करवाचौथ: महिलाओ के इस खास त्यौहार, कठिन व्रत के दिन अवकाश क्यो नही..

विनय धौलपुरिया/शिवपुरी। आज सुहागन महिलाओं का सबसे खास त्यौहार और कठिन व्रत का दिन है। यह त्यौहार हिन्दु धर्म का प्रतीक और गौरवमई इतिहास को दर्शाता है। लेकिन महिलाओ के अधिकारो के बात करने वाली सरकारी इस दिन सरकारी अवकाश घोषित नही करना यह महिलाओ के साथ सौतेला व्यवहार है।

कांग्रेस हो या भाजपा या फिर कोई अन्य दल, सभी महिलाओं के हिमायती नजर आते हैं। खासकर चुनावों के मौकों पर, लेकिन यहां सबसे अहम सवाल यह उठता है कि यदि राजनैतिक दल और सरकारें महिलाओं को लेकर इतनीं चिंतित हैं।

तो फिर अन्य त्योहारों की तरह करवाचौथ के दिन को अब तक शासकीय अवकाश घोषित क्योंं नहीं किया गया? जबकि यह किसी से दबी-छिपी नहीं है कि करवाचौथ देश की महिलाओं का पूरे साल में सबसे खास और कठिन व्रत(उपवास) होता है।

इस दिन खाना तो क्या महिलाएं पूरे दिन पानी तक नहीं पीतीं। साथ ही पूरे दिन महिलाओं को रात के समय के लिए पूजा की तैयारी भी करना होता है। ऐसे में देश की उन करोड़ों महिलाओं को कितनी परेशानी होती होगी, जो कि सरकारी नौकरी करती हैं। इस परेशानी का सामना निजी संस्थानों में काम करने वाली महिलाओं को भी करना पड़ता है।

अब तो बदलते जमाने में करवाचौथ का महत्व इतना बढ़ गया है कि लगभग 80 प्रतिशत महिलाएं इस कठिन व्रत को करने लगी हैं। यही कारण कि किसी जमाने में करवाचौथ का व्रत खास हुआ करता था, लेकिन अब यह आम हो गया है। क्या गांव और क्या शहर।

अब तो यह व्रत एक तरह चलन में आया गया है। बदलते युग में महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों की भागीदारी भी करवाचौथ से जुडऩे लगी है।  इसके विपरीत सरकारों ने वोट बैंक की खातिर जातिगत आधार कई जयंतियों पर सरकारी अथवा ऐच्छिक अवकाश घोषित कर रखे हैं।

कुछ महापुरुषों की जयतियां तो ऐसी हैं, जिन पर शासकीय अवकाश कोई औचित्य नहीं है। इस तरह के सरकारी अवकाशों पर न तो कोई बड़े स्तर के शासकीय आयोजन होते हैं और न ही सामाजिक। यदि होते भी हैं तो रस्म अदायगी से अधिक कुछ नहीं। फिर भी राज्य सरकारों ने वोटबैंक की खातिर शासकीय छुट्टियां घोषित कर रखी हैं।

अब ऐसे में सवाल उठता है कि हमारी महिलाओं के साथ भेदभाव और सौतेला व्यवहार क्यों? सरकारी अवकाशों को लेकर क्या राज्य और केन्द्र सरकारों की नीतियों में महिलाओं के प्रति दोहरा और दोगलापन साफ नजर नहीं आता। यदि आप इस बात से सहमत हैं तो इस बात को अधिक से अधिक से लाइक और शेयर कर हमारे देश और राज्य की सरकारों के कान अवश्य खोलें।

अंग्रेज शासन की याद दिलाते मिशनरी स्कूल
इस बार करवाचौथ पर प्रशासन की ओर से एच्छिक अवकाश की घोषणा तो की गई है लेकिन उक्त आदेश केवल सरकारी संस्थाओं तक ही सिमटकर रह जायेगा।

यदि अकेले शिवपुरी जिले की बात की जाये तो जिले भर में हजारों महिलाऐं निजी संस्थाओं में कार्यरत हैं जो महिला कर्मचारियों को एच्छिक अवकाश का लाभ लेने नही देंगे इनमें से भी सबसे ज्यादा कट्टर संस्थानों में मिशनरी स्कूलों की गिनती होती है जो महिला अधिकारों की धज्जियाँ साफ-साफ उडाते नजर आते हैं।

जिले के मिशनरी स्कूल ना तो महिला कर्मचारियों को सर्वपितृ अमावस्या की छुट्टी देते है और ना ही करवाचौथ की। हमारी मूल संस्कृति के विरोधी संस्थान वर्षों पुराने अंग्रेज शासन की याद ताजा करा देते हैं लेकिन वर्तमान सरकार के कान पर जूं तक नही रेंगती।

नई दुल्हनों के लिए आकर्षण का त्यौहार करवा चौथ
जिन महिलाओं की शादी इसी वर्ष हुई है वह करवा चौथ का नाम सुनते ही फूली नहीं समा रही हैं। करवा चौथ उनके लिए त्यौहार से ज्यादा सजने सवरने एवं आकर्षण का त्यौहार है। लेकिन नई सुहागिनें व्रत को  अच्छे से रखने के लिए भी तैयार हैं।

ऐसे में जब किसी निजी संस्था में काम करने वाली नवविवाहिता से जनसेवामेल ने बात की तो उसने अपनी संस्था का नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि धार्मिक और सामाजिक महत्व का यह त्यौहार पहली बार ही उसके जीवन में आया है लेकिन सरकार की महिलाओं के प्रति विसंगतिपूर्ण नीतियों के कारण उसके लिये यह त्यौहार काफी तनावपूर्ण होने जा रहा है क्योकि उसकी संस्था से उसे छुट्टी नही मिल रही।