शिवपुरी। सिद्घत्व की आराधना यदि हम लगातार करते रहे तो निश्चित
रूप से हम मुक्तिरमा को वरण कर सकते हैं। सिद्घों का गुणानुवाद करने की
प्रक्रिया का नाम ही सिद्घचक्र महामंडल विधान है जिसमें भगवान के विविध
गुणों का वर्णन विस्तार से किया गया है। इस विधान में वर्णित सिद्घ
परमेष्ठी के गुणों को यदि हम अपनाने का प्रयास कर लें तो इससे हमारा जीवन
भी श्रेष्ठ बन सकता है। यह विचार महावीर जिनालय महल कॉलोनी परिसर में चल
रहे श्री सिद्घचक्र महामंडल विधान के तृतीय दिन धर्मसभा को संबोधित करते
हुए प्रतिष्ठाचार्य ब्रं. विनोद भैया जबलपुर द्वारा व्यक्त किए गए।
उन्होंने कहा कि विधि-विधान पूर्वक सिद्घचक्र मंडल विधान की पूजा की जाती है जिसमें 8 दिनों तक लगातार विशेष माडना सजाकर सिद्घ परमेष्ठी का गुणानुवाद किया जाता है। गंज वाले परिवार द्वारा यह आराधना महावीर जिनालय पर विशेष रूप से की जा रही है जो निश्चित रूप से आत्मिक शांति के साथ-साथ धर्मप्रभावना में सहभागी होगी। आयोजन के पूर्व भगवान का कलशों में जल भरकर अभिषेक किया गया और फिर इसके उपरांत वृहद शांतिधारा का आयोजन भी महावीर जिनालय पर हुआ। आयोजन के दौरान 128 अर्घ समर्पित कर सिद्घ परमेष्ठी की आराधना श्रद्घालुओं द्वारा की गई।
कार्यक्रम के दौरान बुधवार रात बाहर से आए कलाकारों के साथ स्थानीय कलाकारों की टीम ने अकलंक-निकलंक नाटिका का सराहनीय मंचन किया जिसमें उनके बाल्यकाल से लेकर राज्य वापस पहुंचने तक के वृतांत को जिस सुंदर ढंग से कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किया गया उसे सभी ने सराहा। नाटक के पूर्व विद्वानों द्वारा जो प्रवचन किए गए उस पर प्रश्न मंच का आयोजन भी हुआ जिसमें सही उत्तर देने वाले प्रतिभागियों को मंच से पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया।
उन्होंने कहा कि विधि-विधान पूर्वक सिद्घचक्र मंडल विधान की पूजा की जाती है जिसमें 8 दिनों तक लगातार विशेष माडना सजाकर सिद्घ परमेष्ठी का गुणानुवाद किया जाता है। गंज वाले परिवार द्वारा यह आराधना महावीर जिनालय पर विशेष रूप से की जा रही है जो निश्चित रूप से आत्मिक शांति के साथ-साथ धर्मप्रभावना में सहभागी होगी। आयोजन के पूर्व भगवान का कलशों में जल भरकर अभिषेक किया गया और फिर इसके उपरांत वृहद शांतिधारा का आयोजन भी महावीर जिनालय पर हुआ। आयोजन के दौरान 128 अर्घ समर्पित कर सिद्घ परमेष्ठी की आराधना श्रद्घालुओं द्वारा की गई।
अकलंक-निकलंक नाटिका का हुआ मंचन
कार्यक्रम के दौरान बुधवार रात बाहर से आए कलाकारों के साथ स्थानीय कलाकारों की टीम ने अकलंक-निकलंक नाटिका का सराहनीय मंचन किया जिसमें उनके बाल्यकाल से लेकर राज्य वापस पहुंचने तक के वृतांत को जिस सुंदर ढंग से कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किया गया उसे सभी ने सराहा। नाटक के पूर्व विद्वानों द्वारा जो प्रवचन किए गए उस पर प्रश्न मंच का आयोजन भी हुआ जिसमें सही उत्तर देने वाले प्रतिभागियों को मंच से पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया।