साहित्य का उद्देश्य लोकमंगल हो जगदीश तोमर

शिवपुरी- साहित्य कविता, नाटक, कहानी, उपन्यास किसी भी विघा में लिखा गया हो उसका उद्देश्य लोकमंगलकारी होना चाहिए। ऐसी रचनाओं में रामचरित मानस दुनियां की प्रसिद्ध रचना है। आज सूरीनाम, मॉरिसस आदि देशों में भारतीय संस्कृति का जो प्रभाव दिखाई देता है उसका आधार ग्रंथ रामचरित मानस ही है।
क्योंकि अंग्रेज भारत से जिन लोगों को मजदूरी के लिए ले गये थे वे सब अपने साथ रामचरित मानस ले गये थे। बाद में उन्होंने इसी ग्रंथ से उर्जा लेकर इन देशों में भारतीय संस्कृति का अलख जगाये रखा। उक्त उद्गार साहित्य के प्रमिमान विषय पर बोलते हुए प्रेमचंद सृजनपीठ के निदेशक जगदीश तोमर ने कहे। यह आयोजन अखिल भारतीय साहित्य परिषद द्वारा विज्ञान महाविद्यालय में आयोजित किया गया था। 

इस अवसर पर परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्रीधर पराडकर ने बोलते हुए कहा कि शरदचंद्र से जब पूछा गया कि देश में पढे तो आप ज्यादा जाते हैं लेकिन नॉबेल पुरूस्कार रविन्द्रनाथ टैगोर को मिला। इसके जबाव में शरदचंद्र ने कहा कि मैं जनता के लिए लिखता हूं और टैगोर मेरे जैसे लेखकों के लिए लिखते हैं। श्री पराडकर ने कहा कि साहित्य ऐसा हो जिसे पढने के बाद मानसिक विकृति उत्पन्न न हो। क्योंकि बुराई को आधुनिकता से जुडा व्यक्ति ही स्वीकार नहीं करता है। 

यही कारण है कि आज भी रावण, कंस और दुर्योधन जैसे नाम नहीं रखे जाते हैं। डॉ. परशुराम शुक्ल विरही ने विषय के प्रतिवाद में कहा कि लोकमंगलकारी साहित्य ही प्रमुख प्रतिमान हो यह कठिन है। क्योंकि अनेक वादों से परमतत्व निकलता है। हिंदी में इतने वाद हैं कि वादों के अध्ययन के बाद असमंजस की स्थिति पैदा हो जाती है। इसलिए लोकमंगल क्या है यह एक जटिल प्रश्न है। इस अवसर पर विद्यानंदन राजीव, डॉ. एलडी गुप्ता, डॉ. संध्या भार्गव, प्रमोद भार्गव, डॉ. पदमा शर्मा, जनभागीदारी समिति के अध्यक्ष अजय खेमरिया, कामना सक्सैना, लखनलाल खरे और अखिल बंसल मंच पर मौजूद थे।


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