कोलारस SDM ऑफिस में एक कागज के टुकडे पर पका 5 करोड का रेत घोटाला

ललित मुदगल@एक्सरे/शिवपुरी। जिले की कोलारस विधान सभा क्षेत्र में एसडीएम ऑफिस में पूरी प्लानिंग के साथ बनाया गए एक कागज के टुकडे से लगभग 5 करोड की रेत का अवैध उत्खन्न और परिवहन हो गया। बताया जा रहा है कि पुलिस ने जब इन ट्रेक्टरों को पकडा तो एसडीएम कार्यालय के द्वारा जारी की गई एक परमिशन को दिखाया गया है। इस समय कोलारस क्षेत्र में रेत के अवैध परिवहन का खेल बडी तादात में खेला जा रहा है। अभी तक रेत माफिया इस खेल में शामिल होते है परन्तु इस बार इस खेल में कोलारस तहसील के एसडीएम ऑफिस के शामिल होने के सबूत मिले हैं। 

जानकारी मिल रही है कि कोलारस जनपद ऑफिस से एक मांग पत्र पंचायतो में शौचालय के निर्माण के लिए रेत उत्खन्न और परिवहन की मंजूरी के लिए चला और कोलारस एसडीएम ऑफिस पहुंचा। 26 हजार ट्रेक्टर रेत की आवश्यकता के मांग पत्र के आधार पर विधिवत कोलारस एसडीएम कार्यालय में कलेक्टर शिवपुरी के लिए प्रस्ताव बना कर एक फाईल चलाई गई, लेकिन कलेक्टर को पहुंचाई नही गई। इस फाईल में से एक ऐसे कागज के टुकडे को रेत माफियाओं को बांट दिया गया जो देखने मेें एसडीएम कार्यालय से पंचायत के निर्माण कार्यो के लिए रेत उतखन्न और परिवहन की मंजूरी लगे। बताया गया है ऐसे कई चतुराई से तैयार किए गए कागजों के टूकडे पर लगभग 26 हजार ट्रेक्टर रेत का अवैध उतखन्न और परिवहन किया गया है।

बताया जा रहा है कि इस कागज के टुकडे पर अलग से ट्रेक्टर का नंबर और ट्रेक्टर मालिक का नाम लिखा गया है। ऐसे कई कागजों पर नाम और ट्रेक्टर नंबर लिख कर पिछले माह में बाटें गए है। जब पुलिस ने ऐसे कई ट्रेक्टर को पकडा तो ऐसे ही परिवहन के आदेश को दिखाया गया।

एसडीएम कोलारस पर उठते सवाल
रेत उत्खन्न और परिवहन का आदेश कोई भी एसडीएम नही दे सकता है। तो कोलारस एसडीएम आर-आर पाडें के हस्ताक्षर युक्त यह परिमिशन कागज कैसे ट्रेक्टर के मालिको पर पहुंच गया। पंचायतो में शौचालय निर्माण के लिए रेत उत्खन्न और परिवहन की प्रस्तावित फाईल में से कैसे यह कागज कैसे पब्लिक हो गया। जब गायब हो गया तो इस पर कोई कार्यवाही क्यो नही की गई। 

अगर कोलारस जनपद ने शौचालय के निर्माणो के लिए इस क्षेत्र में रेत की कमी को देखते हुए एक चिन्हित स्थान से रेत उत्खन्न और परिवहन की मांग की थी। यह मांग अनुचित थी, क्योकि शासन हितग्राही को शौचालय निर्माण के लिए भुगतान सरकारी खजाने से दे रही है। शासन का काम हितग्राही को पैसे देना है ना कि शौचालय निर्माण में काम आने वाले समान की व्यवस्था बनाना।