त्वरित टिप्पणी
ललित मुदगल
शिवपुरी. स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह स्वास्थ्य विभाग की अलाली का ही परिणाम है कि बीते छ: माह में दर्जनों मासूम बालक असमय ही काल के गाल में समा गए। यदि इन मौतों की जांच की जाए तो निश्चित रूप से वे चिकित्सक जो स्वयं को इन मरीजों को स्वस्थ रखने का जुमला अपनाते है। कार्यवाही की जद में आ सकते है परन्तु गत दिनों बैराढ़ में हुई एक मासूम बालक देव तोमर की मौत के बाद भी जिला प्रशासन व स्वास्थ्य अमला हरकत में नहीं आया। यहां भी इस मासूम की मौत उस चिकित्सक ने ले ली जो महज थोड़ी बहुत जानकारी रखकर स्वयं को चिकित्सक कहते है।
राजनीति के माध्यम से भी इस चिकित्सक ने अपने को बचाने का काफी प्रयास किया लेकिन जब कोई उपाय नहीं सूझा तब कहीं जाकर पुलिस ने धारा 304 ए के तहत आरोपी चिकित्सक डॉ.श्रीनिवास धाकड़ के विरूद्ध मामला दर्ज कर लिया। लेकिन क्या इस चिकित्सक के विरूद्ध यह कार्यवाही बनती है यदि इसमें कोई दोषी है तो वह स्वास्थ्य विभाग व जिला प्रशासन जो कुंभकर्णीय नींद में सोकर सरेआम झोलाछाप चिकित्सकों की दुकानों को खुली छूट देकर स्वयं सो रहा है। जिसका परिणाम यह है कि आज कई मासूम इन झोलाछाप चिकित्सकों के लगाए इंजेक्शन अथवा उपचार से असमय ही काल का शिकार बन रहे है। सही मायने में इसके दोषी के रूप में सीएमएचओ जो स्वास्थ्य विभाग के निर्दिैष्टि अपने कार्यों को कर रहे है उन पर इसी धारा के तहत मामला पंजीबद्ध होना चाहिए? क्योंकि इस दोष में ये भी शमिल जान पड़ते है जिसका परिणाम है कि वर्तमान समय में भी कई चिकित्सक बिना किसी मानदण्ड के अपने क्लीनिक संचालित किए हुए है।
यहां बताना होगा कि 15 अक्टूबर 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने भी झोलाछाप चिकित्सकों के विरूद्ध कार्यवाही करने के आदेश दिए थे। जिसका परिणम यह हुआ कि शिवपुरी में इस आदेश के दो दिन बाद ही जिला स्वास्थ्य विभाग की ओर से 401 फर्जी चिकित्सकों की सूची आनन-फानन में जारी कर दी गई। इस सूची में उन चिकित्सकों को भी शामिल कर लिया गया जो इस श्रेणी में नहीं आते और कई पात्रों को अपात्र बताकर नोटिस थमा दिए। लेकिन इस नोटिस की खानापूर्ति के बाद आज दिनांक तक स्वास्थ्य विभाग व जिला प्रशासन ने इस ओर कोई कार्यवाही नहीं की। जिससे इनकी कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगता नजर आता है। जहां बीते 7 माह में लगभग दर्जनों मासूम कई झोलाछाप चिकित्सकों के इलाज से असमय ही मौत के शिकार हो गए।
कईओं ने आवाज उठाई तो कईओं की आवाज स्वयं चिकित्सकीय प्रबंधन द्वारा दबा दी गई। अब यदि झोलाछाप चिकित्सकों का मामला उछला तो वह भी कुछ दिनों पहले जब बैराढ़ में झोलाछाप चिकित्सक डॉ.