आम सहमति न बन पाने के कारण नहीं हो पा रही भाजपा जिलाध्यक्ष की घोषणा

शिवपुरी। भारतीय जनता पार्टी जिलाध्यक्ष पद का चुनाव पार्टी की आपसी गुटबाजी के कारण नहीं हो पाया और यह तय हुआ कि जिलाध्यक्ष पद पर पात्र भाजपाई का मनोनयन होगा। जिलाध्यक्ष पद के लिए एक ओर नरेन्द्र सिंह तोमर- प्रभात झा खेमे के मौजूदा जिलाध्यक्ष रणवीर सिंह रावत का नाम था वहीं यशोधरा राजे खेमे की ओर से ओमप्रकाश शर्मा गुरू, अशोक खण्डेवाल और विमलेश गोयल का नाम सामने आया।

लेकिन सूत्र बताते हैं कि इन नामों पर आम सहमति नहीं बन पा रही। यशोधरा खेमा जहां रणवीर सिंह रावत के लिए तैयार नहीं हैं। वहीं यशोधरा खेमे की ओर से उभरे नामों पर भी आम राय नहीं बन रही है। नई परिस्थितियों में जिलाध्यक्ष पद के लिए कई और नाम सामने आए हैं। इनमें महत्वाकांक्षी युवा नेता धैर्यवर्धन शर्मा, पूर्व जिलाध्यक्ष राजेन्द्र निगम, श्रीमती नवप्रभा पडेरिया और यशोधरा खेमे के  पूर्व जिला उपाध्यक्ष तेजमल सांखला का नाम शामिल है।

शिवपुरी में जिलाध्यक्ष पद के चयन के लिए सूत्रों के अनुसार गेंद यशोधरा राजे के पाले में है। जिले की राजनीति में यशोधरा राजे के मजबूत प्रभाव के कारण पार्टी ने जिलाध्यक्ष चयन के लिए उनकी इच्छा को सर्वोपरि रखा है, लेकिन उन्हें ऐसे व्यक्ति को जिलाध्यक्ष चुनना है जिसके पक्ष में आम सहमति बन सके। जहां तक रणवीर सिंह रावत को पुन: जिलाध्यक्ष बनाने का सवाल है तो उनका विरोध यशोधरा खेमे के अलावा पूर्व जिलाध्यक्ष राजेन्द्र निगम, धैर्यवर्धन शर्मा तथा विधायक देवेन्द्र जैन का खेमा अलग-अलग रूप से विरोध कर रहा है। उनका यदि चयन होना होता तो वह चुनाव में ही जिलाध्यक्ष बन गए होते। 

श्री रावत को प्रदेश कार्यसमिति सदस्य बनाकर उनके खेमे ने ही यह संदेश दे दिया कि वह उनके पक्ष में अडऩे के मूंड में नहीं है, लेकिन उनका विरोधी खेमा उनके नाम पर सहमत हो जाता है तो कोई आपत्ति भी नहीं हैं। ऐसे में श्री रावत के जिलाध्यक्ष बनने की शर्त एक ही रह जाती है कि उनके नाम पर उनके विरोधी खेमे अपने मतभेद भूलकर एकजुट हो जाएं जिसकी संभावना कुछ कम नजर आती है और चुनावी वर्ष में भाजपा ऐसी कोई रिस्क लेने के मूंड में नहीं है जिससे पार्टी की गुटबाजी में और व्यापक फैलाव हो। 

जहां तक ओमप्रकाश शर्मा गुरू का सवाल है। गुरू यशोधरा राजे के पसंदीदा चेहरों में से एक हैं। लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलूं यह भी है कि यदि गुरू जिलाध्यक्ष बनने में सफल रहे तो इसका पहला श्रेय पूर्व विधायक नरेन्द्र बिरथरे को जाएगा। इसी कारण यशोधरा खेमे को उन्हें जिलाध्यक्ष बनाने में झिझक हो सकती है। श्री गुरू विधायक देवेन्द्र जैन की गुड लिस्ट में नहीं हैं और जैन बंधु उन्हें जिलाध्यक्ष बनाने पर सहमति देंगे इसका सवाल ही नहीं उठता। पूर्व जिलाध्यक्ष राजेन्द्र निगम और धैर्यवर्धन शर्मा आदि भी उनके वर्चस्व को स्वीकार करने में उत्सुक नजर नहीं आ रहे। जहां तक उपाध्यक्ष अशोक खण्डेलवाल के नाम का सवाल है तो उनकी पैरवी विधायक प्रहलाद भारती और पूर्व नगर अध्यक्ष अनुराग अष्ठाना कर रहे हैं। 

श्री खण्डेलवाल यशोधरा राजे खेमे के माने जाते हैं और प्रदेशाध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर से भी उनका अच्छा समन्वय है। जैन बंधुओं को भी उनके नाम पर आपत्ति नहीं है, लेकिन श्री खण्डेलवाल के लिए अध्यक्ष बनने हेतु दो शर्त पूर्ण करना आवश्यक है एक तो वह यशोधरा राजे की जिलाध्यक्ष पद हेतु पहली पसंद बनें और दूसरे यशोधरा विरोधी खेमा भी उनके पक्ष में राय व्यक्त करे। भाजपा में जो घटनाक्रम सामने आ रहा है उसमें श्री खण्डेलवाल के विपक्ष में दो बातें जा रही हैं एक तो यशोधरा खेमे में एक लॉबी उनका विरोध कर रही है और दूसरे चुनावी वर्ष में उनकी कमजोर आथर््िाक स्थिति को इस पद का दायित्व निर्वहन करने में सबसे बड़ी बाधा बताई जा रही है। रणवीर सिंह रावत, राजेन्द्र निगम खेमा भी उनकी ताजपोशी के पक्ष में नहीं है। 

यशोधरा खेमे के तीसरे उम्मीदवार विमलेश गोयल अपने अक्खड़ स्वभाव के कारण जहां चर्चित हैं वहीं विवादास्पद भी। पार्टी और संघ में वह सक्रिय रहे हैं, लेकिन शिवपुरी में वर्षों से उनकी सक्रियता नहीं देखी गई है। श्री गोयल अध्यक्ष बनने के लिए खुद भी ज्यादा उत्सुक नहीं हैं और उन्हें जिलाध्यक्ष बनाने की उत्सुकता भी उस मात्रा में नहीं हैं। ऐसे में सवाल यह है कि क्या पार्टी अन्य विकल्पों पर विचार करेगी? सबसे पहले यशोधरा खेमे से जुड़े नामों पर ही चर्चा कर लेते हैं। 

भाजपा के पूर्व जिला उपाध्यक्ष तेजमल सांखला की यशोधरा निष्ठा असंदिग्ध है। वह जिला उपाध्यक्ष रह चुके हैं और जिलाध्यक्ष बनना भी वह चाहते हैं। पार्टी में उनकी उतनी सक्रियता नहीं है, लेकिन यह बात भी शायद उनके इसलिए पक्ष में है क्योंकि शायद इसी कारण उनका पार्टी में विरोध नहीं है। श्री सांखला का मजबूत आर्थिक आधार है और उनके पक्ष में आम सहमति बनाई जा सकती है। पूर्व जिलाध्यक्ष राजेन्द्र निगम भी जिलाध्यक्ष पद की कतार में हैं।  लेकिन रणवीर रावत के समर्थक शायद उनके नाम पर अपनी सहमति न दें। युवा नेता धैर्यवर्धन शर्मा के समर्थक भी उन्हें जिलाध्यक्ष बनाने के लिए उत्सुक हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या उनके पक्ष में आम सहमति बन पाएगी?
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