1 जनवरी शिवपुरी का जन्मदिवस नहीं है तो दोस्तो

उपदेश अवस्थी/लावारिस शहर। उत्साह से लवरेज मेरे कुछ प्रिय मित्र इन दिनों शिवपुरी का इतिहास बदलने का प्रयास कर रहे हैं। एक नामकरण की प्रक्रिया को शिवपुरी का जन्मदिवस प्रचारित किया जा रहा है।

बताया जा रहा है कि 1 जनवरी 1920 को शिवपुरी का जन्म हुआ था। शिवपुरी की संतान होने के नाते मैं यहां स्पष्ट करना चाहता हूं कि यह शिवपुरी का जन्म दिवस नहीं है वस्तुत: यह तो वह पुण्यभूमि है जहां हजारों सालों तक सन्यासियों ने निर्विध्न तपस्या की और इसे एक जागृत देवभूमि बनाया।

यदि हम इतिहास में शामिल पन्नों की ही बात करें तो इस पुण्यभूमि का जिक्र महाभारत काल से मिलता है। उन दिनों यह भूमि बैराड़ राज्य की वनभूमि हुआ करती थी। 12 वर्ष के वनवास के बाद पाण्डवों ने जो 1 वर्ष का अज्ञातवास गुजारा वह वनभूमि यही थी। समय की गणना के लिए उन्होंने प्रतिसप्ताह एक कुण्ड का निर्माण किया, इस प्रकार 1 वर्ष में कुल 52 कुण्डों का निर्माण किया गया। बावन गंगा जिसे बाणगंगा के नाम से पुकारा जाता है, इसी श्रंखला का हिस्सा है। आपका प्रिय पिकनिक स्पॉट भदैयाकुण्ड भी इसी श्रंखला का एक कुण्ड है। यह जिम्मेदारी नकुल और सहदेव ने निभाई थी और अर्जुन इसी शहर में उनके साथ सन्यासी के भेष में थे।

धनुर्धर अर्जुन ने यहीं इसी शहर में बावनगंगा मंदिर से कुछ कदम पूर्व शमी के वृक्ष की झालों में अपने धनुष और बाण छिपाए थे। वो शमी का वृक्ष आज भी बावनगंगा मंदिर से पहले दांयी ओर दिखाई देता है। अर्जुन ने यहां विशेष प्रकार के वृक्षों का रोपण भी किया। इन्हें अर्जुन के वृक्ष कहा जाता है और इसकी जड़ों को स्पर्श कर आता हुआ जल हृदयरोगियों के लिए अमृत तुल्य होता है। यह किवदंती नहीं वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित तथ्य है कि यदि भदैया कुण्ड के गौमुख से निकलता हुआ जल हृदय रोगियों को नियमित रूप से पिलाया जाए तो उन्हें कभी एंजियाप्लास्टी या बाईपास सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ेगी।

इसके बाद शिवपुरी नरवर राज्य की तहसील रही और इसी वनभूमि पर एक बस्ती का निर्माण हुआ परिवहन का प्रारंभ हुआ। औरंगजेब की दक्षिण यात्रा के दौरान यही वह शहर था जहां औरंगजेब हमला नहीं कर पाया और आगे बढ़ गया। जी हां, यही अकेली वो बस्ती थी जहां पर हिन्दुओं को जबरन मुसलमान नहीं बनाया जा सका था।

यदि आधुनिक शिवपुरी शहर की बात करें तो 1899 में तत्कालीन महाराजा माधौराव सिंधिया 'माधवराव सिंधिया नहीं' ने शिवपुरी को अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का निर्णय लिया और 1900 से लेकर 1915 तक यहां तमाम निर्माण कार्य हुए जो आज भी दिखाई देते हैं। कलेक्ट्रेट, पोलो ग्राउण्ड, मयूर टॉकीज, चांद पाठा, सेलिंग क्लब और तमाम तालाब इत्यादियों का निर्माण इसी दौरान हुआ।

इसके बाद शिवपुरी को नई पहचान मिली। ना केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी इस शहर का नाम प्रख्यात हुआ। यहां से विदेशों में व्यापार किया गया, कस्टम गेट इसीलिए बनाया गया था। जी हां, यह भारत के उन चुनिंदा समृद्धशाली शहरों में से एक था जहां रेल यातायात मौजूद था जबकि भारत के दूसरे कई बड़े शहरों में बैलगाड़ियां तक मुश्किल से मिलतीं थीं, लोग पैदल यात्राएं किया करते थे।

कहानी बहुत लम्बी है, लेकिन लव्वोलुआब मात्र इतना कि 1 जनवरी 1920 शिवपुरी का जन्मदिवस नहीं है, इस पुण्यभूमि के जन्म का तो आंकलन ही नहीं किया जा सकता, हां यदि आप चाहें वो तारीख् जब शिवपुरी को ग्वालियर की राजधानी घोषित किया गया, को शिवपुरी का स्थापना दिवस बोल सकते हैं। 1 जनवरी 1920 को तो शिवपुरी को अपना पुराना नाम वापस मिला था जो अंग्रेजों के अपभ्रंश के कारण सीप्री हो गया था।

बिल्कुल वैसे ही जैसे कुछ वर्षों पहले बम्बई को मुम्बई, कलकत्ता को कोलकाता और मद्रास को चैन्नई के नाम पर पुकारा जाने हेतु गजट नोटिफिकेशन हुआ था।

नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं