वार्डवासियों पर नेशनल इश्यू पेल गए सिंधिया

शिवपुरी। सामने वार्ड 17 के निवासी थे, कार्यक्रम था आपका सांसद आपके द्वार, लेकिन सिंधिया ने क्लासीफिकेशन का ध्यान ही नहीं दिया। मोदी को टारगेट कर नेशनल इश्यूज पर भाषण पेल गए सिंधिया। लोग आए थे वार्ड 17 की समस्याएं सुनाने, लेकिन जब भाषणबाजी का खेल देखा तो तालियां बजाकर तितर बितर हो गए।

इस बेहतर लोकल एवं वार्डलेवल के कार्यक्रम में उम्मीद थी कि सिंधिया पंचायत का आयोजन करेंगे, वार्ड की समस्याओं को सुनेंगे, उन्हें दूर करने के निर्देश देंगे, जरूरत पड़ी तो सांसद निधि का उपयोग करेंगे परंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ। कार्यक्रम के दौरान वार्ड 17 को शिवपुरी का स्वर्ग निरूपित कर दिया गया, जहां सिर्फ सुख ही सुख है, समस्याएं बची ही नहीं। चाटुकारिकता की पारंपरिक प्रथा शुरू हुई, नेताओं ने खुलेआम मुजरे किए और गदगद हुए सिंधिया शायद यह भूल गए कि वो केवल वार्ड 17 के निवासियों के बीच हैं और आयोजन केवल वार्ड लेवल पर ही फोकस होना चाहिए।


समस्याएं लेकर आई जनता को संबोधित करते हुये क्षेत्रीय सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि आप अच्छा भाषण देकर किसी के भी दिमाग को प्रभावित कर सकते हैं लेकिन दिल जीतने के लिये आपको खून-पसीना एक करना पड़ेगा।

इसके बाद उन्होंने ही इस नियम को तोड़ा और एक बार फिर अच्छा भाषण पेल डाला।

उन्होंने कार्यक्रम में उपस्थित भारी भीड़ को संबोधित करते हुये केन्द्र सरकार पर जमकर कटाक्ष किये। उन्होंने आम चुनाव के पूर्व भाजपा द्वारा दिये गये नारों को उपहास और उलाहना का विषय बनाते हुये पूछा कि क्या अच्छे दिन आ गये? जबाव में एक सुधी नेता की तरह उन्होंने आलू-प्याज और टमाटर की मौजूदा कीमतों से गहराई महंगाई को मुद्दा बनाकर कटाक्ष किया कि किसके अच्छे दिन आये हैं! गरीब महंगाई की मार से त्रस्त होकर दो वक्त का निवाला भी बड़ी मुश्किल से अपने और अपने परिवार के लिये जुटा पा रहा है। उन्होंने भाजपा के कांग्रेस मुक्त नारे पर जमकर चुटकी लेते हुये कहा कि अभी हाल ही में केन्द्र में जो बजट पेश हुआ है वह कांग्रेस युक्त बजट है। भाजपाईयों की कथनी और करनी में जमीन आसमान का अंतर है। उन्होंने ग्वालियर-श्योपुर नेरोगेज ट्रेन योजना को भाजपाईयों द्वारा निरस्त किये जाने के षडयंत्र की भी कलई खोलकर सार्वजनिक चेतावनी दी कि यदि इस योजना में अडंगा डाला तो ग्वालियर चंबल संभाग की जनता भाजपाईयों की ईंट से ईंट बजा देगी।

इसके बाद शुरू हुआ नेताओं का भरे मंच से मुजरे का आयोजन, जिसका उल्लेख ना ही किया जाए तो बेहतर होगा।

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