शिवपुरी। इस समय शिवपुरी का वोटर मोदी और शिवराज की लहर के बाद भी आने वाले चुनाव में नपा के चुनाव में भाजपा को पटकनी दे सकता है और कारण बना है रिशिका अष्ठाना का कार्यकाल।
आंकड़े गवाह हैं कि नगरीय क्षेत्र में वर्षों से भाजपा का दबदबा कायम रहा है। अपवाद रहा तो सिर्फ 2004 का नगरपालिका अध्यक्ष पद का चुनाव जब निर्दलीय प्रत्याशी जगमोहन सिंह सेंगर ने भाजपा उ मीदवार देवेन्द्र जैन को 10 हजार से अधिक मतों से पराजित किया था और कांग्रेस प्रत्याशी गणेशीलाल जैन को तो जमानत से भी हाथ धोना पड़ा था।
उस चुनाव में प्रत्याशी की छवि निर्णायक रही थी और मतदाता ने कांग्रेस तथा भाजपा दोनों दलों को आईना दिखा दिया था। मतदाता ने बताया था कि यदि ठीक प्रत्याशी कोई भी दल यदि चुनाव मैदान में नहीं उतारते तो उनमें अन्य विकल्प को चुनने की भी सामथ्र्य है। देश में नरेन्द्र मोदी का जादू है और प्रदेश में शिवराज लहर है, लेकिन इसके बावजूद भी भाजपा के लिए इस बार का नगरपालिका चुनाव उतना आसान नहीं है। क्योंकि नगरपालिका में भाजपा के पिछले पांच साल का कार्यकाल मोदी और शिवराज लहर पर भारी पड़ सकता है।
कांग्रेस तो इस समय सबसे बुरे दिनों से गुजर रही है। ऐसी स्थिति में साफ है कि इस बार प्रत्याशी की छवि निर्णायक होगी और उ मीद है कि बेहतर छवि वाला उ मीदवार ही चुनाव जीतने में सक्षम होगा। इस बात के कोई मायने नहीं कि वह कांगे्रस से है या भाजपा से अथवा निर्दलीय रूप से चुनाव मैदान में उतरा है।
इस बार के चुनाव में मतदाताओं की नगरपालिका से अपेक्षा कुछ ज्यादा बढ़ गई है। शायद इसका सबसे बड़ा कारण नगर की दुव्र्यवस्था है। यहां के नागरिक जल संकट को भोग रहे हैं। सीवेज प्रोजेक्ट भी परेशानी का कारण बना हुआ है। अतिक्रमणों ने शहर की सुंंदरता को ग्रस लिया है तथा गंदगी से यहां के नागरिकों का जीवन एक तरह से नारकीय बना हुआ है।
नगरपालिका के गुणवत्ताविहीन कार्य भी मतदाताओं के आक्रोश का कारण बने हुए हैं। कांग्रेस से मतदाताओं को इसलिए चिढ़ और निराशा है, क्योंंकि सत्ता में न होने के बाद भी उसने विपक्ष के दायित्व का निर्वहन नहीं किया और पर्दे के पीछे सत्ताधारी दल के प्रति दोस्ती का ही निर्वहन किया है। ऐसी स्थिति में मतदाता सशंकित है। सन् 93 से ही बात करें तो नपाध्यक्ष पद पर भाजपा उ मीदवार श्रीमती राधा गर्ग, माखनलाल राठौर और श्रीमती रिशिका अनुराग अष्ठाना पहुंचने में सफल रहे हैं।
जहां तक कांग्रेस की बात है तो कांग्रेस को तो हर चुनाव में निराशा का सामना करना पड़ा है। भाजपा की उपलब्धियों की बात करें तो उनके पास गिनाने के लिए है ही क्या? माखनलाल राठौर के कार्यकाल के बाद भाजपा ने जब पूर्व विधायक देवेन्द्र जैन को चुनाव मैदान में उतारा तो जनता ने उन्हें नकार दिया।
इस चुनाव में मतदाता रिशिका अष्ठाना की उपलब्धियों का आंकलन कर मानसिकता बनाएगा। इसलिए इस बार दलों ने यदि मनमाना रवैया अपनाया तो चुनाव में उन्हें इसका परिणाम भुगतना पड़ सकता है।
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