दम तोड़ती शिवपुरी के लिए वेंटिलेटर थे कलेक्टर ओपी श्रीवास्तव

शिवपुरी। 30 जून 2016 को शिवपुरी कलेक्टर के रूप में आईएएस ओपी श्रीवास्तव की पदस्थापना काफी चुनौतीपूर्ण थी। उस समय शहर अराजकता के शिखर पर था। सडक़ें नदारद थी और उड़ती धूल से लोग बीमार हो रहे थे। 9 साल से लटकी सिंध जलावर्धन योजना पर लगातार खतरे के बादल मंडरा रहे थे। मामूली बारिश में शहर में बाढ का ताण्डव नृत्य जारी था।प्रशासनिक मनमानियों ने सारी सीमायें तोड़ दीं थी। सड़क पर चलने वाले ट्रकों के खिलाफ मामले दर्ज किए जा रहे थे। उस समय शहर में गहन निराशा का वातावरण था और ऐसा नहीं लगता था कि शिवपुरी अपनी दुर्दशा से उभर पाएगी लेकिन 9 माह के अल्प कार्यकाल में अपनी निर्विवाद छवि, विनम्रता लेकिन प्रशासनिक दृढता, मेहनत और समर्पण से कलेक्टर ओपी श्रीवास्तव ने न केवल रूचि लेकर जल्द से जल्द शहर की सडक़ें बनबार्ई बल्कि सिंध जलावर्धन योजना पर लगे अडंगों और बाधाओं को दूर करने का भागीरथी प्रयास किया।

यही नहीं शहर के पर्यटक नक्शे पर तथा शिवपुरी को धार्मिक नगरी के रूप में विकसित करने में भी कलेक्टर ओपी श्रीवास्तव का अहम योगदान रहा। शिवपुरी के प्रशासनिक अधिकारियों के इतिहास में  शायद ओपी श्रीवास्तव एक मात्र ऐसे कलेक्टर होंगे जिनकी कार्य प्रणाली से न तो समाज का कोई वर्ग और न ही राजनीति का कोई भी दल एवं आमजनता असंतुष्ठ रहा हो। अधिकारियों और कर्मचारियों के भी वह चहते बने रहे। 

पूर्व कलेक्टर राजीवचन्द्र दुबे की जब शिवपुरी से विदार्ई हुई थी तब प्रशासनिक अराजकता और मनमानी चरम पर थी और शिवपुरी के विकास कार्य ठप्प पड़े हुए थे। प्रशासनिक भ्रष्टाचार ने सारी सीमायें तोड़ दी थी और आम जन की कोर्ई सुनवाई नहीं थी। उनके स्थान पर पहली बार कलेक्टर बनाए गए ओपी श्रीवास्तव ने जब कार्यभार संभाला था तो उनसे बहुत ज्यादा आशायें नहीं थी, क्योंकि एक तो वे पहली बार कलेक्टर का कार्यभार संभाल रहे थे और दूसरे फ्रेश आईएएस भी नहीं थे। 

शायद अपनी कमजोरियों को ओपी श्रीवास्तव पहचानते थे और उन नकारात्मक बातों ने ही उनमें काम करने का जज्वा पैदा किया। व्यक्तिगत रूप से अपनी शालीनता और विनम्रता से उन्होंने पहचान बनार्ई।  आमजन से सहज रूप में मिलना उन्होंने शुरू किया और जनसुनवार्ई के माध्यम से वह जनता के नजदीक आए। 

इसके बाद शहर की दुर्दशा सुधारने का उन्होंने बीड़ा उठाया और जबलपुर नगरनिगम के कमिश्नर के रूप में उनका अनुभव शिवपुरी में काफी काम आया। उनके पहले एक दो सडक़ें बनी थी जो कि ठीक ढंग से भराव न हो पाने के कारण उखड़ गर्ई थी। इसे महसूस कर तकनीक द्वारा सडक़ें बनाने का कलेक्टर ओपी श्रीवास्तव ने निर्णय लिया। सडक़ें जल्दी बनें। 

इसके लिए वह लगातार विभागीय अधिकारियों पर दवाब डालते रहे ताकि बरसात के पूर्र्व अधिकांश सडक़ें बनकर तैयार हो जायें और इसका लाभ शिवपुरी वासियों को मिल सके। उनके प्रयासों से पोहरी रोड़, सर्किट हाउस रोड़, कोर्ट रोड़, मीट मार्केट रोड़ आदि सडक़ें समय सीमा में बन कर तैयार हुई।  सिंध जलावर्र्धन योजना के लिए उन्होंने लगातार दोशियान, नगर पालिका और पीएचई के अधिकारियों से संवाद किया। 

यह उनके प्रयासों का ही परिणाम था कि पेटी कॉन्ट्रेक्टरों को सीधे भुगतान मिलने लगा। पहले होता यह था कि दोशियान कंपनी को भुगतान मिलता था और पेटी कॉन्ट्रेक्टरों को भुगतान न दिए जाने के कारण काम रूक जाता था। यह उनके प्रयासों का ही परिणाम है कि सिंध जलावर्धन योजना इस समय लगभग पूर्ण होने की स्थिति में है और सिंध का पानी शिवपुरी आने की आशा की किरण तेज हो उठी है। 

उनकी असमायिक विदाई से यह आशंकायें गहराने लगी है कि शिवपुरी में विकास कार्य की गति कहीं एक बार फिर न रूक जाए। इस मायने में कलेक्टर श्रीवास्तव का यहां से स्थानांतरण शिवपुरी के लिए एक सजा के रूप में ही फिलहाल माना जा रहा है।

विनम्रता और प्रशासनिक दृढ़ता का अद्भुत सम्मिश्रण 
कलेक्टर ओपी श्रीवास्तव के व्यक्तित्व में विनम्रता और प्रशासनिक दृढता का अद्भुत मेल है। वह विनम्र है, निरहंकारी है, लेकिन दवाब के आगे नहीं झुकते हैं और संवेदनशील होने के बाबजूद नियमों, कायदे और कानूनों से वह अपने आपको बांधकर रखते हैं। इसकी मिसाल जैनिथ संस्था द्वारा किए गए आंदोलन के दौरान देखी गई। 

जब आजादी की मांग कर रहे युवाओं ने पहले कलेक्ट्रेट पर उनकी अनुपस्थिति में धरना दिया और फिर एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम में उपस्थित दर्ज करा रहे कलेक्टर श्रीवास्तव का घेराव करने के लिए युवाओं की टीम पहुंच गई। लेकिन उन्होंने स्थिति को पूरी तरह से हेंडिल किया। 

पुलिस अधिकारियों को कार्यक्रम समाप्त होने तक अन्यत्र ले जाने का निर्देश दिया और जब युवाओं ने यह जिद्द पकड़ ली कि कलेक्टर चेम्बर छोडक़र उनसे मिलने जेल परिसर में आयें तो कलेक्टर ने कहा कि मेरे दरवाजे बातचीत के लिए खुले हुए लेकिन मैं वहां जाकर कलेक्टर पद की गरिमा को कम करते हुए झुकने का काम नहीं करूंगा। तब छात्र से प्रेरित होकर बापिस आ गए।