आरोप है कि इस धारा के तहत भू स्वामी द्वारा शिकायत आने पर आनन-फानन में पटवारी और गिरदावर से रिपोर्ट ली जाती है और तुरत-फुरत आदेश पारित कर दिए जाते हैं।
अभिभाषक लक्ष्मीनारायण धाकड़ का आरोप है कि तहसीलदार द्वारा प्रतिवादी पक्ष को सुनवाई का भी अवसर नहीं दिया जाता ताकि वह अपना पक्ष स्पष्ट कर सके।
इस तरह से प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का धारा 250 की आड़ में उल्लंघन किया जा रहा है। अवैध कब्जा न हटाने पर सिविल जेल का प्रावधान है जिसका उपयोग कर अभी तक पांच सैंकड़ा से अधिक लोगों को जिलेभर से जेल भेज दिया गया है।
अभिभाषक लक्ष्मीनारायण धाकड़ ने जानकारी देते हुए बताया कि भू राजस्व संहिता की धारा 250 कहती है कि यदि किसी भूस्वामी की जमीन पर दो माह से कब्जा है तो इस संबंध में शिकायत करने पर तहसीलदार द्वारा कार्यवाही की जा सकती है।
लेकिन जिले में तहसीलदार द्वारा इस धारा की आड़ लेकर 10-10, 12-12 साल पुराने कब्जे हटाये जा रहे हैं। जबकि ऐसा नहीं किया जा सकता। उनके अनुसार 12 साल निरंतर कब्जा भूमि स्वामी की जानकारी में होने पर जमीन में कब्जाधारी का स्वत्व पैदा हो जाता है।
कार्यवाही भी इतनी तत्काल की जाती है कि विरोधी पक्ष को सुनवाई का अवसर भी नहीं दिया जा रहा। मात्र पटवारी ओर गिरदावर की रिपोर्ट लेकर आदेश पारित कर दिए जाते हैं और कब्जा न छोडऩे पर सिविल जेल भेज दिया जाता है।
तहसीलदार के आदेश की अपील अनुविभागीय दण्डाधिकारी के यहां होती है जहां भी सुनवाई का कोई अवसर नहीं दिया जाता। कब्जेधारियों को बेदखल करने में दिक्कत क्या है? इस सवाल के जबाव में श्री धाकड़ ने बताया कि वह कब्जेधारियों की पैरवी नहीं कर रहे, लेकिन धरातल की वास्तविकता से भी प्रशासन को अवगत होना चाहिए।
उनके संयुक्त खाते की जमीन में आपसी रजामंदी से बंटवारा हो जाता है और प्रत्येक अपने-अपने हिस्से की जमीन पर काबिज हो जाता है। ऐसे में देखने में यह आया है कि किसी खातेदार की नियत में खराबी आ जाती है तो वह अपनी जमीन पर कब्जे की शिकायत कर देता है। इस तरह से धारा 250 के बेजा उपयोग से दुश्मनी की घटनाएं भी बढ़ रही हैं।
2009 से 2013-14 तक की नहीं मिल रहीं खसरे की नकलें
अभिभाषक लक्ष्मीनारायण धाकड़ का कथन है कि शिवपुरी जिले में 2009 से 2013-14 तक की खसरे की नकलें क प्यूटर सेंटर द्वारा नहीं दी जा रहीं जिससे कृषक परेशान हैं, वहीं नामांतरण का अमल होने में भी एक से दो माह तक का समय लगाया जा रहा है।
पहले तो पटवारी नामांतरण कर देता था और हाल की हाल उसका अमल हो जाता था लेकिन अब छह-छह माह में भी अमल नहीं हो रहा। जिससे किसान केसीसी और लोन प्रकरण में नकलें नहीं लगा पा रहे।