मामला नपा द्वारा अतिक्रमण का: 2-2 विभाग कर रहे हैं किराया का तगादा

शिवपुरी। नगर पालिका की अतिक्रमण हटाने की जिम्मेदारी है। लेकिन नपा भी अतिक्रमण करने से नही चूक रही है।  नगर पालिका ने  श्री सत्यनारायण देहराजा ट्रस्ट की जमीन पर कब्जा कर न केवल दुकानें बना ली बल्कि पन्द्रह साल से उक्त 31 दुकानों का नगर पालिका किराया भी बसूल कर रही है। लेकिन अब इन्ही दुकानदारो से राजस्व विभाग भी किराए के तगादे कर रहा है। 
तहसीलदार के न्यायालय ने 10 नव बर 2016 से आदेश पारित कर मंदिर की जमीन पर निर्मित उपरोक्त दुकानों का अधिगृहण मंदिर श्री सत्यनारायण देहराजा प्रबंधक कलेक्टर शिवपुरी के नाम कर दिया है तथा इसकी प्रवृष्टि भी राजस्व रिकॉर्ड में कर दी गई है, लेकिन मु य नगर पालिका अधिकारी रणवीर कुमार ने बताया कि वह यह फैसला मानने को तैयार नहीं है और इसके खिलाफ सिविल कोर्ट में अपील की जाएगी। 

लेकिन इस फैसले से उक्त जमीन पर बनी दुकानों के किरायेदार पशोपेश में हैं। क्योंकि नगर पालिका जहां उनसे किराये की मांग कर रही है वहीं तहसीलदार ने भी एकतरफा आदेश पारित कर प्रति दुकान का किराया दो हजार रूपए निर्धारित कर दिया है और दुकानदारों को नोटिस जारी कर किराया तहसील कार्यालय में जमा कराने को कहा है। 

प्राप्त जानकारी के अनुसार बाबू क्वार्टर रोड़ पर झींगुरा में श्री सत्यनारायण मंदिर बना हुआ है। इसकी भूमि का सर्वे क्रमांक 216 रकबा 1.003 हेक्टर में से 4600 वर्ग फिट पर नगर पालिका द्वारा 31 दुकानों का निर्माण किया गया है। बताया जाता है कि इनमें से अधिकांश दुकानें 10 से 15 साल पूर्व निर्मित की गर्ई है। जबकि आठ दुकानों का निर्माण दो साल पहले किया गया है। 

उक्त दुकानों का किराया नगर पालिका द्वारा 400 रूपए प्रतिमाह की दर से बसूल किया जा रहा है। मंदिर ट्रस्ट का कहना है कि उक्त जमीन जिन पर दुकानें बनी हुई है वे ट्रस्ट की हैं और अवैधानिक रूप से नगर पालिका द्वारा दुकानों का निर्माण कर अपना  स्वामित्व दर्ज किया गया है। ट्रस्ट की आपत्ति के बाद तहसीलदार ने उक्त दुकानों का अधिगृहण ट्रस्ट के नाम कर दिया है। 

मनमाना किराया बढ़ाने से किरायेदार परेशान
अभी तो अंतिम रूप से यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि सर्वेक्रमांक 216 रकबा 1.003 हेक्टर में स्वामित्व नगर पालिका का है या मंदिर ट्रस्ट का लेकिन इसके निर्र्धारण के पूर्व ही तहसीलदार ने सूचना पत्र जारी कर दुकानों का किराया 2000 रूपए प्रतिमाह कर दिया। 

जबकि किरायेदार नगर पालिका को 400 रूपए प्रतिमाह देते थे। किरायेदारों का कहना है कि एक तो मनमाना ढंग से किराया बढ़ाया गया है और दूसरे अभी यह स्पष्ट नहीं है कि उक्त दुकानों का स्वामित्व किसके पास है। ऐसी स्थिति में वह किराया दें तो किसे दें।