देवता और दैत्य रूपी शरीर को पहचान कर करें कल्याण : संत श्रीकृष्णा स्वामी

शिवपुरी-शरीर को अंदर छिपी आत्मा को पहचानने के लिए देवता और दैत्य की भांति सोच रखेंगे तब जाकर हमारे शरीर और आत्मा का कल्याण हो सकेगा। हमारे शरीर में दैत्य देह(शरीर) है तो आत्मा देवता इसलिए आत्मा को पवत्रि करने के लिए धर्म-पुण्य के कार्य करें। इस तरह दोनों के द्वारा ही अमृत उद्योग(धर्म-पुण्य) के द्वारा हम परमात्मा अर्थात् मोक्ष को प्राप्त कर सकते है।

जब तक शरीर और आत्मा के कल्याण के लिए धर्म और पुण्य का आश्रय नहीं लेते तब तक आत्मा बार-बार शरीर धारण करती है। इसलिए प्रभु भक्ति एक सरल माध्यम है। शरीर और आत्मा के कल्याण की यह सोच व्यक्त कर रहे थे महामण्डलेश्वर स्वामी संतश्रीकृष्णा स्वामी जो कैला माता दरबार में गोयल परिवार द्वारा आयोजित संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा में दैत्य और देवताओं के समुद्र मंथन के दौरान स्वयं के कल्याण की सोच से अवगत करा रहे थे।
शहर के कैला माता मंदिर पर गोयल परिवार द्वारा संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया गया है। जहां कथा में महामण्डेलश्वर संतश्रीकृष्णा स्वामी ने कथा को आगे बढ़ाते हुए आज दैत्य और देवताओं के समुद्र मंथन के वर्णन को सुनाते हुए कहा कि कश्यप ऋषि अदिति नाम की पत्नी देवताओं का जन्म होता है और दीति नाम की स्त्री से दैत्यों का जन्म होता है। मां अलग-अलग है पर पिता एक ही है। 

पुत्र देवता और दैत्य आपस में युद्ध लड़ते है परन्तु माता-पिता किसी के पक्ष में नहीं बोलते। देवता अमर है तथा निर्बल होते है जबकि दैत्य शक्तिशाली है एवं मर जाते है। यहां दैत्यों के मारे जाने पर दैत्यों के गुरू शुक्रचार्य जी अमृत संजीवनी विद्या के द्वारा पुन: जीवित कर देते है। दैत्यों का जीवन गुरू के अधीन है देवता  दैत्यों से सदैव भयभीत रहते है जहां कभी दैत्यों का तो कभी देवताओं का शासन होता है। इन्द्र ने भगवान नारायण से प्रार्थना की यदि हम देवता भी शक्तिशाली बन जाए तो दैत्यों को परास्त कर सकें तब भगवान नारायण ने इन्द्र से समुद्र मंथन के द्वारा अमृत उद्योग की आज्ञा देते है। जहां कुटुम्ब सहित देवता और दैत्य समुद्र का मंथन मंंदराचंल पर्वत की रई एवं वासु की सर्प की नथेनी बनाकर मंथन करते है। इस समुद्र मंथन से विष/सुरभि/गऊ/पारिजात वृक्ष/उच्चय श्रेवा घोड़ा/ऐरावत हाथी/चन्द्रमा/सांध धनुष/पांचजन्य शंख/वैदुरीमणि/अप्सरा/वारूणी/लक्ष्मी/धनवंतरी समुद्र मंथन से प्रकट होते है। ऐसे में दैत्यों से मोहिनी बनकर भगवान अमृत छुडा लेते है और लीला के माध्यम से अमृत देवताओं को पिलाते है जबकि दैत्यों को मदिरा पिला देते है। जहां देवताओं को अमृत पिलाया तो वह अमर और शक्तिशाली दोनों हो गए। 

दैत्य युद्ध नहीं करते धर्म के बल से त्रिलोकी को वश में करने के लिए राजा बलि के द्वारा विश्वजीत यज्ञ किया जाता है तभी छलपूर्वक वामन बनकर भगवान आते है और तीन पग भूमि मांगकर बलि का धर्म(कर्म से प्राप्त) और धर्म से देह दोनों को प्राप्त कर लेते है और पुन: दैत्यों को पातालपुरी का राज्य प्रदान करते है। कथा को सुनकर श्रद्धालुजन भावविभोर हो गए और कथा भक्ति में डूबते नजर आए। कैला माता मंदिर पर कथा के समापन के दौरान श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है जिससे पूरा मंदिर प्रांगण भर जाता है।