शिवपुरी-इन दिनों छत्री जैन मंदिर पर आचार्य सौभाग्यसागर महाराज एवं मुनि सुरत्नसागर महाराज ससंघ के सानिध्य में बीती 21 नवंबर से 28 नवंबर तक श्री सिद्धचक्र महामण्डल विधान की आराधना मरूदेवी महिला मण्डल के सौजन्य से की जा रही है। इसी क्रम में गुरुवार को श्रद्धालुओं द्वारा भक्ति नृत्य कर प्रतिष्ठाचार्य पं. सुगनचंद जैन आमोल के दिशा निर्देश में सिद्ध परमेष्ठि को 16 अर्घ समर्पित किए गए।
विधान प्रारंभ होने से पूर्व सर्वप्रथम भगवान की शांतिधारा करने का सुअवसर संजय जैन सुपुत्र श्रीमती विजय जैन को प्राप्त हुआ। उन्होंने भगवान के अभिषेक उपरांत अपने परिवार के साथ शांतिधारा की और शांतिधारा के मंत्रोच्चार मुनिश्री सुरत्नसागर द्वारा किए गए। धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्य सौभाग्यसागर महाराज ने कहा कि भगवान के प्रति समर्पण भाव जब तक भक्त के हृदय में नहीं आएगा तब तक भक्त मुक्ति को प्राप्त नहीं कर सकता।
सर्वस्व समर्पणकर भक्ति में खो जाना ही आराध्य की प्राप्ति का सबसे सरल मार्ग है। मुनि सुरत्नसागर महाराज ने भी धर्मसभा में सिद्धों के गुणानुवाद पर विस्तार से प्रवचन दिए। उन्होंने सिद्धों की भक्ति को सर्वोत्कृष्ठ बताते हुए महाफलदायी बताया। मरूदेवी महिला मण्डल ने 28 नवंबर तक आयोजित होने वाले इस धार्मिक अनुष्ठान में सभी धर्म प्रेमी बंधुओं से भागीदारी की अपील की है।
16 अर्घ चढ़ाकर श्रद्धालुओं ने की पूजा
श्री सिद्धचक्र महामण्डल विधान के दौरान प्रतिदिन सिद्ध परमेष्ठि की पूजा क्रमश: 8, 16, 32, 64, 128, 256, 512 और 1024 अर्घ समर्पण कर की जाती है। सिद्धों की पूजा के दौरान विशेष रूप से मांढऩे पर श्रीफल और अर्घ सामग्री भेंट की जाती है। इसी क्रम में बुधवार को छत्री जैन मंदिर पर आयोजित धर्मसभा के दौरान 16 अर्घ श्रद्धालुओं द्वारा भक्ति भाव से समर्पित किए गए और न केवल इस दौरान पुरुष वर्ग ने भगवान की जमकर भक्ति की वरन् महिलाएं भी छत्र चंवर लेकर भक्ति में झूमी।
जगमग दीपों से हुई आरती
रात्रि में छत्री जैन मंदिर पर जहां 7 बजे से सिद्ध परमेष्ठि की आरती जगमग दीपों से की गई वहीं पं. सुगनचंद जैन के विशेष प्रवचन भी इस अवसर पर हुए। कार्यक्रम में प्रश्र मंच प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया, जिसमें महायज्ञ नायक बने जीसी जैन और उनकी धर्मपत्नी उर्मिला देवी जैन द्वारा सभी को पारितोषक वितरित किए गए।
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