
इस कारण 14 और 15 दोनों दिन मकर संक्रांति मनाई जा रही है। मकर संक्रांति पर्व पर आज वाणगंगा में श्रद्धालुओं का मेला लगा। सुबह से ही श्रद्धालु बाणगंगा के कुण्ड में स्नान करने के लिए आने लगे थे। इस क्षेत्र में मकर संक्रांति के पर्व पर ग्रामीण परिवेश का मेला भी लगा हुआ है।
मकर संक्रांति पर्व पर वाणगंगा के कुण्ड में स्नान करने की पुरानी परंपरा है। किवदंती है कि पाण्डव अज्ञात वास के समय इस स्थल पर आये थे। यहां बड़े भाई युद्धिष्ठर को प्यास लगने पर अर्जुन ने अपने वाण से जमीन पर प्रहार कर गंगा निकाली थी।
बाद में इस क्षेत्र में 52 कुण्डों का निर्माण किया गया। इसी कारण यहां स्थित 52 कुण्डों को वाणगंगा कहा जाता है। वाणगंगा के पानी की विशेषता यह है कि यहां सर्दी के मौैसम में भी जल गर्म रहता है। मकर संक्रांति पर वाणगंगा के मु य कुण्ड में स्नान करने के लिए श्रद्धालुओं का आना सुबह 4 बजे से ही शुरू हो जाता है।
बाणगंगा पर लगेगा मेला
ग्रामीण अपनी बैलगाडिय़ों में बाल बच्चों को लेकर वाणगंगा पर आते हैं। हालांकि आज मकर संक्रांति न होने के कारण कम श्रद्धालु वाण गंगा पर आये। वाणगंगा के कुण्ड में स्नान करने का अपना धार्मिक महत्व है। जो जातियां साल भर स्नान नहीं करती वह भी मकर संक्रांति के दिन वाणगंगा के कुण्ड में स्नान कर न केवल अपने शरीर का शोधन करते हैं।
बल्कि अपनी आत्मा को भी पवित्र करते हैं। बड़ी सं या में श्रद्धालुओं के पहुंचने के कारण वाणगंगा पर एक मेला भी लग जाता है। जिसमें गुब्बारों से लेकर खेल खिलौने और काठ के झूले भी आते हैं। बड़ी संख्या में यहां खान-पान की वस्तुओं की दुकानें भी लगती है। आज दिन पर वाणगंगा में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आये लेकिन कल पंडितों के अनुसार मकर संक्रांति होने के कारण यहां श्रद्धालुओं की संख्या काफी बड़ जाएगी।