तात्या होते तो फूट-फूट कर रोते

शिवपुरी। वाकई अमर शहीद वीर तात्याटोपे ने अपने जीवनकाल में जिस अदम्य साहस और बलिदान की जो मिसाल पेश की आज उससे सबक लेने के बजाए उनके ही बलिदान को मप्र राज्य शिक्षा केन्द्र की पुस्तकों में अमर शहीद तात्याटोपे के विषय में ना केवल भ्रामक बल्कि विरोधाभासी सामग्री परोसी गई है। ऐसे में अब विद्यालय वह ज्ञान पढ़ेंगें जिनसे मनोबल विकसित नहीं अविकसित होगा ेऐसे में यदि वीर तात्याटोपे आज के समय होते तो स्वयं फू ट-फूट कर रोते।

इसकी बानगी इस तरह देखी जा सकती है कि अमर शहीद तात्याटोपे के विषय में मध्यप्रदेश राज्य शिक्षा केन्द्र भोपाल द्वारा विभिन्न विद्यालयों में संचालित पाठ्यक्रम की पुस्तकों में शहीद तात्या टोपे के विषय में न केवल भ्रामक बल्कि विरोधाभाषी सामग्री दे रखी है। इससे जहां विद्यार्थियों का ज्ञान प्रभावित हो रहा है वहीं शहीद तात्या टोपे की शौर्यगाथा पर भी प्रश्र चिन्ह लग रहे हैं। यह सवाल भी उठ रहा है कि यदि शिवपुरी में तात्या टोपे के स्थान पर किसी अन्य को फांसी लगी थी तो 18 अप्रैल को प्रतिवर्ष शिवपुरी में तात्या टोपे का बलिदान दिवस क्यों मनाया जाता है? क्यों नहीं उसे बंद कर दिया जाता? उपरोक्त आशय का ज्ञापन शहर के जागरूक नागरिकों ने मुख्यमंत्री के नाम अतिरिक्त कलेक्टर डीके जैन को सौंपा है।

ज्ञापन में अल्टीमेटम दिया है कि नवीन पाठ्यक्रम में उचित सुधार कर प्रामाणिक जानकारी विद्यार्थियों के समक्ष प्रस्तुत की जाए। अन्यथा न्यायालय की शरण लेकर उचित संसोधन कराए जाएंगे। ज्ञापन में स्पष्ट किया गया है कि कक्षा 10 की सामाजिक विज्ञान की पुस्तक के पृष्ठ क्रमांक 110 अध्याय 7 में शहीद तात्या टोपे को अंग्रेजों ने 18 अप्रैल 1859 को शिवपुरी में फांसी दी थी यह स्पष्ट लिखा हुआ है। इसी पुस्तक के पृष्ठ क्रमांक 145 अध्याय 10 में यह वर्णित है कि मित्र के विश्वासघात के कारण तात्या टोपे को कैद कर लिया गया और शिवपुरी में फांसी दी गई।

इस पुस्तक में दो बार स्पष्ट किया गया है कि शहीद तात्या टोपे को फांसी शिवपुरी में ही दी गई, किंतु कक्षा 12 की स्वाति (हिंदी विशिष्ट) पुस्तक के गद्यखण्ड के पाठ 6 लेखक डॉ. सुरेशचंद शुक्ल पृष्ठ क्रमांक 64 में यह वर्णित है कि अंग्रेजों ने तात्या की जगह किसी अन्य को फांसी दी और यह जानकारी प्राप्त होने पर तात्या टोपे सन्यासी भेष में जीवनयापन करने लगे। इससे स्पष्ट है कि शहीद तात्या को अंग्रेजों ने गिरफ्तार नहीं किया और उनके स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति को फांसी दे दी गई। इससे स्पष्ट है कि विद्यार्थियों के सम्मुख क्रांतिकारियों के चरित्र को भ्रामक एवं अविश्रीय रूप से परोसा जा रहा है और उनके समक्ष यह भ्रम की स्थिति है कि वह किस जानकारी को प्रामाणिक और विश्वसनीय मानें।
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सवालों का जबाव दें डॉ. सुरेशचंद शुक्ल
जागरूक नागरिकों ने उग्र लहजे में प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि डॉ. सुरेशचंद शुक्ल किस आधार पर यह बता रहे हैं कि तात्या के स्थान पर किसी अन्य को फांसी दी गई। क्या उनके पास इस बात के कोई प्रमाण हैं। नागरिकों का सवाल है कि डॉ. शुक्ल से पूछा जाए और इसके बाद निष्कर्ष निकाला जाए कि तात्या टोपे को गिरफ्तार किया गया था या नहीं और उन्हें फांसी दी गई थी या नहीं?  इसके बाद प्रामाणिक तथ्यों को पाठ्य पुस्तक में शामिल किया जाए।