
योगेश्वर श्री कृष्णोक्त गीता ही वह ज्ञान है जिसमें स पूर्ण मानव जाति की स पूर्ण समस्यायों का स्थाई सामधान है, इस गीता ज्ञान को सृष्टि आदि में भगवान ने सर्वप्रथम सूर्य के प्रति कहा, सूर्य ने मनु से कहा मनु को ही अरब और यूरोप में आदम कहते हैं, आदम के बाद समस्त आदमियों को यह ज्ञान क्रम से प्राप्त होता आया है, योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कहा कि अर्जुन यह ज्ञान लुप्त हो गया था वही ज्ञान जो मैंने सृष्टि के आर भ में सूर्य के प्रति कहा था अब तुम से कह रहा हूं।
5200 वर्ष पूर्व गीता के प्रादुर्भाव के समय आज के प्रचलित मत, मतान्तर नहीं थे, सब गीता के बाद के हैं। विश्व में कोई भी ऐसा धर्मशास्त्र नहीं है जो श्रीमद भगवत गीता के विपरीत कुछ कहता हो, भारतीय ऋषियों ने सर्वप्रथम ईश्वर को जो परिभाषा दी, उससे अलग परिभाषा विश्व के किसी दार्शनिक एवं धर्माधिकारी ने नहीं दी और न भविष्य में कोई दे सकता है।
मरियम ने जो अपने स्कूल से ग्रहण किया है वह उनके जीवन को एक नई दिशा देगा। उन्होंने आगे कहा कि विस्मृत हुए मानव धर्मशास्त्र, गीता को पाठ्यक्रम में शामिल करके समस्त विद्यार्थियों एवं समाज को एक धर्म का बोध प्राप्त हो सकेगा, संस्कार वान, चरित्रवान एवं ज्ञानवान बनकर भारत के गौरवशाली इतिहास को हम पुन: वापस ला सकते हैं, क्योंकि भारत में ऐसा कोई विद्यालय नहीं है, जहां देशभक्ति एवं इमानदारी का संस्कार मिल सके बिना धर्म के, बिना देशभक्ति तथा बिना इमानदारी के देश की सीमाएं एवं व्यक्ति कभी सुरक्षित नही हो सकते हैं।
प्रतिशोध एवं पर पराओं के मार्ग पर चलने चलाने वाला कभी मानव जाति का हितैषी नहीं हो सकता है, इससे मानव एकता कदापि स भव नहीं है तथा विकास भी सुरक्षित नही है, मानव एकता के लिए गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित कर पाठ्यक्रम में शामिल करने से भारत के गौरवशाली इतिहास की वापसी एवं समाज में भाई चारे की एक हल्की सी आशा की किरण देश प्रेमियों के हृदय में अवश्य जागी है, यह किरण एक वृहद प्रकाश पुंज में परिवर्तित हो सकती है अगर देश के सभी लोग मरियम और उनके परिवार की तरह संकीर्णता से ऊपर उठकर प्रयास करें।