पिछोर के किले में सेंध लगाने में भाजपा असमर्थ, नहीं दिख रहा कोई दमदार प्रत्याशी

शिवपुरी-क्या वाकई पिछोर के किले में सेंध लगाने के लिए भाजपा को कोई दमदारी प्रत्याशी नहीं दिख रहा? यह अटकलें इन दिनों पिछोर क्षेत्र में सरगर्म बनी हुई है। यहां बीते चार बार कांग्रेस के कद्दावर नेता विधायक के.पी.सिंह कक्काजू ने जनमानस में ऐसी छाप छोड़ी है कि यहां के स्थानीय भी बड़े-बड़े दिग्गज नेता केपी सिंह के किले ढहाना तो दूर उसे भेद तक नहीं पा रहे है।

ऐसे में जब यहां की कमान प्रभारी के रूप में यशोधरा को सौंपी तब प्रतीत हो रहा था कि अब शायद के पी सिंह के किले में यशोधरा घर करेंगी लेकिन जब से उन्हें तत्कालीन भाजपा प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा ने पिछोर का प्रभारी बनाया तब से उन्होंने पिछोर की सुध तक भी नहीं ली। ऐेसे में अब अन्य ऐसे भाजपाई जो के पी सिंह से आगामी विधानसभा में मुकाबला कर सके ऐसे चेहरे की तलाश जारी है।

यहां बता दें कि बीते सन् 1993 में केपी सिंह ने जब उस समय के राजस्व मंत्री भाजपा प्रत्याशी लक्ष्मीनारायण गुप्ता को पराजित किया था तो उस समय ऐसा नहीं लगा था कि श्री सिंह इस क्षेत्र को अपने किले में बदल देंगे। लेकिन केपी सिंह ने जीत के पश्चात फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा और इसके बाद कांग्रेस से आए पूर्व मंत्री भैय्या साहब लोधी को 98 के विधानसभा चुनाव में 20 हजार मतों से पराजित किया। 2003 में केपी सिंह ने पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के भाई स्वामी लोधी को लगभग इसी अंतर से हराया जबकि स्वामी लोधी की जीत के लिए भाजपा और सरकार ने पूरी ताकत लगा दी थी।

2008 में केपी सिंह ने जगराम सिंह यादव, भैय्या साहब लोधी जैसे मजबूत प्रत्याशियों को पराजित कर संकेत दे दिया कि स्थानीय भाजपा में कोई ऐसा प्रत्याशी नहीं है जो उन्हें चुनौती दे सके। सन् 2008 में सत्ता में आने के बाद से भाजपा लगातार इस प्रयास में रही कि पिछोर में वह मजबूती हासिल करे। प्रदेशाध्यक्ष पद पर प्रभात झा ने आसीन होने के बाद वरिष्ठ भाजपा नेत्री यशोधरा राजे सिंधिया को पिछोर का प्रभारी घोषित कर दिया, लेकिन यह घोषणा श्री झा ने यशोधरा राजे को विश्वास में लिए बिना की थी। इस कारण यशोधरा राजे ने इसे गंभीरता से नहीं लिया और वे पिछोर नहीं गईं। इसके बाद प्रभात झा फिर स्वयं पिछोर पहुंचे और उन्होंने भाजपा नेताओं को एकजुट रहने का संदेश दिया और गुरूमंत्र दिया कि भाजपा की गुटबाजी का फायदा केपी सिंह को मिलता रहा है, लेकिन इस नसीहत का भी कोई फायदा नहीं हुआ। न तो पिछोर से केपी सिंह का बजन कम हुआ और न ही भाजपा नेताओं की गुटबाजी दूर हुई।

आज भी पिछोर में भैय्या साहब और नवप्रभा पडेरया के विपरीत धु्रव काम कर रहे हैं। वहीं जगराम सिंह यादव भी अपनी ढपली अपनी राग बजा रहे हैं। ओमजी भी वहां सर्वमान्य प्रत्याशी के रूप में उभर नहीं पा रहे और नपं अध्यक्ष विकास पाठक को प्रत्याशी के रूप में यहां के बड़े नेता स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। केपी सिंह को हराने के लिए भाजपा ने स्थानीयों के साथ-साथ बाहरी प्रत्याशी स्वामी लोधी को भी आजमाया, लेकिन परिणाम कुछ नहीं निकला। नए प्रदेशाध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर भी पिछोर को प्राथमिकता में रख रहे हैं, लेकिन क्या खाका खीचा जाए जिससे पिछोर में भाजपा रणभेरी बजा सके। यह उन्हें समझ नहीं आ रहा।