'नूरा का मुर्गा' नहीं बनना चाहते पवैया

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शिवपुरी। वो नूरा के मुर्गों की कुश्ती की कहानी तो आपको याद ही होगी। शायद वह दुनिया की सबसे पहली मैच फिक्सिंग थी जिसे नूरा कुश्ती कहा गया। पवैया इस तरह की कुश्ती के पहलवान बनना नहीं चाहते। वो चाहते हैं जब दंगल हो तो खुला हो और पीठ पर किसी का हाथ हो। वो पिछले कई दिनों से ऐसे ही हाथ की तलाश में हैं जो फिलवक्त उन्हें नहीं मिल पाया है।

गुना शिवपुरी संसदीय क्षेत्र के भाजपा कार्यकर्ताओं का भले ही रूझान हो कि पूर्व सांसद और सन् 98 में स्व. माधवराव सिंधिया के खिलाफ पूरी ताकत से ग्वालियर से लोकसभा चुनाव लड़ चुके जयभान सिंह पवैया को आगामी लोकसभा चुनाव में मैदान में उतारा जाए, लेकिन सूत्र बताते हैं कि श्री पवैया चुनाव लडऩे के लिए तो तैयार हैं, लेकिन चाहते हैं कि भाजपा आला कमान ऐसे वातावरण को निर्मित करे जिससे यह लड़ाई औपचारिक नहीं, बल्कि आरपार की हो।

हालांकि श्री पवैया का कहना है कि न तो भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने उनके समझ चुनाव लडऩे का प्रस्ताव रखा है और न ही मैंने चुनाव लडऩे की कोई इच्छा व्यक्त की है, लेकिन सूत्र बताते हैं कि श्री पवैया अपनी शर्तों के पूर्ण होने पर ही चुनाव लडऩे के इच्छुक हैं।

कई कारणों से ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि भाजपा जयभान सिंह पवैया को श्री सिंधिया के खिलाफ चुनाव मैदान में उतार सकती है। श्री पवैया की गुना शिवपुरी संसदीय क्षेत्र में सक्रियता से ऐसी अटकलों को बल मिला है। हालांकि जयभान सिंह कहते हैं कि वह तो पार्टी के निर्देश के अनुसार विधानसभा स मेलन को संबोधित कर रहे हैं। यदि ऐसा भी है तो इसका अर्थ है कि पार्टी के जेहन में कहीं न कहीं पवैया का नाम है।

भाजपा कार्यकर्ताओं ने भी श्री पवैया में दिलचस्पी दिखाई है और सबसे बड़ा कारण यह है कि जिस जोरदारी से श्री पवैया सन् 98 में ग्वालियर से स्व. माधवराव सिंधिया के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं उस कारण भी उन पर नजरें केन्द्रित हैं। भाजपा की मजबूरी यह भी है कि इस संसदीय क्षेत्र में उसके पास कोई मजबूत स्थानीय प्रत्याशी भी नहीं है। यहां से अनूप मिश्रा, केएल अग्रवाल, रावदेशराज सिंह, हरि सिंह यादव के नाम चल रहे हैं। इनमें से पहले तीन तो शिवराज लहर में विधानसभा चुनाव हार चुके हैं और हरि सिंह यादव की भी इस संसदीय क्षेत्र में कोई मजबूत पकड़ नहीं है। हरि सिंह हाल ही में डीआईजी पद से इस्तीफा देकर राजनीति में आए हैं।

मजबूत उ मीदवार का तर्क देकर उमा भारती का नाम भी भाजपा हलकों में प्रचारित हुआ, लेकिन सुश्री भारती ने भी चुनाव लडऩे के प्रति अनिच्छा व्यक्त कर दी। ऐसे में भाजपा की नजरें सिर्फ जयभान सिंह पवैया पर केन्द्रित हैं। इसी को भांपकर सूत्र बताते हैं कि श्री पवैया ने उ मीदवार के लिए पार्टी आला कमान के समक्ष अपनी शर्तें रख दी हैं। सर्किट हाउस में इस संवाददाता से चर्चा करते हुए श्री पवैया अपनी उ मीदवारी के विषय में तो मौन रहे, लेकिन उन्होंने कहा कि सिंधिया को हराने के लिए आवश्यक है कि उ मीदवार को मुद्दे चुनने की छूट दी जाए और उ मीदवार पर भाजपा के किसी वरिष्ठ नेता का हाथ हो। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि सन् 98 में वह स्व. माधवराव सिंधिया के खिलाफ इसलिए ताकत से लड़ पाए, क्योंकि उनकी पीठ पर स्व. कुशाभाऊ ठाकरे जैसे मजबूत संगठक और वरिष्ठ भाजपा नेता का हाथ था जिन्होंने भाजपा में सक्रिय सामंतवाद समर्थक तत्वों को दरकिनार कर दिया था।

श्री पवैया कहते हैं कि यह वातावरण बना तो सिंधिया को पराजित करना कतई मुश्किल नहीं होगा। इससे भाजपा कार्यकर्ताओं का मनोबल मजबूत होगा। वे आर-पार की लड़ाई लड़ेंगे साथ ही भाजपा का मिशन 29 का टारगेट भी पूरा होगा। श्री पवैया मानते हैं कि ऐसा वातावरण तैयार किया जाएगा, क्योंकि जहां मिशन 29 का टारगेट पूरा करना है। वहीं नरेन्द्र मोदी को भी प्रधानमंत्री बनाना है। इसलिए पार्टी के लिए एक-एक सीट महत्वपूर्ण है।


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