बेचारे मुन्नालाल, दूसरे तो दूसरे हैं अपनों ने भी खींचा हाथ

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शिवपुरी। नगर पालिका अध्यक्ष मुन्नालाल कुशवाह को कार्यभार संभाले नौ माह हो चुके हैं। भाजपा के हाथों से ल बे समय बाद नगर की सत्ता खिसक कर कांग्रेस के पास आई हैं, लेकिन बदलाब की लहर कहीं देखने को नहीं मिल रही है।

बिजली, पानी, सड़क और सफाई की व्यवस्था से पूर्व की तरह नगर पालिका अब भी जूझ रही है। नये अध्यक्ष पर निष्क्रियता के साथ-साथ तमाम तरह के आरोप लगना भी शुरू हो गए हैं। लगे भी क्यों नहीं, भाजपा की तो छोडिय़े उनके अपने कांग्रेसी पार्षदों  ने भी राजनीति के चलते उनसे हाथ खींच लिया हैं।

यहां तक कि कतिपय पीआईसी सदस्यों ने भी उनकी राह में कांटे बिखेर दिये हैं। नगर पालिका पर कांग्रेस के लुंज पुंज शासन के चलते पार्टी को हो रहे नुकसान के लिए भी उन्हें जि मेदार ठहराया जा रहा है।

मुन्नालाल कुशवाह प्रकृति से दिखने में भले ही माखन लाल राठौर लगते हों लेकिन पूर्व नपाध्यक्ष राठौर से उन्हें राजनीति की काफी कुछ बारीकियां चतुराई, चालाकी, बाजीगरी और कलाकारी सीखना पड़ेंगी।

नगर पालिका चलाने के लिए श्री कुशवाह ने सीधा साधा रास्ता अपनाया। नगर पालिका के अधिकारियों और कर्मचारियों पर प्रशासन का अंकुश लगाने के स्थान पर मित्रवत व्यवहार किया। बिना अपने रूतवे की परवाह कर वह सीएमओ के यहां हाजिरी बजाते रहे।

पार्षदों को भी उन्होंने ललचाकर पाले में खींचने का प्रयास किया। पेयजल की सप्लाई में उन्होंने प्रत्येक पार्षद को 10-10 लाख के वित्तीय अधिकार दिये। पार्टी के कुछ ऐसे पार्षदों को उन्होंने पीआईसी में शामिल किया। जिनकी प्रकृति उनके लिए परेशानी खड़ा कर सकती थी।

लेकिन इससे उन्हें फायदे के स्थान पर नुकसान ही अधिक हुआ। प्रशासनिक अंकुश न लगने से नौकरशाही वेलगाम हुई और पार्षदों को ललचाने के तरीके से उनकी छवि भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले अध्यक्ष के रूप में विकसित होने लगी।

इसका परिणाम यह हुआ कि नगर पालिका अराजकता का शिकार हुई। कर्मचारियों के द तर में न बैठने से आम जनता की परेशानियां बढ़ गई और इसका ठीकरा मुन्नालाल कुशवाह पर फोड़ा जाने लगा। सफाई व्यवस्था चौपट हो गई। शहर की स्ट्रीट लाईटें बंद हो गई और रात होते ही शहर अंधेरे में डूबने लगा।

पेयजल सप्लाई में भी 3 करोड़ रूपए से अधिक फूंकने के बाद भी जनता प्यासी रही। प्रशासन की अक्षमता का नुकसान यह हुआ कि जिस पीआईसी को दस लाख रूपए से नीचे के कार्यों को प्रशासकीय वित्तीय स्वीकृति देने का अधिकार है।

उस पीआईसी ने अपने अधिकारों का अंजाने में अतिक्रमण कर 83 लाख रूपए की सड़क निर्माण के प्रस्ताव को वित्तीय स्वीकृति दे दी। लेकिन यह भी सच है कि श्री कुशवाह नगर के विकास के लिए कुछ करना चाहते हैं। परन्तु वह करें तो क्या करें। उन्हें जहां भाजपा के पार्षद घेर रहे हैं वहीं उनके अपने पार्षदों का भी उन्हें सहयोग नहीं मिल रहा।

उल्टे वे श्री कुशवाह पर आरोपों की बौछार करने का और परिषद में उन्हें जलील करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। चर्चा तो यह भी है कि उन्हें घेरने के लिए ऐसा मजबूत जाल बुना जा रहा है। ताकि लम्बे समय बाद निर्वाचित पिछड़ा वर्ग के अध्यक्ष को बाहर का रास्ता दिखाया जा सके। 
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