श्रीनिवास धाकड़ के द्वारा मासूम देव तोमर के उपचार के दौरान लगाए गए इंजेक्शन से उसकी मौत हो गई। इस मौत ने न केवल स्वास्थ्य प्रबंधन की व्यवस्थाओं पर जमकर तमाचा जड़ा वरन सुप्रीम कोर्ट के आदेश केा दरकिनार करने वाले अधिकारियों को भी करारा जबाब दिया है। जहां इस मौत के बाद भी स्वास्थ्य विभाग ने कोई सबक नहीं लिया। जबकि बैराढ़ के चिकित्सक श्रीनिवास धाकड़ के खिलाफ पुलिस ने धारा 304 ए के तहत मामला दर्ज कर उसे जेल भेज दिया। लेकिन क्या इसमें गलती श्रीनिवास धाकड़ अकेले की है यह बात आज हर आमजन की जुबान पर है? क्योंकि यदि एक चिकित्सक पर मामला दर्ज होता है तो यही मामला उसे शह देने वाले जिम्मेदार अधिकारी मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी शिवपुरी पर भी दर्ज होना चाहिए। जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की तो धज्जियां उड़ाई ही साथ ही कई चिकित्सक जो आज भी कई ग्रामों व नगर में अपनी झोलाछाप की दुकानें संचालित कर रहे है।
उन्हें इस तरह के उपचार कर मौत बेचने की खुली छूट दे रखी है। यहां कार्यवाही की जद में आने के लिए स्वास्थ्य विभाग को स्वयं जिम्मेदारी लेनी होगा क्योंकि जिस प्रकार से झोलाछाप चिकित्सकों ने स्वयं की चांदी काटने के लिए मासूमों की मौत को अपना शिकार बनाया। उसमें अहम भागीदारी स्वास्थ्य प्रबंधन की भी है। आवाम पूछती है कि यदि जिला स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशाासन ने अब भी इन मौतों से सबक नहीं लिया तो आखिर कब सबक लेगा? क्योंकि आज मरने की वालों की दर्जनों में है तब भी झोलाछाप चिकित्सक अपने कार्य को मनमाने ढंग से किए जा रहे है तो फिर क्या यह आकड़ा जब सैकडों में पहुंचेगा तब कार्यवाही होगी। जिला स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन के मौन रवैये से अंदाजा लगाया जा सकता है कि निश्चित रूप से आगामी समय में कई अन्य मासूम जब तक मौत के आगोश में नहीं समा जाते तब तक इन झोलाछाप चिकित्सकों पर गाज गिरना आसमान से तारे तोडऩे जैसा ही प्रतीत होता है।
ये है सुप्रीम कोर्ट का आदेश
ये है सुप्रीम कोर्ट का आदेश
झोलाछाप चिकित्सकों के विरूद्ध जो आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया है। उसके अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने सिविल अपील 21043/08,5324/07,5325/07,4757/07,4758/07 तथा 5759/10 के क्रम में 1 जून 2010 में आदेश दिया कि जिन व्यक्तियों द्वारा हिन्दी साहित्य सम्मेलन,वैद्य विशारद, आयुर्वेद रत्न से उपाधि या डिप्लोमा वर्ष 1967 के बाद प्राप्त किया है। वे किसी भी प्रकार की मेडिकल प्रेक्टिस की पात्रता नहीं रखते है। इसी प्रकार इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी हिन्दी साहित्य सम्मेलन इलाहाबाद, वैद्य विशारद, आयुर्वेद रत्न को फेक इंस्टीट्यूशन बताया जबकि हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग को 1931 से 1967 तक वैध माना है। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के उक्त आदेशों के क्रम में उक्त अवधि के बाद जारी डिग्री या डिप्लोमा धारकों द्वारा संचालित क्लीनिक्स स्थापनायें एवं नर्सिंग होम म.प्र.उपचर्या गृह एवं रूजोपचार(रजिस्ट्रीकरण तथा अनुज्ञापन) अधिनियम 1973 के तहत किए गए पंजीयन तत्काल प्रभाव से निरस्त करार दे दिए गए।
