सन् 90 से शिवपुरी सीट पर कांग्रेस हो रही है पराजित

राजनीति इन दिनों@अशोक कोचेटा। शिवपुरी विधानसभा सीट पर यदि कांगे्रस को विजयश्री हासिल करना है तो सबसे पहले आवश्यक है कि वह शिवपुरी नगरपालिका सीमा में अपनी कमजोर स्थिति को मजबूत करे। यह प्रयास लगातार असफल हो रहे हैं। उपचुनाव के इतिहास को यदि अपवाद रूप में लिया जाए तो शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र से पांच चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को विजयश्री हासिल हो रही है। आंकड़ों का मूल्यांकन करने से यह स्पष्ट होता है कि शिवपुरी नगर में भाजपा की मजबूत पकड़ है और इसे कांगे्रस तमाम प्रयासों के बाद भी कमजोर नहीं कर पाई।

पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के माखनलाल के मुकाबले कांग्रेस के  सबसे मजबूत प्रत्याशी वीरेन्द्र रघुवंशी चुनाव मैदान में थे, लेकिन इसके बाद भी वह शहरी जनता का भरोसा नहीं जीत पाए और इसी कारण वह लगभग 1700 मतों से पराजित हो गए। जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में उनकी मजबूत पकड़ रही। शहरी क्षेत्र में जहां माखनलाल ने पहला स्थान पाया। वहीं ग्रामीण क्षेत्र में वीरेन्द्र रघुवंशी सिरमौर बने। साफ है कि जब तक शहरी जनता का कांग्रेस भरोसा नहीं जीतेगी उसे शिवपुरी विधानसभा सीट पर विजयश्री हासिल नहीं होगी।

आखिर शिवपुरी नगरपालिका क्षेत्र में भाजपा की मजबूत स्थिति और कांग्रेस की कमजोर हालत का राज क्या है? सन् 89 से शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र में वरिष्ठ भाजपा नेत्री और ग्वालियर सांसद यशोधरा राजे सिंधिया सक्रिय हैं। यशोधरा राजे ने शहरी क्षेत्र में अपना व्यापक जनाधार बनाया है। समाजसेवियों से लेकर आम जनता तक उनके रिश्ते बहुत मजबूत और आत्मीय हैं। भाजपा के एक-एक कार्यकर्ता और आम जनता के सैकड़ों लोगों को वह नाम से जानती हैं और पहचानती हैं। जबकि कांग्रेस में ऐसी स्थिति नहीं है और किसी ने बनाने की कोशिश भी नहीं की। सन् 89 से अब तक हुए चुनावों में विजय की पृष्ठभूमि  में यशोधरा राजे शामिल रही हैं। सन् 89 में स्व. सुशील बहादुर अष्ठाना से लेकर 2008 में माखनलाल तक सभी प्रत्याशी उनकी बदौलत विजयी होते रहे हैं। नगरपालिका अध्यक्ष पद पर भी यशोधरा राजे ने जिसे चाहा उसे काबिज कराया।

उपचुनाव में भी कांग्रेस के वीरेन्द्र रघुवंशी कैसे जीते यह कौन नहीं जानता? लेकिन 2008 के चुनाव में तो गजब हो गया। उस चुनाव में भाजपा के माखनलाल के मुकाबले कांग्रेस के मजबूत उम्मीदवार वीरेन्द्र रघुवंशी, जनशक्ति पार्टी के धांसू उम्मीदवार गणेश गौतम, बसपा के आमजन में लोकप्रिय प्रत्याशी स्व. शीतल प्रकाश जैन और पूर्व नपाध्यक्ष  जगमोहन सिंह सेंगर जैसे जबरदस्त उम्मीदवार सामने थे। लेकिन चमत्कार हुआ और शहर से भाजपा उम्मीदवार माखनलाल की बढ़त कांग्रेस और जनशक्ति पार्टी के उम्मीदवारों से लगभग दस हजार मतों की पहुंच गई। जबकि ग्रामीण क्षेत्र में भाजपा बुरी तरह पिछड़ गई।

भाजपा उम्मीदवार माखनलाल तीसरे स्थान पर पहुंच गए। खोड़ सेक्टर मे नंबर वन पर रहे वीरेन्द्र रघुवंशी जबकि सिरसौद सेक्टर में गणेश गौतम अब्बल रहे। ग्रामीण क्षेत्र में भाजपा उम्मीदवार माखनलाल राठौर मामूली नहीं, बल्कि साढ़े आठ हजार मतों से पीछे रहे। चुनाव में जीत के लिए कांग्रेस को अपने शहरी किले को मजबूत करना होगा, लेकिन दिक्कत यह है कि कांगे्रस में कोई ऐसा सर्वसम्मत प्रत्याशी नहीं है। जिसके नाम पर समूचे कांग्रेस कार्यकर्ता एकजुट होकर उसे चुनाव जिताएं। कांग्रेस के संभावित उम्मीदवार वीरेन्द्र रघुवंशी के खिलाफ कभी उनके खास रहे लोगों ने मोर्चा खोल दिया है। अन्य संभावित उम्मीदवार हरिवल्लभ शुक्ला, राकेश गुप्ता, राकेश जैन, अजय गुप्ता आदि के खाते भी खुले हुए हैं। ऐसी स्थिति में कांग्रेस क्या चमत्कार कर पाएगी यह एक बहुत बड़ा सवाल है।