिना जावक पर दर्ज किए नोटिस जारी करने की परंपरा चल रही है। सुना है एक नोटिस सर साहब को भी जारी किया गया। उनके दफ्तर और घटना स्थल का दौरा किया गया। इसी दौरान सर साहब ने विभाग के सरदार को भी सेट कर लिया। विभाग के सरदार ने दफ्तर में तो सर साहब के विरुद्ध नोट दर्ज किया परंतु घटना स्थल पर सर साहब की तारीख में कसीदे पढ़ते हुए लेख किया गया।
मामला सुर्खियों में आने से पहले ही सुल्टा लिया गया। इसके बाद कोई विवाद ना हो इसलिए सर साहब ने लगे हाथों अपना मनचाहा तबादला भी करवा लिया। कहा जा रहा है कि सरकारी फाइलों में अब ना कोई शिकायत बची है और ना ही नोटिस। बस 2 रजिस्टरों पर टीप है जिसमें मामले को लेकर एक शब्द तक नहीं लिखा गया है। जैसे एक सामान्य दौरा कार्यक्रम के दौरान दर्ज कर दी जाती है। अब देखना यह है कि क्या कोई समाजसेवी व्यक्ति या संस्था उन पीड़िताओं को तलाश पाती है जिन्होंने शिकायत की थी।