
आगे उन्होंने कहा कि-मायाचारी व्यक्ति सदा भयवीत ही बना रहता है, वह कभी शांति से नहीं रह सकता। नीतिकारों ने इस संसार में भांति- भांति के लोग कहे हैं, इनमें से जो सरल स्वभाव बाले हैं, वह श्रेष्ठ हैं और कुटिल स्वभाव वालों को निकृष्ट और जलाऊ लकड़ी के समान कहा हैं। आज लोग अपने को देखने के स्थान पर दूसरों को बुरा कहते हैं।
कहते हैं- हम जैसे होते हैं, हमें वैसे ही दुनिया के लोग भी नजर आते हैं। अत: हम अपनी सोच को सकारात्मक रखें तो दुनिया भी हमें वैसी ही दिखाई देगी। दुसरे के साथ यदि हम रूखा व्यव्हार करेंगे, छल-कपट करेंगे, धोखा देंगे और इसमें आनंद मानेंगें तो हमारी विश्वसनीयता और प्रमाणिकता दोनों ही धीरे-धीरे करके समाप्त हो जायेगी। फिर कोई भी तुम्हारा विश्वास करने बाला नहीं है, अत: जितना हो, अपने मन को सरल बनाने की कोशिश करें।
ऐलक श्री दयासागर जी महाराज ने कहा- मायाचारी कषाय दुख की जननी, सरलता कि बाधक और जहर से भी ज्यादा खतरनाक है। इससे मित्रता समाप्त हो जाती है। जितनी भी पौराणिक कथाएं हैं उन्में कहीं कहीं न कहीं मायाचारी और छलकपट के दुष्परिणाम देखने को मिलते हैं।
सरलता धारण किये बिना जीवन में सफलता नहीं आती। कौरवों का जीवन छल कपट से भरा हुआ था, वह पांडवों को छल-कपट के माध्यम से दुखी करते रहते थे। परंतु पाण्डवों की सरलता के आगे उनकी एक न चली और उनकी कुटिलता विफल रही। अत: हम भी उनके जीवन से शिक्षा लेकर जीवन में सरलता को धारण करें।