शिवपुरी।
वो नूरा कुश्ती के बारे में तो आपने सुना ही होगा। जो अपने ही मुर्गों को
आपस में लड़ाया करता था और उसके पालतू मुर्गें उसके आदेश पर जीता या हार
जाया करते थे। शायद यह दुनिया की पहली मैच फिक्सिंग थी।
शिवपुरी में लोग नूरा के बारे में भले ही ना जानते हैं परंतु 'नूरा कुश्ती' के बारे में बहुत बेहतर जानते हैं। हम सबसे पहले आपको नूरा की कहानी बयां करते हैं।
बात
नबावों के जमाने की है, वो एक मुर्गा पालक था। उन दिनों मुर्गों की कुश्ती
बड़ी प्रख्यात हुआ करती थी। लोग बड़े बड़े दाव लगाया करते थे। कुश्ती का
आयोजन करने वाले को कमीशन मिलता था।
नूरा
भी मुर्गों की कुश्तियों का आयोजन किया करता था परंतु देश भर की मुर्गा
कुश्ती और नूरा की मुर्गा कुश्ती में एक बड़ा अंतर था। नूरा ने अपने
मुर्गों को विशेष प्रकार से प्रशिक्षित किया हुआ था। वो जिस मुर्गें को
इशारा कर देता, वही कुश्ती हार जाया करता था।
जो
लोग इसे जानते थे वो नूरा से फिक्सिंग करवाया करते थे। इससे नूरा की
अतिरिक्त आय हो जाया करती थी। धीरे धीरे नूरा की इस फिक्सिंग का पता सबको
चल गया और मुर्गों की इस कुश्ती को 'नूरा कुश्ती' का नाम दे दिया गया। समय बीता और यह एक मुहावरा बन गया।
अब
नूरा कुश्ती का अर्थ होता है वो प्रतियोगिता जहां परिणाम पहले से ही फिक्स
हो गए हों। शिवपुरी अंचल में 'नूरा कुश्ती' शब्द का उपयोग गाहे बगाहे होता
ही रहा है, लेकिन इस बार इस शब्द का उपयोग दिखाई नहीं दे रहा। शुरू शुरू
में लगा कि लोग नई हिन्दी में पुराने मुहावरे भूल गए हैं लेकिन अब समझ में
आया कि इस बार कुश्ती नूरा के मुर्गों की बीच में तो है ही नहीं। एक तरफ
नूरा का मुर्गा है और दूसरी तरफ खुद नूरा ही मैदान में है।
अब इस कुश्ती को क्या नाम दें।