बीमारी से पीडि़त मासूम को अपने शिवराज मामा की आस

संजीव पुरोहित/अशोक सम्राट
शिवपुरी. एक ओर तो राज्य शासन गरीबों को हितैषी बताकर उन्हें सामथ्य व सक्षम करने के लिए विभिन्न योजनाओं का संचालन कर रही है वहीं दूसरी ओर मानवता भी एक मासूम को देखकर यदि रोने लगेे तो ऐसे में कैसे इन योजनाओं के क्रियान्वयन को उचित ठहराया जा सकता है यह यक्ष प्रश्न सभी को मन में स्वत: आ ही जाएगा।


मासूम बेटियों के मामा कहलाने वाले प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी अपनी भांजियों का ख्याल नहीं रख पा रहे है भले ही इसके लिए जिम्मेदार अधिकारी ही अपने कर्तव्यों से विमुख हो जाए। क्योकि जिले  के नया अमोला क्षेत्र में एक मासूम 15 वर्षीय बालिका आज भी अपने शिवराज मामा से आस लगाए बैठी है कि कभी तो वो इस भांजी की सुध लेंगे और उसे नया जीवन देकर प्रदेश के विकास में सहभागी बनाऐंगे लेकिन इस मासूम बालिका की यह कल्पना भी शायद कल्पना ही रह जाएगी क्योंकि जब तीन वर्ष से इस मासूम पीडि़त की सुध स्थानीय जिला प्रशासन ने नहीं ली तो प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को यहां कहां नजर आऐंगी।

जी हां यह कोई मासूम नहीं बल्कि उस मासूम की दास्तां बयां कर रही है जो अपने परिवार में सब के साथ घुल-मिलकर रहती है और शिक्षा में रूचि लेने के बाद भी आज वही मासूम अपनी जिंदगी की लड़ाई अपनी मॉं पर बोझ बनकर जी रही है। हम बात कर रह ेहै जिले के नया अमोला क्षेत्रांतर्गत क्रमांक 01 की जहां गौमती आदिवासी का परिवार है इस परिवार का भरण-पोषण करने वाले गौमती के पति सवाई लाल आदिवासी को ईश्वर ने एक वर्ष ही अपने पास बुला लिया जब गौमती अपनी मासूम 15 वर्षीय पुत्री राधा की बीमारी का उपचा कराने के लिए घर की जिम्मेदारी निभा रही थी। गौमती आदिवासी ने अपनी पीड़ा सुनाते हुए हमारे इस संवाददाता को अपने जीवन के बारे में बताया कि उसका खुशहल जीवन किन विकट परिस्थितियों में गुजर रहा है। 

बीते 3 वर्ष पूर्व उसकी पुत्री राधा जो पढऩे में होशियार थी और वह घर में सबकी लाड़ली थी जब उसका दाखिला शासकीय आदिवासी छात्रावास मनपुरा में हुआ तो लगा कि अब राधा पढ़-लिखकर घर की जिम्मेदारी अच्छी तरह से निभा पाएगी, क्योंकि राधा के दो छोटे-छोटे भाई भी है और पूरी जिम्मेदारी गौमती पर अकेले है लेकिन ईश्वर ने भी गौमती के इन मंसूबों पर पानी फेर दिया और किन्हीं कारणवश छात्रावास में कक्षा 7 तक पढ़ाई करने वाली राधा के जीवन में ना जाने कौन सी बीमारी घर कर गई, कि धीरे-धीरे उसके शरीर के कमर के नीचे के हिस्से ने काम करना बंद कर दिया। इस पर छात्रावास संचालकों ने भी इस मासूम को तब तक झेला जब तक उनके बस में था लेकिन इस बीमारी के तीन वर्ष बीतने के बाद छात्रावास ने भी हाथ खड़े कर दिए और राधा को छात्रावास से निकालकर घर भेज दिया। मासूम राधा की बीमारी आज भी उतनी ही है जितनी पहले थी इस मासूम की मॉं गौमती भी कोई मेहनत-मजूदरी नहीं कर पा रही जिससे वह अपनी बच्ची का इलाज कराए और बच्चों को भरपेट भोजन खिलाए। 

ऐसे में शासन की योजनाओं से कोसों दूर इस महिला गौमती व बच्ची राधा की पुकार प्रदेश सरकार तक नहीं पहुंच सकी क्योंकि प्रदेश के मुखिया के मंसूबों को पूरा करने में अधिकारी-कर्मचारियों की हीला-हवाली नजर आ रही है जो इस मासूम को किसी भी प्रकार की योजना से लाभान्वित नहीं कर रहे यदि इन्हें शासकीय योजनाओं का लाभ मिल जाए तो यह भी अपने पैरों पर खड़े हो सकते है। वहीं दूसरी ओर मामा से उपचार की आस में बैठी मासूम राधा आदिवासी आज भी उसी अवस्था में पड़ी है। बीमारी की जकड़ में आई राधा का इलाज शुरू से गौमती नहीं करा पाई क्योंकि ना तो पिता है और ना ही कोई अन्य साधन जिससे घर का गुजर-बसर हो सके। दो मासूम बालक उम्र 4 वर्ष व 6 वर्ष है ऐसे में इस परिवार पर विकट आपदा आन पड़ी है। इसलिए शासन को इस परिवार की सुध लेना चाहिए।