राष्ट्रपति ने आईजी माहेश्वरी की पुस्तक 'इन टू द ऑबलिवियन' का विमोचन किया

शिवपुरी। सीआरपीएफ के इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस(आईजी) डॉ.ए.पी.माहेश्वरी व सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती विनीता चांडक द्वारा लिखित पुस्तक 'इनटू द ऑबलिवियन' का विमोचन आज देश के महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने अपने करकमलों से किया।

इस दौरान आईजी श्री माहेश्वरी द्वारा पुस्तक की एक प्रति राष्ट्रपति को सौंपी। आईजी द्वारा लिखित यह पुस्तक अब शीघ्र ही बाजार में भी उपलब्ध होगी। अपनी मॉं के जीवन पर आधारित यह पुस्तक कैंसर रोग को रेखांकित करती है जिसके कारण कितने ही मासूम असमय काल के गाल में समा जाते है। ऐसे में इस पुस्तक के बाजार में आने से कैंसर रोग के समाधान व उपचार तो मिलेंगें ही साथ ही अन्य लोग भी इससे प्रेरणा लेकर अन्य लोगों को प्रभावित कर कैंसर रोग की रोकथाम में अपना महत्वपूर्ण योगदान देंगें। यह पुस्तक ओशन बुक्स प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली द्वारा प्रकाषित की गई है। राष्ट्रपति श्री मुखर्जी ने पुस्तक का विमोचन कर उसका अवलोकन किया और पुस्तक लिखने पर आईजी श्री माहेश्वरी व श्रीमती विनीता चांडक के कार्यों की सराहना की।

महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के द्वारा औपचारिक रूप से विमोचित की गई पुस्तक इनटू द ऑवलिवियन के बारे में पुस्तक के लेखक आई.जी. डॉ.ए.पी.माहेश्वरी ने बताया कि कहानी के रूप में लिखी गई यह पुस्तक ग्रंथकार द्वारा अपनी मॉं को दी गई श्रद्धांजलि स्वरूप है। ये उनकी स्मृतियों का एक संग्रह है, जो घातक रोग ''कैंसर" के हाथों उन्हें खोने के बाद लिखे। 

सतह के परे स्थित सत्य को जानने की ग्रंथकार की यह एक सच्ची कोशिश है। यह पुस्तक उनकी मॉं, जो राजस्थान के दूर-दराज गांव की एक सीधी-सादी अल्प-शिक्षित महिला थीं, के जीवन के अनुभवों पर आधारित है। कैसे वह प्रार भ शहरी जीवन में अपने आप को ढालती रहीं, फि र अपने परिवारजनों व अन्य स बंधियों एवं सहजनों के मन पर अपनी छाप छोड़ती गयीं। वे जीवन में सबको हॅंसी, खुशी व सद्भावना बांटती चलती थीं। उनके गुणों ने उन्हें एक आदर्श पत्नी ही नहीं अपितु एक ऐसी 'मॉं' बनाया,जिसने अपनी संतानों में सशक्त धार्मिक, पारिवारिक व मानवीय मूल्यों का संचन किया। यह पुस्तक छोटी-छोटी ऐसी सच्ची घटनाओं से भरी पड़ी है जो यह दर्शाती है कैसे यह जानने के बाद भी कि वे कैंसर से पीडि़त हैं, उन्होने खुशियॉं बिखेरना जारी रखा। 

यह दर्शाती है कि किस तरह उन्होंने अपना आत्मसंयम, निश्चलता, ईष्वर में अपना विश्वास एवं अपनों का उत्साह उस स्थिति में भी अपने साहस व सहनशक्ति से बनाए रखा जबकि वह घातक बीमारी कभी भी उनको इस सृष्टि से तिलांजति दिला सकती थी। वह इस 'न्यूक्लियर-फैमिलीÓ के आधुनिक युग में अनुकरणीय व्यक्तित्व के रूप में उभरी हैं। ''रोगी दवा और दया से नहीं, प्रेम और अपनत्व से षीघ्र अच्छा होता हैÓÓ- पुस्तक के माध्यम से दिया गया यह संदेश प्रस्तुत कृति को मानवीय संदर्भो एवं संवेदनशीलता से जोड़ता हुआ पाठकों के मन पर निराली छाप छोड़ता है, का एक माध्यम है। इस पुस्तक में विषेश रूप से कैंसर जैसे घातक रोग के निदान की दिशा में अनेक व्यवहारिक पहलुओं को उभारा गया है।

पुस्तक में यह दिए सुझाव
* कैंसर की जटिलता, उसका इलाज व वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उसकी सीमा
* इसके विविधतापूर्ण मनोवैज्ञानिक-व्यवहारिक और कैंसर रोगियों की देखरेख करने वालों का कोमल स्पर्श, जो ऐसे रोगियों को उनके रोग से लडऩे की क्षमता को कई गुणा बढ़ा देता है
* जीवन-प्रबंधन व रोग-निरोधक स्वास्थ्य-संरक्षण के बारे में विस्तृत विमर्श
* नारी सशक्तिकरण व समाज में अभी भी प्रचलित विविध सामाजिक
* रूढिय़ों के सापेक्ष अपनी पहचान
* पारिवारिक मूल्यों व सामाजिक रिश्तों की कसौटी
* रोगी की पीड़ा कम करने के बारे में महत्वपूर्ण सुझाव
* आध्यात्मिकता से जनित शक्ति
* आत्म अनुभूति की पराकाष्ठायें

1984 बैच के आईपीएस है आईजी ए.पी.माहेश्वरी
सीआरपीएफ के आई.जी.डा. ए.पी.महेश्वरी,1984 बैच के भारतीय पुलिस सेवा 1/4उ0प्र0संवर्ग1/2 के अधिकारी हैं, जिन्हें वीरता के लिए पुलिस पदक व विषिश्ट सेवाओं के लिए राश्टंपति के पुलिस पदक समेत कई अन्य पुरस्कारों से अलंकृत किया जा चुका है। उन्होंने अपने जीवन के अनुभवों पर आधारित कई पुस्तक ें लिखी हैं। उनकी एक प ुस्तक को प्रतिश्ठित 'गोविन्द बल्लभ पंतÓ पुरस्कार भी मिला है। वर्तमान में वे केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल में प्रतिनियुक्ति पर हैं। वहीं दूसरी लेखिका श्रीमती विनीता चांडक राजनीति षास्त्र में परास्नातक हैं। वे एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो ग्वालियर, मध्य प्रदेष में विविध सामाजिक कार्यों में रत हैं।