प्रबंधन की वजह से बढ़ी शिवपुरी में पेयजल समस्या

शिवपुरी। वैसे तो प्राकृतिक रूप से शिवपुरी में पेयजल की कोई समस्या नहीं है लेकिन यहां पेयजल संकट में यदि समस्या बाधक है तो यहां का प्रबंधन जिन्होंने पेयजल की रूपरेखा को सही रूप से अमलीजामा नहीं पहनाचा जिससे लोग पानी की एक-एक बूंद को तरस रहे है। कोई दो किमी तो कोई 5 किमी दूर से पानी लाकर अपनी पूर्ति कर रहा है। कई जगह स्थिति नियंत्रण में है तो कहीं आज भी पेयजल के कारण लोग प्रतिदिन नगर पालिका व पार्षदों को कोसते देखे जा सकते है। प्रबंधन की कमी के कारण नागरिकों की समस्या बढ़ी है।

शिवपुरी शहर की आधी से अधिक आबादी में गंभीर रूप से पेयजल संकट व्याप्त है। कई इलाकों में जैसे करौंदी, लुधावली, सईसपुरा, कमलागंज और झींगुरा में तो हालात इतने खराब हैं कि यहां के नागरिक पानी की एक-एक बंूद के लिए दो-दो किमी का चक्कर लगा रहे हैं। जबकि वार्ड क्रमांक 4, 5, 6, 7, 8 और 11 में पेयजल समस्या उतनी गंभीर नहीं है। एक अकेले पार्षद मनीष गर्ग अपनी जिजीवषा, संकल्प शक्ति और प्रबंधन से स्थिति को नियंत्रित रखने में सफल रहे हैं। साफ है कि शिवपुरी में पानी की नहीं बल्कि प्रबंधन की कमी है और इसे ठीक करने का प्रयास नपा प्रशासन कर भी नहीं रहा। इस समस्या की आड़ में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का खेल जारी है और टेंकरों में कमीशन से लेकर घटिया सामान की सप्लाई में भ्रष्टाचार से जिम्मेदार लोगों के बारे न्यारे हो रहे हैं।

ऐसे दूर हो सकती है पेयजल समस्या

शिवपुरी में पेयजल सप्लाई पहले अकेले चांदपाठा तालाब से होती थी, लेकिन बढ़ती आबादी के कारण पानी का यह स्त्रोत पेयजल सप्लाई के लिए जब नाकाफी हुआ तो वार्डों में ट्यूबबैल खनन का सिलसिला शुरू हो गया और एक ट्यूबबैल से पूरे वार्ड की पेयजल समस्या सुलझती रही। लेकिन समस्या न हो तो भ्रष्टाचार में हाथ गीले कैसे हों। इस कारण पेयजल समस्या को गंभीर से गंभीर बनाने के प्रयास किए गए। इसके दुष्परिणाम साफ तौर पर देखने को मिले। नगरपालिका के 39 वार्डों में लगभग 450 ट्यूबबैल खोद दिए गए। अर्थात एक वार्ड में 10-10 ट्यूबबैल उत्खनित किए गए। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि भूजल स्तर गिरता चला गया और अब तो हालात यह हैं कि कई इलाकों में एक-एक हजार फुट तक पानी नहीं है। कई ट्यूबबैलों पर भी दबंग लोगों ने कब्जा कर लिया और उन्होंने इसे अपनी बपौती बना लिया।

नपा प्रशासन के संरक्षण के कारण कोई उनसे कुछ कहने की स्थिति में भी नहीं है। पानी दबंगों का लेकिन मेंटीनेंस नपा के  भरोसे। जल संकट की आड़ में मोटर ठीक कराने का भी ठेका दिया गया। इसके बाद भी खराब मोटरें 10-10, 15-15 दिन तक नहीं सुधारी जाती। प्रभावित वार्डों में पेयजल सप्लाई के लिए 55 टेंकर किराए पर लिए गए। इनमें तीन बड़े हैं जबकि 7 नपा के टेंकर पेयजल सप्लाई अलग से कर रहे हैं। पेयजल संकट के लिए टेंकर ठेकेदारों को हिदायद दी गई कि वे प्रतिदिन 8 चक्कर लगाएं। कागजों में 8 चक्कर लग रहे हैं जबकि अधिकांश टेंकर ठेकेदार प्रतिदिन चार से अधिक चक्कर नहीं लगा रहे हैं और इसकी रकम उनकी जेब में जा रही है। पेयजल समस्या से निदान के लिए 13 हाईडेंट बनाए गए हैं और 6 पानी की बड़ी टंकियों और 25 छोटी टंकियों तथा 6 सम्पबैलों से पेयजल सप्लाई हो रहा है। इस व्यापक इंतजाम के बाद तो शहर में पेयजल संकट होना ही नहीं चाहिए था, लेकिन आधी  से अधिक आबादी पेयजल संकट से प्रभावित है। कुल मिलाकर प्रबंधन की कमी और भ्रष्टाचार ने शहर की पेयजल समस्या को कृत्रिम रूप से विकराल बना दिया है।