अपने अधीनस्थ रहने वाले व्यक्ति से नहीं करें कठोर व्यवहार: साध्वी शुभंकराश्रीजी

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शिवपुरी। प्रेमभाव का व्यवहार हमारे जीवन में सफलता की ओर ले जाता है। वहीं व्यक्ति सबका प्रिय होता है जो प्रेम की भाषा जानता है। हम अपने नौकर के साथ भी प्रेमभाव का व्यवहार रखें तभी वह हमारा विश्वासपात्र और वफादार बन पाएगा, उक्त व्याख्यान आज शुभंकराश्रीजी म.सा. ने भक्तामर के पांचवे दिन की गाथा में पदमावती देवी के पूजन के बाद कहे। 

आज भक्तामर संपूट अभिषेक में आगे की चार गाथाओं की पूजन विधि की गई। कार्यक्रम में जैन समाज के सभी स्त्री, पुरूषों ने हिस्सा लिया।  अपने आज के प्रवचन में प्रेम की भाषा को समझाते हुए साध्वी जी ने कहा कि हम अपने नौकर से पूरी जो भी काम करवाते हैं वह उसे पूरी मेहनत के साथ करता है और कार्य खत्म हो जाने के बाद वह अपने घर जाकर भी उसके निजी काम खत्म करता है।

 कभी-कभी ऐसा होता है कि हमारे घर में मेहमान आ जाते हैं और हम नौकर से चार गुना काम लेते हैं ऐसे वक्त हमें उसके भी खाने पीने का ध्यान रखना चाहिए, साथ ही जब वह घर जाये तो उसके साथ उसके परिवार के खाने पीने का भी ध्यान रखना हमारी जिम्मेदारी है क्योंकि जब वह ज्यादा काम करके घर जायेगा तो संभवत: घर पर थकावट के कारण व्यक्तिगत काम नहीं कर पायेगा और उसके परिजनों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा। 

खासकर घर में काम करने वाली महिलाओं के प्रति हमारा उदारभाव होना चाहिए। हम अपने अधीनस्थ अथवा नौकर से कठोर व्यवहार न करें और उसके  अच्छा काम करने पर उसे साधुवाद भी दें। 

जब वह आपका पुराना नौकर हो जाएगा तो वह तनख्वाह के लिए चिंता नहीं करेगा क्योंकि उसे आपका व्यवहार बांधे हुए है। पुराने नौकरों जिन्होंने जीवनभर आपका साथ दिया है उन्हें अंत समय में नौकरी से न निकालें और उनकी परेशानियोंं में उनका साथ दें क्योंकि इतना समय काम करने के बाद वह आपके परिवार के सदस्य हो जाते हैं। उनकी दुख बीमारी में भी हमें उनका साथ देना चाहिए। आज के प्रवचनों में साध्वी जी ने नौकर और मालिक के व्यवहार को सुंदर ढंग से चित्रित किया। 


भगवान पाश्र्वनाथ को अपने मस्तक पर बैठाकर की थी पदमावती देवी ने रक्षा
आज के भक्तामर पाठ में पदमावती माता का अभिषेक किया गया। पदमावती माता की कहानी पाठ भी साध्वी जी द्वारा सुनाया गया। साध्वी जी ने कहा जब पाश्र्व कुमार और उनकी माता गांव के एक मेले में गये हुए थे तभी पाश्र्व कुमार ने एक जगह जलती हुई लकड़ी देखी।

अपने लब्धी ज्ञान से उन्होंने देखा कि लकड़ी के अंदर नाग-नागिन का जोड़ा जल रहा है। तुरंत उन्होंने लकड़ी को बाहर निकलवाया और उसमें से नाग-नागिन के जोड़े को बाहर निकाला। अत्यधिक जले होने के कारण नाग-नागिन कुछ ही सेेकेण्ड तक जी सके।

 पाश्र्व कुमार ने उन्हें नमोकार मंत्र का छोटा रूप सुनाया जो बाद में धर्णेन्द्र पदमावती बनकर नागलोक के राजा-रानी बने। एक बार जब कमठ द्वारा अत्यधिक पानी बढ़ाकर भगवान की तपस्या को भंग किया जा रहा था तब पदमावती माता ने भगवान को अपने मस्तक पर ले लिया और धर्णेन्द्र ने फन फैलाकर वर्षा के पानी को रोका। आज भी पदमावती माता की प्रतिमा के ऊपर पाश्र्वनाथ विराजमान हैं।
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