निजी बने शौचालय का हो गया सरकारी भुगतान, नपा में एक और घोटाला

शिवपुरी। घपला और भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात हो चुकी शिवपुरी नगरपालिका में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। इस योजना के तहत नगर के 39 वार्डों में लगभग 4 हजार शौचालय निर्माण में जमकर भ्रष्टाचार किया गया है। शौचालय निर्माण में गुणवत्ताविहीन कार्य किया गया है। साथ शहरी क्षेत्र में बने निजी शौचालयो को भी सरकारी आंकडो में गिन लिया और पैसो का बंदरवाट कर लिया। वार्ड क्रमांक 13 में तो एक घर में नवनिर्मित शौचालय पहले ही दिन धराशायी हो गया है। आरोप है कि बजट को ठिकाने लगाने के लिए कई घरों में पुराने बने शौचालयों को नए दर्शाकर भुगतान का बंदरवाट ठेकेदार और गृहस्वामी ने कर लिया है। कई अपूर्ण शौचालयों को पूर्ण बता दिया गया है वहीं यह भी आरोप है कि एक साल पहले जिन लोगों ने अपने घरों में शौचालय निर्माण हेतु 1360 रूपए की रसीद कटाई उनके घरों में आज तक शौचालय नहीं बने हैं। 

प्राप्त जानकारी के अनुसार वार्ड 1 से वार्ड 39 तक लगभग 4 हजार शौचालय निर्माण  हेतु 3 ग्रुप बनाए गए इनमें से वार्ड क्रमांक 1 से वार्ड क्रमांक 13 तक 1331 शौचालय निर्माण का टेंडर 1 करोड़ 81 लाख 16 सौ रूपए में ठेकेदार आरबीएस चौहान को स्वीकृत हुआ जबकि वार्ड क्रमांक 14 से वार्ड क्रमांक 26 तक कुल 1331 शौचालय निर्माण का टेंडर ठेकेदार प्रशांत पांडे ने 1 करोड़ 81 लाख 16 सौ रूपए की न्यूनतम दर में लिया। 

वही वार्ड क्रमांक 27 से 39 तक 1331 शौचालय निर्माण का ठेका सांई कंस्ट्रक्शन के पक्ष में 1 करोड़ 81 लाख 28 सौ रूपए में स्वीकृत किया गया। नगरपालिका के रिकॉर्ड के अनुसार नगर के 3995 शौचालय में से अभी तक 3213 बनकर तैयार हो चुके हैं। इनमें से वार्ड क्रमांक 1 से 13 तक 600 शौचालय पूर्ण हो चुके हैं। 

जबकि 731 का निर्माण अभी होना बाकी हैं। वार्ड क्रमांक 14 से 39 के सभी शौचालय निर्माण का कार्य पूर्ण बताया गया है। लेकिन यथा स्थिति इसके बिल्कुल विपरीत है। 

इस तरह से किया जा रहा है भ्रष्टाचार 
शौचालय निर्माण में अनेक स्तरों पर भ्रष्टाचार का खेल चल रहा है। घरों में शौचालय निर्माण हेतु नगरपालिका उपभोक्ता से 1360 रूपए की रसीद कटवाती है और एक शौचालय निर्माण में 13 हजार 650 रूपए का भुगतान ठेकेदार को किया जाता है। सूत्र बताते हैं कि 4 हजार शौचालय में से लगभग 1 तिहाई घरों में पहले से ही शौचालय हैं।

जिसमें शौचालय निर्माण की राशि का नगरपालिका कर्मचारी, ठेकेदार और उपभोक्ता के बीच बंटवारा हो रहा है। जिन घरों में शौचालय बने भी हैं उनकी गुणवत्ता काफी घटिया है जिससे कई शौचालय निर्माण के साथ ही ध्वस्त हो गए। शौचालय निर्माण में देखरेख की जिम्मेदारी उपयंत्रियों को सौंपी गई है लेकिन आरोप है कि अपनी जिम्मेदारी निभाने के स्थान पर भ्रष्टाचार के खेल में वह स्वयं सहभागी बन रहे हैं।