मै शिवपुरी हूॅ: बिना पितामह के कैसे शोभायमान होगा यह शरद उत्सव...

ब-कलम @ललित मुदगल/शिवपुरी: मै शिवपुरी हूॅ, सुना है कि शरद उत्सव का आयोजन होने वाला है,पर्यटक विभाग शिवपुरी के पर्यटक बढाने के उद्देश्य से इसका आयोजन कर रहे है। परन्तु मैं सोचती हॅू कि बिना पितामह के कैसे यह उत्सव शोभायमान होगा...?

मै शिवपुरी हूॅ,  जैसा कि सर्व विदित है कि शिवपुरी को पर्यटक केंद्र के रूप में पहचान दिलाने का श्रेय अगर किसी हो होगा तो वह होगें, कैलाशवासी माधौ महाराज, उन्हीं की सोच से यह घना जंगल एक सुन्दर शहर बना। यह भील और आदिवासियों का गांव, शहर में विकसित हुआ। अब उन्हीं की प्रतिमा शहर के चौराहे पर नहीं है तो कैसे शोभायमान हो सकता है यह शरद उत्सव..?

मै शिवपुरी हूॅ, मुझे जंगल से शहर की ओर ले जाने वाले पितामह माधौ महाराज ने मुझे आजादी से पूर्व एक संपूर्ण विकसित शहर के रूप में बसाया था। जब मप्र में नहीं संपूर्ण भारत में एक विकसित शहर के रूप में पहचान होती थी लेकिन अब भारत तो छोडो इस संभाग का सबसे पिछडा शहर है यह शिवपुरी। मैं किसे कोसूं समझ में नही आता। मेरी जनता को या मेरे ओर से विधानसभा और ससंद में में प्रतिनिधित्व करने वालो को, कि मेरे पितामह पिछले 4 साल से सीखचों के पीछे है, ऐसे में कैसे शोमायमान होगा यह शरद उत्सव...।

मै शिवपुरी हूॅ, मेरे पितामह ने इस जंगल को शहर बनाया। उन्होने मैसूर रियासत के इंजीनियर जो उस समय के विश्व प्रसिद्व इंजीनियर थे, उन्है मेरा डवलपमेंट की जिम्मेदारी दी थी, इंजीनियर विश्ववरैया की सोच ने आजादी से 50 साल पूर्व आजादी से 50 साल बाद तक की सोच में विकसित किया था। माधौ महाराज शिवपुरी के संस्थापक हैं। जंगल में बसे भील आदिवासियों के एक गांव को उन्होंने ना केवल शहर बनाया परंतु उस समय का सबसे बेहतरीन शहर बनाया। सर्वसुविधा सम्पन्न शहर। जहां सडक़ें थीं,  पेयजल के भंडार थे, खुला वातावरण, स्वच्छ पर्यावरण, रेल यातायात और वो सबकुछ जो उस जमाने में कल्पना से भी बाहर हुआ करता था।

सन् 1915 में जब लगभग पूरा का पूरा देश बैलगाडय़िों से सफर करता था, शिवपुरी में रेल चला करती थी। शाम ढलते ही लोग घरों में छिप जाया करते थे, परंतु शिवपुरी में स्ट्रीट लाइटें हुआ करतीं थीं। देश के कई बड़े शहरों से लोग यहां बसने के लिए चले आए थे, आज भी उनकी दूसरी या तीसरी पीढ़ी के लोग यहीं रह रहे हैं।  

माधौ महाराज की मातृ भक्ति के उदाहरण से भी शिवपुरीवासी भलीभांति परिचित हैंं। जिन्होंने अपनी मां जीजाबाई की स्मृति में छत्री का निर्माण कराया था और आज भी मां जीजाबाई की प्रतिमा की उसी तरह देखभाल होती है। इतने वर्षों के बाद भी अपनी मां को जीवंत रखना माधौ महाराज की मातृभक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण है। उनके द्वारा निर्मित कराई गई छत्री गुणवत्ता में ताजमहल के स्तर की है।

अंतर है तो सिर्फ इतना कि शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में ताजमहल बनवाया था। जबकि माधौ महाराज ने एक कदम आगे बढक़र अपनी मां की याद में छत्री का निर्माण करवाया। माधौ महाराज सांप्रदायिक सद्भाव के जीवंत प्रतीक माने जाते हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव की भावना को धरातल पर माधौ महाराज प्रथम ने ही मूर्तरूप दिया था। छत्री में मंदिर हैं मस्जिद है, गुरूद्वारा है और चर्च भी है। 

मै. शिवपुरी हूॅ, इतिहास गवाह है, जिस जिस समाज ने अपने पूर्वजों का अनादर किया वो समाज कभी सम्पन्न नहीं हो पाया। लेकिन किसी को भी क्या अधिकार था कि शिवपुरी विकास के पुरोधा माधौ महाराज की प्रतिमा को तहस-नहस कर अपनी नाजायज भड़ास निकाली जाए। पर्यटक विभाग पर्यटन को बढावा देने के लिए भले ही उत्सव का आयोजन करा रहा है। 

सूने माधव चौक के बिना यह उत्सव शोभायमान नही हो सकता है। मैं और यह उत्सव तब शोभायमान होगा जब कम से कम माधौ महाराज का एक संग्रहालय तो चाहिए ही जो आने वाली पीढ़ी को बता सके कि इस शहर को स्थापित करने वाला राजा कितना बुद्धिमान, दूरदर्शी और क्षमतावान था। वो युद्ध नहीं करता था, लेकिन अपनी प्रजा की सुख सुविधाओं को जुटाने के लिए वो सबकुछ करता था जो दूसरे राजा नहीं कर पा रहे थे।