पिता की यातनाओं से पीडि़त बालकों को बालगृह ने भी नहीं दिया आसरा

शिवपुरी। डेढ़ माह में दूसरी बार बाल कल्याण समिति और बालगृह प्रशासन फिर आमने-सामने आ गए हैं। ताजा मामले में अपने पिता की यातनाओं से प्रताडि़त दो सगे भाईयों को बालगृह प्रशासन ने नियमों की आड़ लेकर उन्हें आश्रय देने से मना कर दिया है। जबकि बाल कल्याण समिति ने उन बच्चों को बालगृह में रखने की अनुशंसा की थी।

इसके पहले भी बालगृह संचालक ने एक किशोरी को मानसिक रूप से विकलांग बताकर अपने यहां रखने से इंकार कर दिया। लेकिन मानसिक आरोग्यशाला की जांच में यह सिद्ध हुआ कि उक्त बालिका मानसिक रूप से विक्षिप्त नहीं है। वह किसी घटना के कारण दहशत में है और बोल नहीं पा रही। इसके बाद टीव्ही टॉवर रोड के नीचे स्थित बालगृह प्रशासन को उक्त बालिका को आश्रय देना पड़ा था। 

गौशाला क्षेत्र में रहने वाले 10 वर्षीय संजय और 8 वर्षीय छोटू लंबे समय से अपने शराबी पिता के जुल्म को भोग रहे हैं। उनका पिता सुट्टे शराबी होने के साथ-साथ निठल्ला है। अपनी शराब की आदत और ऐश-आराम पूरा करने के लिए वह अपने दोनों बच्चों से जब से उन्होंने होश संभाला है, कचरा बिनवा रहा है। दोनों बच्चों को प्रतिदिन वह तीन सौ रूपये का कचरा बीनने का टारगेट देता है और इससे कम राशि प्राप्त होने पर वह दोनों बच्चों की जमकर पिटाई लगाता है। उसकी यातना को उसकी पत्नी सुशीला भी भोग रही है। दोनों बच्चों ने आज तक स्कूल का मुंह नहीं देखा है। लेकिन दोनों काफी समझदार हैं और अपने पिता के आतंक से मुक्ति पाने की इच्छा रखते हैं। 

इसी कारण 17 जुुलाई को उन्होंने चाइल्ड लाइन से जुड़े नवी खान को किसी के माध्यम से फोन कराया। फोन पर दोनों बच्चों की कहानी सुनकर नवी खान तुरंत पुरानी शिवपुरी पहुंचे और वह उन बच्चों को चाइल्ड लाइन के कार्यालय लेकर आए। इसके बाद नवी खान ने उन बच्चों के पिता और मां को बुलाया। मां ने भी पुष्टि की कि सुट्टे पिता नहीं, बल्कि दरिंदा है। सुट्टे ने कहा कि वह विकलांग है और पैरों से लाचार है। इस कारण कोई काम नहीं कर सकता इसीलिए वह दोनों बच्चों से कचरा बिनवाने का काम करता है। इसकी जानकारी जब बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष जिनेन्द्र जैन को लगी तो उन्होंने डीपीसी शिरोमणि दुबे से बात की। 

श्री दुबे ने उन्हें बताया कि जल्द ही शिवपुरी में आश्रयगृह शुरू हो रहा है। जिसमें इन बच्चों को रखकर उनकी शिक्षा, ठहरने, खाने-पीने आदि की व्यवस्था हो जाएगी। तब तक इन बच्चों की किसी अन्य स्थान पर व्यवस्था की जाए। श्री जैन का तर्क था कि यदि इन बच्चों को उनके पिता को सौंपा जाएगा तो न केवल वह पढ़ लिख नहीं पाएंगे, बल्कि उनका भविष्य भी खराब हो जाएगा तथा उनके अपराधी बनने की आशंका बढ़ जाएगी। इस कारण बाल कल्याण समिति ने अपनी बैठक में वैकल्पिक व्यवस्था होने तक उन बच्चों को बालगृह में रखने का आदेश दिया। 

लेकिन बालगृह प्रशासन ने लिखित रूप से चाइल्ड लाइन को अवगत कराया कि नवीन आईसीपीएस नियम 2014 में वर्णित पेज नंबर 44 के नियमानुसार उक्त दोनों बालकों को बालगृह में नहीं रखा जा सकता। उनका कहना था कि चूंकि वे बच्चे कचरा बीनते हैं इस कारण उन्हें आश्रयगृह में रखा जाना चाहिए। यह कहकर उन बच्चों को पुन: चाइल्ड लाइन के कार्यालय पहुंचवा दिया गया जबकि नियमानुसार चाइल्ड लाइन में 24 घंटे से अधिक किसी बच्चे को नहीं रखा जा सकता।

बाल गृह प्रशासन ने असंवेदनशीलता को किया प्रदर्शित
डेढ माह में दो मामले ऐसे आए जिससे बालगृह प्रशासन में मानवीय असंवेदनशीलता की झलक मिलती है। बालगृह के लिए शासन द्वारा हर स्तर की आर्थिक सहायता दी जाती है। उसके बाद भी सवाल यह है कि उनके द्वारा क्यों असंवेदनशीलता बरती जाती है? पिता की यातना से पीडि़त बच्चों को अपने यहां रखने से नियमों की आड़ में बालगृह प्रशासन ने इंकार कर दिया है। उनका कहना है कि जो बच्चे आवारा, घुमक्कड़,कचरा बीनने वाले हैं उन्हें नियमानुसार बालगृह में नहीं, बल्कि आश्रयगृह में रखा जाता है।

आश्रयगृह में रखने में निश्चित तौर पर कोई हिचक नहीं होना चाहिए, लेकिन सवाल यह है कि शिवपुरी में आश्रयगृह है नहीं। इस कारण बच्चों को ग्वालियर या श्योपुर भेजा जाएगा और गरीब मां के लिए यह संभव नहीं है कि उन्हें देखने के लिए वह वहां जा सके। दूसरा सवाल यह है कि वह बच्चे कचरा बीनने वाले नहीं है। कचरा तो उनका पिता उनसे बिनवाता है जिससे वे मुक्ति पाना चाहते हैं। चाइल्ड लाइन के नवी खान का कहना है कि इन बच्चों के लिए बालगृह में रखा जाना उचित है।  


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