कहानी परत-दर-परत उत्सव के अपहरण और हत्या की

ललित मुदगल/ शिवपुरी-दिन 2 मार्च, समय दोप.2:30 बजे घर से ट्यूशन कहकर निकला उत्सव पुत्र कमल गोयल निवासी जल मंदिर जब देर शाम तक अपने घर नहीं पहुंचा तो परिजनों की चिंताऐं बढऩे लगी। तभी देर शाम परिजनों के मोबाईल पर एक फोन आता है और कहते है कि 5 लाख रूपये दो और उत्सव को लो।

अपने पुत्र के अपहरण की सूचना से आहत गोयल परिवार पर तो जैसे मुसीबतों का पहाड़ टूटा आया हो। जल्दबाजी में परिजनों को कुछ नहीं सूझा और सीधे तौर पर 5 लाख रूपये की फिरौती देने के लिए राजी भी हो गए लेकिन कहीं से यह सूचना लीक हो गई और मीडिया व पुलिस के बीच पहुंची।

बच्चे के अपहरण की सूचना पर सतर्क हुई पुलिस और मीडिया के बारे में अपहृतों को सूचना मिली तो उन्होनें अपना मूवमेंट बदलकर परिजनों को उत्सव की हत्या करने की धमकी दे डाली और आखिकर एक बार फिर चुपके से उसी मोबाईल से डील हुई और मामला 2 लाख रूपये तक आकर सिमट गया लेकिन अब फिरौती देने की बात थी तो वहीं पुलिस इस मामले को लेकर गंभीरता नहीं दिखा रही लेकिन मीडिया की सतर्कता से यह मामला बिगड़ा और धीरे-धीरे घटना 2 मार्च के बाद 4 मार्च को जाकर उत्सव की मौत पर समाप्त हुआ।


आखिर यहां गलती क्या हुई देखा जाए तो यहां गलती पुलिस और मीडिया की कुछ खामियों के चलते हुई। पुलिस को परिजनों ने बताया कि उत्सव जिस स्कूल में पढ़ता और उसने स्कूल लाने और ले जाने वाली बस के चालक अकील खान ने घटना वाले दिन यानि 2 मार्च को ही उत्सव से पूछा था कि वह कहां और कितने बजे ट्यूशन पढऩे जाता है क्योंकि उसे भी अपने पुत्र को भेजना है। चालक अकील खान की इस चालाकी को उत्सव समझ नहीं सका और उसने यह बात अपनी मॉं को बताई।

उनके अनुसार अपहरण के दो दिन पहले ड्रायवर अकील ने उनके पुत्र उत्सव से पूछा था कि वह ट्यूशन कहां पढऩे जाता है, क्योंकि उसे भी अपने पुत्र को ट्यूशन पर भेजना है। संयोग से बालक ने घर आकर यह बात अपनी मां को बताई उस समय तो किसी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन जब बालक  का अपहरण हो गया तो उनकी मां को यह बात याद आ गई और उन्होंने तुरंत इसे पुलिस को भी बता दिया।

पुलिस ने ड्रायवर अकील को पकड़ भी लिया, लेकिन उस तत्परता से उससे पूछताछ नहीं की। पुलिस के एक अधिकारी बार-बार यही कहते रहे कि ड्रायवर से पूछताछ कर ली है। उसका कोई हाथ नहीं है। अपहरण के बाद तीन बार उत्सव के पिता के मोबाईल पर अपहरणकर्ताओं ने बातचीत की। यह नंबर भी तुरंत पुलिस को बता दिया गया, लेकिन पुलिस ने गंभीरता से नहीं लिया और यह कहकर कार्रवाई शुरू नहीं की कि साईबर सेल प्रभारी मसीह खान छुट्टी पर गए हैं। एसपी भी अपहरण के 12 घंटे से अधिक पश्चात ही छुट्टी से वापिस लौटे थे।

इस पीरियड में पुलिस ने गंभीर प्रयास नहीं किए। जबकि पुलिस और फरियादी की एक-एक बात की जानकारी अपहरणकर्ताओं को होती रही। अपहरणकर्ताओं का दुस्साहस देखिए कि जब पुलिस में रिपोर्ट लिखाई जा रही थी तो उन्होंने मोबाईल कर कहा कि माने नहीं पुलिस में पहुंच गए। सूत्र बताते हैं कि एक बार यह कहा गया कि तुम्हारे पास बहुत लोग खड़े हैं अलग से बात करो। ऐसा था भी इससे स्पष्ट है कि अपहरणकर्ता को एक-एक बात की जानकारी मिल रही थी। यह भी स्पष्ट हो गया था कि अपहरणकर्ता अपराध की दुनिया के मजेमजाए खिलाड़ी नहीं हैं बरना वे डेढ़ घंटे के भीतर ही संपर्क नहीं करते और सिम निकालने के बाद उसी मोबाईल में दूसरी सिम डालकर बात नहीं करते।

लेकिन इसके बाद भी पुलिस उत्सव को मुक्त नहीं करा पाई और न ही आरोपियों तक पहुंच पाई। हर समय पुलिस प्रशासन यही भरोसा दिलाता रहा कि उत्सव सकुशल है और उसकी जान को कोई खतरा नहीं है। यह भी अबूझ पहेली है कि मास्टर माईण्ड की गिरफ्तारी के बाद भी पुलिस ने सख्ती क्यों नहीं की? पुलिस के इस ढ़ीले रवैये का परिणाम यह हुआ कि अपहरणकर्ताओं को उत्सव ठिकाने लगाने का पर्याप्त समय मिल गया और उन्होंने घबराकर उसकी हत्या कर दी।

इसकी भी आशंका थी कि अनहोनी की स्थिति में पुलिस के खिलाफ आक्रोश भड़क सकता है, लेकिन पुलिस प्रशासन इसे जानने में असफल रहा। परिणाम यह हुआ कि शहर जब जल रहा था तो पुलिस प्रशासन मौके से गायब था। यहां तक कि पुलिस सहायता केन्द्र और कोतवाली की सुरक्षा भी पुलिस प्रशासन नहीं कर पाया।