यशोधरा जी, सावधान! ये विकास का विषय है राजनीति मंजूर नहीं

शिवपुरी। शिवपुरी को पता नहीं कौन सा श्राप मिला हुआ है। मध्यप्रदेश के आदिवासी जिला अलीराजपुर विकसित हो गया। आदिवासी वहां 3जी स्मार्टफोन आपरेटर करते हैं परंतु नेशनल हाइवे पर होने के बावजूद शिवपुरी का आज तक लेश मात्र भी विकास नहीं हुआ। उल्टा 80 के दशक में जो शांति थी वो भी जाती रही।

अब तो बस याद ही कर सकते हैं कि वो भी एक समय था जब शिवपुरी को ग्वालियर की शिमला कहा जाता था। प्रदूषण रहित सुन्दर और शांत शहर। रोजगार और व्यापार की भी कोई कमी नहीं थी। पत्थर की खदानें हर व्यक्ति को कुछ ना कुछ दे ही रहीं थीं। बेरोजगार को रोजगार और व्यापारी को व्यापार।

इसमें काई दो राय नहीं कि 1899 से 1914 तक शिवपुरी में जो विकास हुआ, उसकी तो तुलना ही नहीं की जा सकती। माधौ महाराज ने घने जंगलों के बीच पहाड़ों पर बने इस गांव को देखते ही देखते शहर बना दिया। केवल शहर नहीं बल्कि आधुनिक शहर। देश के दूसरे बड़े शहरों में जब गलियों में पाटे भी नहीं होते थे, तब शिवपुरी में डामर रोड हुआ करती थी। लोग बैलगाड़ी पर यात्रा किया करते थे तब शिवपुरी में ट्रेन चला करती थी। शिवपुरी में निवास करने वाले नागरिकों के लिए हवा, पानी और सुविधाओं के तमाम इंतजाम किए थे माधौ महाराज ने।

लेकिन दुखद सत्य यह भी है कि आजादी के बाद से आज तक माधौ महाराज जैसा क्या, उनका शतांश भी विकास नहीं हुआ। कमोवेश वो विचार भी किसी सिंधिया प्रतिनिधि के हृदय में ना आया होगा। आजादी के बाद से लगातार मृत्युपर्यंत शिवपुरी की जनता राजमाता विजयाराजे सिंधिया को जिताती रही। कर्नल ठिल्लन से लेकर केपी सिंह तक सबने कहा कि गुलामी छोड़ो लेकिन शिवपुरी की जनता जिल्लत सहन करते हुए भी सिंधिया परिवार को वोट देती रही।

250 साल से शिवपुरी की जनता लगातार सिंधियाओं के प्रति बफादार रही। जिसकी ओर इशारा किया उसे जिता दिया। जहां कहां वहां सील लगा दी, लेकिन आज हालात यह हैं कि शिवपुरी एक ऐसा शहर हो गया है जिसे रहने लायक भी नहीं कहा जा सकता।

  • खदानें बंद हैं,
  • जल संकट बरकरार,
  • बेरोजगारी बढ़ती जा रही है,
  • प्रतिभाओं का पलायन बदस्तूर जारी है,
  • सड़कें खुदी पड़ीं हैं
  • सुअरों के लिए भी हाईकोर्ट जाना पड़ा
  • NFL आया शिवपुरी के लिए था, लेकिन ऐसी ही एक राजनीति का शिकार होकर गुना शिफ्ट हो गया। आज वो गुना के विकास का प्रमुख कारण बना हुआ है और हमारे युवा उसमें नौकरी को तरसते हैं। 