जब इस संबंध में हमारे संवाददाता राकेश डागौर ने नियम निर्देशों का हवाला देकर की जाने वाली कार्यवाही की चर्चा की तो कई शहरवासियों ने इस कार्यवाही को उचित बताया और स्वास्थ्य प्रबंधन के विरूद्ध कार्यवाही की बात कही। क्योंकि इसके लिए जिम्मेदार विभाग ही अपने कर्तव्यों से पल्ला झाड़ेगा तो कैसे कहा जाएगा शिवपुरी में स्वास्थ्य सेवाऐं निरंतर ठीक ढंग से चल रही है।

जब इस संबंध में हमारे संवाददाता राकेश डागौर ने नियम निर्देशों का हवाला देकर की जाने वाली कार्यवाही की चर्चा की तो कई शहरवासियों ने इस कार्यवाही को उचित बताया और स्वास्थ्य प्रबंधन के विरूद्ध कार्यवाही की बात कही। क्योंकि इसके लिए जिम्मेदार विभाग ही अपने कर्तव्यों से पल्ला झाड़ेगा तो कैसे कहा जाएगा शिवपुरी में स्वास्थ्य सेवाऐं निरंतर ठीक ढंग से चल रही है।

जो भी चिकित्सका बिना डिग्री के उपचार करते है ऐसे चिकित्सकों के विरूद्ध कार्यवाही होना चाहिए। वहीं होम्यौपैथिक, आयुर्वेदिक और एैलोपैथिक चिकित्सकों को रजिस्टर्ड मान्यता मिलना चाहिए लेकिन शिवपुरी में सुप्रीम कोर्ट का जो आदेश दिया गया है यह विचाराधीन है
डॉ.शैलेन्द्र गुप्ता
वरिष्ठ समाजसेवी एंव संचालक
शान्ता क्लीनिक न्यू ब्लॉक शिवपुरी
शहर ही नहीं बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में झोलाछाप चिकित्सकों की दुकानें धड़ल्ले से चल रही है ऐसे चिकित्सकों के विरूद्ध कार्यवाही होना चाहिए। इसके लिए यदि कोई जिम्मेदार अधिकारी है तो वह स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारी, जिन्हें अभियान चलाकर ऐसे झोलाछाप चिकित्सकों के विरूद्ध करना चाहिए ताकि न्यायालय के आदेश का भी पालन हो।
भागीरथ कुशवाह
वरिष्ठ भाजपा नेता एवं अध्यक्ष
परिवहन प्रकोष्ठ शिवपुरी
फोटो- प्रहलाद भारती विधायक
सुप्रीम कोर्ट के आदेश जो दिए गए है उसके अनुरूप कार्य होना चाहिए। क्षेत्र में जो भी झोलाछाप चिकित्सक है उनके विरू द्ध स्वास्थ्य विभाग सूची बनाए और कार्यवाही करें ताकि आगे इस तरह कोई फर्जी रूप से दुकान ना चला सके।
प्रहलाद भारती
विधायक पोहरी
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अशोक सम्राट जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय भ्रष्टाचार उन्मूलन समिति शिवपुरी |
मासूमों की मौत से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं होगा। यदि इसमें किसी चिकित्सक की लापरवाही है तो इसके लिए जिम्मेदार जिले का स्वास्थ्य अमला है जिसकी जिम्मेदारी सीएमएचओ की बनती है। धारा 304 ए के तहत जब श्रीनिवास धाकड़ पर मामला दर्ज हो सकता है तो इसके लिए जिम्मेदार अधिकारी के विरूद्ध भी यही धारा लगाकर मामला पंजीबद्ध हो ताकि अधिकारी अपने कर्तव्य की जिम्मेदारी को समझ सके। यूं तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अव्हेलना भी स्वास्थ्य विभाग व जिला प्रशासन ने की है इसलिए इन्हें अपने जिम्मेदारी समझना चाहिए अन्यथा राष्ट्रीय भ्रष्टाचार उन्मूलन समिति ऐसे चिकित्सकों ही नहीं बल्कि स्वयं जिला स्वास्थ्य विभाग व जिला प्रशासन के विरूद्ध मुखर विरोध प्रदर्शन को बाध्य होगा।
अशोक सम्राट
जिलाध्यक्ष
राष्ट्रीय भ्रष्टाचार उन्मूलन समिति शिवपुरी