छल-कपट से पैसा तो बढ़ सकता है, पर जीवन में कभी शांति प्राप्त नहीं हो सकती।

शिवपुरी। आज का उत्तम आर्जव धर्म हमें सरलता सिखाता है। सरलता आत्मा का स्वभाव है, और शांति चाहने के लिए सीधे और सरल होना जरूरी है। जब हमारे अंदर कठोरता आती है तो आसपास का परिवेश भी दूषित होता है। इसीलिए इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए कि हमारे व्यव्हार से किसी को कष्ट न पहुँचे। जहां इच्छाऐं ज्यादा होती है, वहां मन में अशांति होती है। यही अशांति मन में कुटिलता को बढ़ाने बाली होती है। मन की यही कुटिलता निरंतर पूण्य की हानि करती है। पुण्यशाली जीवो को माया कभी प्रभावित नहीं कर पाती। माया तो दुर्भाग्य की जननी, और दुर्गति को बढ़ाने वाली होती है। इतना ही नहीं आचार्यों ने तो यहाँ तक कहा है कि मायाचारी और छल-कपट की प्रवृत्ति ही स्त्री पर्याय की प्राप्ति का कारण और पशुता की ओर ले जाने वाली है। छल-कपट से पैसा तो बढ़ सकता है, पर जीवन में कभी शांति प्राप्त नहीं हो सकती। उक्त मंगल प्रवचन स्थानीय महावीर जिनालय पर पूज्य मुनि श्री अजितसागर जी महाराज ने उत्तम-आर्जव धर्म पर विशाल धर्म सभा को संबोधित करते हुये दिये।

आगे उन्होंने कहा कि-मायाचारी व्यक्ति सदा भयवीत ही बना रहता है, वह कभी शांति से नहीं रह सकता। नीतिकारों ने इस संसार में भांति- भांति के लोग कहे हैं, इनमें से जो सरल स्वभाव बाले हैं, वह श्रेष्ठ हैं और कुटिल स्वभाव वालों को निकृष्ट और जलाऊ लकड़ी के समान कहा हैं। आज लोग अपने को देखने के स्थान पर दूसरों को बुरा कहते हैं।

कहते हैं- हम जैसे होते हैं, हमें वैसे ही दुनिया के लोग भी नजर आते हैं। अत: हम अपनी सोच को सकारात्मक रखें तो दुनिया भी हमें वैसी ही दिखाई देगी। दुसरे  के साथ यदि हम रूखा व्यव्हार करेंगे, छल-कपट करेंगे, धोखा देंगे और इसमें आनंद मानेंगें तो हमारी विश्वसनीयता और प्रमाणिकता दोनों ही धीरे-धीरे करके समाप्त हो जायेगी। फिर कोई भी तुम्हारा विश्वास करने बाला नहीं है, अत: जितना हो, अपने मन को सरल बनाने की कोशिश करें।

ऐलक श्री दयासागर जी महाराज ने कहा- मायाचारी कषाय दुख की जननी, सरलता कि बाधक और जहर से भी ज्यादा खतरनाक है। इससे मित्रता समाप्त हो जाती है। जितनी भी पौराणिक कथाएं हैं उन्में कहीं कहीं न कहीं मायाचारी और छलकपट के दुष्परिणाम देखने को मिलते हैं। 

सरलता धारण किये बिना जीवन में सफलता नहीं आती। कौरवों का जीवन छल कपट से भरा हुआ था, वह पांडवों को छल-कपट के माध्यम से दुखी करते रहते थे। परंतु पाण्डवों की सरलता के आगे उनकी एक न चली और उनकी कुटिलता विफल रही। अत: हम भी उनके जीवन से शिक्षा लेकर जीवन में सरलता को धारण करें।