शिवपुरी। शहर के सडको के लिए सिरदर्द बन चुका सीवर प्रोजेक्ट का सीवर ट्रीटमेंट प्लांट का काम फिर रूक गया है नेशनल पार्क के चक्कर में फिर यह इसमें एक पैच फस गया है। अब इस काम को शुरू करने के लिए एक एनओसी फिर पीएचई विभाग को लानी होगी।
जानकारी मिल रही है 106 करोड की लागत के सीवर ट्रीटमेंट प्लांट का काम एक बार फिर से अटकने की संभावना नजर आ रही है। क्योंकि स्टेट वाइल्ड लाइफ ने प्रोजेक्ट का काम कर रहे पीएचई विभाग से कहा है कि पहले देश की किसी मान्यता प्राप्त एनजीओ से इस बात का मूल्यांकन करा लिया जाए कि सीवर ट्रीटमेंट प्लांट से फिल्टर होकर निकलने वाले पानी का नेशनल पार्क की हरियालीए जीव.जंतुओं पर कोई विपरीत असर तो नहीं पडेगा। यह रिपोर्ट मिलने के बाद ही इस प्रोजेक्ट को अनुमति मिल सकेगी।
इधर पीएचई के ईई ने पार्क डायरेक्टर को पत्र भेजकर कहा है कि सर्वे का काम आप खुद ही करवा लें, जो भी खर्च आएगा उसे पीएचई उठाएगी। नेशनल पार्क प्रबंधन व पीएचई विभाग के अफसरों की कशमकश में शिवपुरी सीवर प्रोजेक्ट का बहुप्रतीक्षित काम एक बार फिर से लटकने के आसार नजर आ रहे हैं। उधर पीएचई अफसर इस और उदासीन दिख रहे हैं।
इस मामले मे प्रोजेक्ट मैनेजर केजी सक्सैना का कहना है कि ट्रीटमेंट प्लांट के लिए मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड गुना की एनओसी तो हमें सितंबर 2014 को ही मिल गई थी। वो हमने पार्क डायरेक्टर को दे दी। उनका कहना था कि इस रिपोर्ट को मान्यता नहीं मिलेगी, तो वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया केंद्र के अधीन देहरादून से बात कर लें। हमने देहरादून भी पत्र भेज दियाए साथ ही पार्क डायरेक्टर को भी एक पत्र दिया है।
सीवर प्रोजेक्ट मैनेजर के अनुसार घसारही पर जो ट्रीटमेंट प्लांट लगाया जाएगाए उसकी शोधन क्षमता 20 एमएलडी यानी 2 करोड लीटर प्रतिदिन होगी। इसमें कई चेंबर होंगे, जिसमें से होकर वो गंदा पानी साफ होता हुआ आखिर में शुद्ध पानी के रूप में निकलेगा। एक बार के सीवर का ट्रीटमेंट होने में तीन से चार दिन लगेंगे। 19.70 करोड रुपए की लागत से बनने वाला ट्रीटमेंट प्लांट कंप्यूटराइज्ड होगा।
शिवपुरी में बन रहे सीवर की मेन ट्रंक लाइन शहर के प्रमुख नालों से होती हुई जाधव सागर, करबला के पास से निकलती हुई घसारही पर पहुंचेगी। यहां इक_ा होने वाला सीवर के गंदे पानी को ट्रीटमेंट प्लांट में शुद्ध किया जाएगा। इसके बाद जो पानी बाहर निकाला जाएगा। वह पानी बडही नदी से होता हुआ नेशनल पार्क के छोटे-बडे जलस्रोतों में पहुंचेगा।
स्टेट वाइल्ड लाइफ भोपाल ने पीएचई विभाग के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर को पत्र लिखकर इस बात की चिंता जताई है कि ट्रीटमेंट प्लांट से डिस्पोजल होने वाले पानी में कोई ऐसी नुकसानदायक तरल या गैस तो नहीं निकलेगी, जो प्रकृति, वन्यजीव या वातावरण पर विपरीत प्रभाव डालेघ, इसलिए किसी मान्यता प्राप्त संस्थान या एनजीओ से क्षेत्र का सर्वेक्षण कराकर उसकी रिपोर्ट वाइल्ड लाईफ ऑफि स में सबमिट की जाए।
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