सीवर प्रोजेक्ट में गंभीर अनियमितताओं के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर

शिवपुरी। अंचल की ढाई लाख आबादी के लिए जलावर्धन योजना तो पूर्ण हो नहीं सकी और अब सीवर प्रोजेक्ट का कार्य धड़ल्ले से किया जा रहा है लेकिन यह कार्य भी पूर्ण रूप से नियम निर्देशों को ताक पर रखकर किया जा रहा है यहां केन्द्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय झील संरक्षण येाजना के तहत शिवपुरी में स्थित प्राचीन झीलें जाधवसागर एवं माधव सागर लेक(चांदपाठा) के बचाव और शिवपुरी नगर की 2.5 लाख आबादी के कल्याणर्थ संचालित होकर इसका उददेश्य शिवपुरी नगर के सीवर से उन झीलों को सुरक्षित कर नगर के प्रमुख पेयजल स्त्रोतों को संरक्षित करना है।

एड. पीयूष शर्मा ने इस योजना को पूर्ण करने के लिए अब माननीय उच्च न्यायालय की शरण ली है ताकि झील संरक्षण के तहत इस योजना के निर्माण कार्य को पूर्ण ईमानदारी व क्वालिटी से किया जाए ताकि शहर में आने वाले समय में सीवर की समस्या पुन: उत्पन्न ना हो। 

स्थानीय होटल वरूण इन में आयोजित प्रेसवार्ता में सीवर प्रोजेक्ट के निर्माण में बरती जा रही गंभीर अनियमितताओं व डीपीआर मानकों को दरकिनार कर किए जा रहे निर्माण कार्या का ब्यौरा प्रस्तुत करते हुए एड. पीयूष शर्मा ने बताया कि सीवर प्रोजेक्ट के निर्माण में गंभीर अनियमितताऐं बरती जा रही है ै क्योंकि उपरोक्त प्रोजेक्ट में सीवर लाईन नेटवर्क निर्माण, सीवर ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण एवं अंत में सीवर उपचारित किया जाकर उस पानी को सिंध नदी में मिलाना है। जिसके निर्माण के लिए कुल स्वीकृत राशि 69.51 करोड़ की राशि में से 90 प्रतिशत राशि लगभग 54.05 करोड़ सीधे-सीधे, सिर्फ सीवर लाइन बिछाने में खर्च की जा रही है।

शेष दो प्रमुख भागों ट्रीटमेंट प्लांट एवं ट्रीटेड सीवर का अंत में निस्तार (सिंध में) नदी में करना शामिल है, के लिए कुल स्वीकृत की 10 प्रतिशत लगभग शेष राशि से उक्त भागों की पूर्ति करना असंभव है जबकि आज तिथि तक वर्तमान योजना के शेष उक्त 2 भागों का कार्य पूर्ण करने हेतु कोई स्वीकृति नहीं कराई गई है तो काम प्रारंभ होने का तो कोई प्रश्न ही नहीं है। 

जिसका परिणाम होगा कि सीवर का ट्रीटमेंट नहीं होगा और सीवर ट्रीटमेंट के परिणामस्वरूप शोधित सीवर 98 प्रतिशत शुद्ध पानी में तब्दील किया जाकर तीसरा भाग उस पानी को निस्तार कोटा नाले पर होगा यह कि शहर से सीवर कोटा नाले में डाला जाकर वहां से वह उसी अवस्था में अर्थात बिना ट्रीटमेंट के ही सिंध में मिलाकर सिंध नदी को नाले में तब्दील कर प्रदूषित करने का प्रयास है। जिसके बाद 120 करोड़ की जलावर्धन योजना से वही सीवर युक्त पानी मिलने वाला है तो इन योजनाओं का औचित्य ही क्या है। वैसे आज भी शहर निवासी गटर युक्त चांदपाठे का पानी पी रहे है।