शिवपुरी मैं घर-घर पूजे गणगौर

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शिवपुरी-आज शहर में जगह-जगह भगवान शिव-पार्वती की आराधना का पर्व गणगौर बड़े ही उत्साह के साथ मनाया गया। गणगौर के पर्व की तैयारियों को लेकर महिलाओं का उत्साह भी देखने लायक था जहां घर-घर में गणगौर रूपी प्रतिमा की पूजा-अर्चना कर कथा सुनाई गई तत्पश्चात महिलाओं ने पूजन कर पति, बच्चों एवं परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गणगौर पर्व भगवान शिव ओर पार्वती के आपसी रिश्तों व भगवान गणेश के जन्म से जुड़़ी हुई पौराणिक मान्यताओं पर आधारित है। जब पार्वती माता ने शिवजी से पुत्र की कामना की तो उन्होंने माता को 12 साल तक तपस्या करने को कहा। इस तपस्या के बाद उनके यहाँ पुत्र उत्पन्न हुआ। इसके बाद शुरु होती है गणेशजी के जन्म की कथा। इसी कथा से गणगौर पर्व की शुरुआत होती है। गणगौर पर्व के अंतर्गत ग्यारस को माताजी के मूठ धराते हैं। इस दौरान पंडित के यहाँ जाकर टोकरियों में गेहूँ के जवारे बोते हैं। परिवार में खुशी या मन्नत होने पर माताजी को अमावस के दिन बाड़ी से लाते हैं। तीन दिन तक रखकर रात्रि जागरण और भजन.कीर्तन किया जाता है।

नई पीढ़ी की महिलाओं में दिखा जोश 
सौभाग्यवती महिलाओं द्वारा मनाए जाने वाले इस पर्व को नई पीढ़ी की महिलाओं ने भी जस का तस अपना लिया है। गणगौर का पर्व 25 मार्च को मनाया जाएगा। इसे लेकर महिलाओं में अपार उत्साह है। श्रृंगार के प्रतीक इस त्योहार में महिलाएं समूह बनाकर गीत गाती है। पूजा.अर्चना करती है और नृत्य करते हुए खुशियां मनाती हैं। साथ ही शिव.पार्वती की तरह अपने दांपत्य जीवन को खुशहाल बनाने की कामना करती हैं। गणगौर पूजा के बारे में पं.अर्जुन शर्मा का कहना है कि यह परपंरा राजाओं के जमाने से जारी है। सौभाग्यवती महिला अपने पति के लिए इसे मनाती है। पहले घर.घर में ज्वारे बोए जाते थे। किंतु अब सिर्फ मंदिर में ही बोए जाते हैं। वर्तमान में नए गीत नहीं लिखे जा रहे हैं। राजस्थान से आए गीत अभी भी चल रहे हैं।

गण-गौर के बारे में महिलाओं की व्याख्या- 
श्रीमती नीलू शुक्ला का कहना है कि मूलत: यह पर्व राजस्थान और निमाड़ का हैए जो सभी स्थानों पर मनाया जाता है। यह पर्व सुहागनें अपने सुहाग के लिए और कुंवारी लड़कियां शिवजी जैसे वर की कामना को लेकर यह पर्व मनाती है।

भुवनेश्वरी कॉम्पलैक्स निवासी रेखा अग्रवाल का कहना है कि घर में बरसों से गणगौर की परंपरा को देखकर नई पीढ़ी की बहू.बेटियां भी इस पर्व को अपनाने में पीछे नहीं है। सुहागने कलश लेकर मंदिर जाती है। 12 पत्तियों को पूजा के स्थान पर रखती है। इस दिन पान खाया जाता हैए गुलाल लगाया जाता है और गन्ने का रस भी पीया जाता है।

लुधावली निवासी श्रीमती रूकमणी ग्वाल व उनकी जेठानी बसंती का कहना है कि गणगौर पर्व पर महिलाएं उल्लासपूर्वक माताजी के गीत गाती हैं। महिलाओं में इस पर्व को लेकर उत्साह का माहौल रहता है। महिलाएं पूजन सामग्री एकत्रित कर आस्थापूर्वक पूजन करती है। महिलाएं इसका उद्यापन भी करती हैं।
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