
जिले के ग्रामीण क्षेत्रो में बिना मान्यताओं के स्कूल चल रहे है। या यू कह लो कि रिश्वत के मंत्र के आधार पर पर स्कूल कुकरमुत्तो की तरह उग आए है। यह अपने विज्ञापनो में धड़ल्ले से मान्यता लिख रहे है। ऐसा नही कि इन स्कूलो के संचालन की शिक्षा विभाग को जानकारी नही है, पूरा हिसाब किताब है इन स्कूलों का शिक्षा विभाग के पास। लेकिन कार्रवाई नही हो रही है। इससे प्रतीत होता है कि यहां पूरी की पूरी प्राईवेेट लिमिटेड चल रही है
शिक्षा विभाग में करप्शन का कल्चर का प्रमाण उन स्कूलों को देखने के बाद मिलता है, जिनकी मान्यताए आठवीं क्लास तक है और लिख रहे है बाहरवी तक। ऐसे स्कूल अपनी मान्यता से आगे की क्लासों में धडल्ले से एडमिशन कर रहे है। बच्चों की क्लास अपने यहां लगवा रहे है,और उनके एडमिशन किसी दूसरी जगह है। तमाम तरह की फर्जी सुविधाओं के नाम पर पालकों से लूट कर रहे है।
इसके अतिरिक्त शिक्षा विभाग में नियमों को शिथिल कर ऐसे स्कूलों को मान्यता दी है, जो दो कमरो में संचालित हो रहे है। यह स्कूल अपने विज्ञापनो में ऐसी तमाम सुविधाओं को उल्लेख करते है। जो इन स्कूलो के आस-पास तक नही दिखाई देती है। अभी शिवपुरी कि मीडिया ने ऐसे स्कूलो की सूची भी प्रकाशित की थी जिन पर मान्यता एमपी बोर्ड तक की भी नही थी और अपने विज्ञापन में तमाम तरह की मान्ययताओ का उल्लेख कर रहे थे। शिक्षा विभाग ने एक लेटर का प्रकाशन में मीडिया से प्रकाशन कराया कि स्कूल अपनी मान्याताए स्पष्ट करें और अपनी सुवधिाओ का उल्लेख करें। फर्जी पाए जाने पर कार्यवाही होगी लेकिन हुआ इसका उल्टा,इस पत्र के प्रकाशन के बाद शिक्षा विभाग ने स्कूल संचालको को डराकर अपनी रेटे बढा दी।
कुल मिलाकर सवाल वही की वही है कि प्राईवेट स्कूलों के मामले में शिक्षा विभाग ने इतनी ईको फ्रेडंली क्यो हो रहा है। जिले में चल रहे फर्जी स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई क्यो नही की जाती है। नियम विरूद्ध मान्यताए कैसी दी गई। अखिर किसके इशारे पर यह भ्रष्टाचार एक्सप्रेस सरपट दौड रही है। कौन है इस भ्रष्टाचार का सरदार...