1915 से लेकर 2015 तक पिछले 100 साल में एक तिनका नहीं बढ़ी शिवपुरी, हां घट जरूर गई। ले देकर एक मेडिकल कॉलेज आ रहा था तो उस पर भी राजनीति शुरू हो गई। हम समझते थे कि यह भाजपा और कांग्रेस का झगड़ा है परंतु यह तो बुआ भतीजे की तू-तू मैं-मैं निकली। बुआजी ने अपने समर्थकों को झटक दिया कि एक कागज का टुकड़ा लाने से मेडिकल कॉलेज नहीं बनता। हम तो समझते थे कि कागजों की बड़ी कीमत होती है। कागजों पर तो सरकारें बन जातीं हैं तो फिर ये मुआ मेडिकल कॉलेज क्यों नहीं बनेगा, लेकिन बुआजी का कहना है कि कागजों से नहीं बनता। कैसे बनता है यह भी बुआजी को मालूम है लेकिन वो बनने नहीं देंगी क्योंकि इसका श्रेय उन्हें नहीं मिलेगा। भले ही इससे शिवपुरी का कितना भी नुक्सान हो जाए। उनकी तुनकमिजाजी पर शिवपुरी का विकास बलिहार।

हम तो समझते थे कि यह उनकी ड्यूटी है। विधायक हैं। सत्तापक्ष में हैं। केबीनेट मंत्री भी हैं। हम नहीं समझना चाहते कि कौन बुआ है और कौन भतीजा। हम तो यह जानते हैं कि वो सांसद हैं, केन्द्र में उनकी सरकार थी। जो भी हेरफेर किए लेकिन एक कागज लाए, सरकारी सील सिक्के वाला कागज। अशोक स्तंभ है उस कागज पर। अशोक स्तंभ जिस कागज पर लग जाए वो कागज नहीं नोट बन जाता है। रजिस्ट्री भी उसी पर होती है जिस पर अशोक स्तंभ छपा हो। फिर इस कॉलेज वाले अशोक स्तंभ की कीमत क्यों नहीं है।

केन्द्र सरकार का काम पूरा हो गया। अब बारी राज्य सरकार की थी। उस शिवराज की जिसे हमने मामा कहा। जिसके कहने पर लोकसभा में भाजपा को वोट दिए और मेडिकल कॉलेज का कागज लाने वाले सिंधिया को शिवपुरी विधानसभा से हरा दिया, फिर भी मामा ने मामू बना दिया। उम्मीद थी हमारी विधायक केबीनेट मंत्री हैं, कुछ करेंगी। शिवपुरी के हाथ से कॉलेज निकलने नहीं देंगी लेकिन वो तो तेवर दिखा रहीं हैं।

उनके सलाहकारों को चाहिए कि उन्हें स्पष्ट रूप से बता दें, कि यह शिवपुरी के विकास का विषय है। बुआ और भतीजे का प्रॉपर्टी विवाद नहीं। यहां जनहित देखना ही होगा। यदि नहीं देखा तो नगरपालिका चुनावों में नजीर पेश की जा चुकी है। रही सही कसर 5 साल बाद पूरी कर लेंगे। ये आम जनता है। 250 साल से चुप है। चुप ही रहती है, लेकिन बेवकूफ नहीं है। शिवपुरी के खाते में कॉलेज लिख दिया गया है तो वो चाहिए। हर कीमत पर चाहिए। इस विषय में तेवर नहीं चलेंगे, जनहित में निर्णय लेना होगा, शिवपुरी के हित में निर्णय लेना होगा। यदि इस दौरे के दौरान वो घोषणा करतीं कि सांसद कुछ नहीं कर पाए तो क्या, मैं हूं ना, तो पूरा का पूरा शहर समर्पित हो जाता परंतु दुखद कि वो तो तेवर दिखा रहीं हैं।

उन्हें बता दीजिए, ये तेवर यदि उन्होंने चुनाव से पहले दिखा दिए होते तो आज केबीनेट में भी ना होंती। शिवपुरी में सिंधिया विरोध को हवा देने वाले पहले से ही बहुत हैं। ऐसे हालात पैदा मत कीजिए आम जनता भी खिलाफ हो जाए। मेडिकल कॉलेज से शिवपुरी का भविष्य तो चौपट होगा लेकिन उन्हें समझना होगा कि उनका भविष्य भी स्वर्णिम नहीं रह जाएगा। कम से कम शिवपुरी विधानसभा से।